टाल सिसक रहे हैं। यहां के किसानों का पसीना जब पंजाब के खेतों में बहता है तो खेत सोना उगलने लगते हैं, लेकिन बीमार व्यवस्था के मारे किसानों क...

टाल सिसक रहे हैं। यहां के किसानों का पसीना जब पंजाब के खेतों में बहता है तो खेत सोना उगलने लगते हैं, लेकिन बीमार व्यवस्था के मारे किसानों के आंसू से जब यहां की माटी भीगती है तो बदकिस्मती देखिए... खेत बंजर हो गए। वादों की मार ऐसी कि उम्मीदों के खेत कब के सूख चुके।
इस इलाके में टाल के दालों की गुणवत्ता ऐसी थी कि कभी नेपाल-भूटान तक इसका बाजार हुआ करता था। लेकिन आज बड़ी संख्या में किसान न्यूनतम मूल्य तक के लिए तरस रहे हैं। जिम्मेदारों से सवाल किए, सड़कों पर आंदोलन भी... लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हो सका। विडंबना ऐसी कि 30 वर्ष से अधिक हो चुके हैं लेकिन जिले में केंद्रीय विद्यालय के लिए पांच एकड़ जमीन की तलाश अबतक पूरी नहीं हो सकी है।
जलजमाव व गाद की समस्या ऐसी कि किस्मत इसी में बजबजाती दम तोड़ देती है। बेटियां आगे कैसे पढ़ें, कैसे बढ़ें? जरूरी सवाल तो ये भी है। लेकिन... जिले में एकमात्र महिला कॉलेज बड़हिया में है। हर चुनाव में ये भी मुद्दा बनता है। लेकिन बात मुद्दे से आगे बढ़ती ही नहीं। हां, बयानबाजी और आश्वासन खूब चलते हैं।
मतदाताओं में निराशा का आलम ये है कि लोग इन जरूरी सवालों पर अब बात करना भी बेमानी समझने लगे हैं। चुनाव को लेकर बातचीत की धूरी कहीं ना कहीं फिर से जाति पर ही आ टिकती है। इस बीच तमाम तरह के जोर लगाए जा रहे हैं। सियासत के सूत्र के रूप में ‘शप्पत-किरिया’ (शपथ-कसम) तक खिलाया जा रहा है। इसके अलावा दुहाई और गद्दारी का सियासी खेल भी खुलकर जारी है।
...नल्ली बनेलकओ छय। पानी निकलतै, कहां जैतय पते नै छै
मेदनी चौकी बाजार से ठीक आगे खावा-राजपुर पंचायत के झपानी गांव में 72 वर्षीय गणपति पासवान कहते हैं, दे देबय वोट केकरो। आय तक जेकरा देलियय कियो एलय घूमी के? वोट देना छय ते दे देबय। हय देखो... नल्ली बनेलकओ छय। पानी निकलतै, कहां जैतय कुच्छु पते नै छै। गणपति की बात व्यवस्था के प्रति निराशा का भाव बयां करती हैं। इसी बीच एक प्रचार गाड़ी गुजरती है... जिंदाबाद-जिंदाबाद सुनने के बाद फिर गणपति के चेहरे पर शून्यता बिखर जाती है। झुर्रियों में जिंदगी की बदकिस्मती बताती रेखाएं स्पष्ट नजर आने लगती हैं।
लखीसराय : गठबंधन के बाद भी भाजपा उम्मीदवार को नहीं मिल रही जदयू की ताकत
यहां मुख्य मुकाबला एनडीए से भाजपा प्रत्याशी श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा और महागठबंधन के प्रत्याशी अमरेश कुमार अनीश के बीच है। अमरेश दो साल पूर्व ही जदयू छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। विधायक के खिलाफ लोगों में नाराजगी जबरदस्त है। वे तीन टर्म से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। विकास कार्यों में पक्षपात का आरोप उन पर लोग लगाते हैं। विरोध ऐसा है कि कई जगहों से उन्हें वापस होना पड़ रहा है।
राजनीतिक अनुभव में वे जरूर अमरेश पर भारी हैं लेकिन चुनौती मजबूत मिलने वाली है। वैसे पारंपरिक रूप से यह सीट राजद की रही है लेकिन इस बार महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस से अमरेश मैदान में हैं। भाजपा प्रत्याशी को गठबंधन के बाद भी जदयू की ताकत नहीं मिल पा रही है। वजह इस क्षेत्र के एक कद्दावर जदयू नेता से उनकी निजी अदावत है।
सूर्यगढ़ा : सवर्ण वोटों का विभाजन तय, अब ध्रुवीकरण से ही यहां निकलेगा नतीजा
यहां महागठबंधन की तरफ से राजद से लगातार दूसरी बार विधायक रहे प्रह्लाद यादव मैदान में हैं। जदयू की तरफ से रामानंद मंडल और लोजपा से रविशंकर सिंह अशोक मैदान में है। अशोक पूर्व में जदयू के प्रमुख कार्यकर्ता रहे हैं और ललन सिंह के करीबी रहे हैं। प्रह्लाद यादव एक बार निर्दलीय एवं तीन बार राजद से जीते हैं। सूर्यगढ़ा की सीट पूर्व में भाजपा के खाते में जाती रही है। इस बार सीट जदयू को मिली है।
अगर बात वोट बैंक की करें तो इस बार सवर्ण मतों का विभाजन होना तय है। पूर्व में यह जदयू के खाते में जाता रहा है। सवर्ण मतदाताओं की संख्या अच्छी है और अशोक का प्रभाव क्षेत्र में दिखता है। इस वर्ग के मतदाताओं को जदयू की तरफ करने के लिए मुंगेर के सांसद ललन सिंह इलाके में रात-दिन लगातार कैंप कर रहे हैं। प्रह्लाद के वोट बैंक में कोई सेंधमारी नहीं है और सवर्ण वोटों का विभाजन-ध्रुवीकरण ही इस सीट के नतीजे तय करेगा।
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