राजनीतिक हलके में एनडीए के घटक लोजपा की नाराजगी का मुद्दा लंबा खिंचा। लोजपा सीट शेयरिंग में मिल रही हिस्सेदारी से नाखुश थी। बीच का रास्ता न...

राजनीतिक हलके में एनडीए के घटक लोजपा की नाराजगी का मुद्दा लंबा खिंचा। लोजपा सीट शेयरिंग में मिल रही हिस्सेदारी से नाखुश थी। बीच का रास्ता निकालने के लिए भाजपा -लोजपा नेता अमित शाह से भी मिले लेकिन बात बनी नहीं। पटाक्षेप रविवार को हुआ जब लोजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया।
पार्टी ने साफ कहा कि वह भाजपा उम्मीदवारों नहीं,जदयू के खिलाफ लड़ेगी। यह ऐसा फैसला है जिससे स्वाभाविक सवाल उपजता है कि क्या यह नीतीश कुमार को घेरने की व्यूहरचना है या किसी बड़े गेमप्लान का हिस्सा है? या नीतीश कुमार से रूठे मतदाताओं की नाराजगी खलास करने का नया मोर्चा।
आईएएनएस-सी वोटर की ओर से सितंबर में हुए ओपिनियन पोल में सामने आया था कि 56.7% मतदाता सरकार से नाराज हैं। सत्ता परिवर्तन चाहते हैं। 29.8% वोटर सरकार से खफा तो हैं पर सरकार बदलने के पक्षधर नहीं हैं।
फिलहाल बिहार में चुनावी परिदृश्य धुंधला सा ही नजर आ रहा है
‘बिहारी फर्स्ट’के नारे और बेरोजगारी की बात करने वाली लोजपा की कमान 37 वर्षीय चिराग पासवान के हाथ में है जो युवाओं की पसंद बन सकते हैं। महिलाओं के बीच लोकप्रिय नीतीश कुमार का ग्राफ इस वोट समूह में भी मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड जैसे मसलों से गिरा है।
इस सबके बीच ‘... मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश की खैर नहीं...’ जैसे नारे जदयू विरोधी और भाजपा समर्थक नरेटिव ही सेट करने की कोशिश है। लोजपा संसदीय बोर्ड ने जिस अंदाज में अकेले लड़ने का प्रस्ताव पारित किया वह भी नीतीश कुमार को ही निशाना बनाता दिखा। साफ लगा कि लोजपा, जदयू से दो-दो हाथ करने के मूड में है।
इसके ठीक उलट पार्टी ने भाजपा के प्रति हर मोर्चे पर नरमी बरती। लोजपा प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा कि हमने मणीपुर, झारखंड और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। वह दोस्ताना संघर्ष था लेकिन पार्टी ने तय किया है कि वह बिहार में भाजपा की सीटें नहीं लड़ेगी।
उनसे जब पूछा गया कि क्या लोजपा, भाजपा के उस बड़े गेम का हिस्सा है जो चुनाव बाद खेला जाना है, जिसका लक्ष्य नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करना है? सर्राफ ने सीधा जवाब देने की बजाय कहा...मीडिया कोई भी निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है।
दरअसल, लोजपा संसदीय दल की बैठक में मंजूर प्रस्ताव की प्रतिध्वनि ही चुनाव बाद की है जो कहती है कि चुनाव बाद भाजपा-लोजपा की सरकार बनेगी जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। जो चुनाव जीतेंगे वे भाजपा-लोजपा सरकार का ही समर्थन करेंगे।
सरकार बनाने के वादे में जदयू की चर्चा तक नहीं है। पार्टी ने साफ कहा है कि भाजपा-लोजपा के बीच किसी तरह का मनमुटाव नहीं है। लोजपा के इस रुख पर जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि हमारे लिए एनडीए का मतलब, जदयू-भाजपा है। लोजपा से जदयू का कभी चुनावी गठजोड़ नहीं रहा। यदि वे (लोजपा) अफवाह फैलाना चाहते हैं तो हम इसमें उनकी कोई मदद नहीं कर सकते।
बिहार का चुनावी परिदृश्य बिल्कुल गड्ड-मड्ड हो गया है। रालोसपा मुखिया उपेंद्र कुशवाहा ने बसपा से गठजोड़ कर लिया है। महागठबंधन के हिस्सा रहे वीआईपी के मुकेश सहनी ने सीटों की घोषणा के प्रेस कांफ्रेंस में ही बवाल कर दिया और अकेले सभी सीटों पर लड़ने का एलान कर दिया। यह सभी घटनाक्रम जदयू की चिंता बढ़ाने वाले ही हैं।
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