पुख्ता सबूत हैं कि विधानसभा चुनाव में मतदान में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं कि जो साबित कर सके कि...

पुख्ता सबूत हैं कि विधानसभा चुनाव में मतदान में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं कि जो साबित कर सके कि महिलाओं ने नीतीश कुमार के पक्ष में जमकर वोट दिया और पिछले कुछ चुनाव में जदयू की जीत का मार्ग प्रशस्त किया।
यह उस अवधारण के उलट है कि नीतीश सरकार की महिलाओं के लिए शुरू की गई विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से आकर्षित होकर महिलाओं ने उन्हें झोली भरकर वोट दिया। ऐसा इसलिए कि कल्याणकारी योजनाओं के बूते महिला वोटरों में रुझान पैदा करने के प्रयास बहुत ही मामूली हैं।
मतदाता सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सराहना करते हैं। उसका फायदा लेते हैं। लेकिन जब वोट देने की बारी आती है तो निर्णय कई बातों से प्रभावित होता है। यहां तक की केंद्र की अत्यंत लोकप्रिय नरेन्द्र मोदी सरकार को भी 2014-19 के बीच शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिला। 2019 में भाजपा को लोगों ने कई अन्य वजहों से वोट किया, न कि कल्याणकारी योजनाओं की वजह से।
इसी प्रकार देखें तो नीतीश कुमार बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं, उन्हें सभी वर्गों में वोट मिला, पर हमें कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला जिससे प्रमाणित हो कि बीते दो दशक में महिलाओं का आकर्षण जदयू की ओर बढ़ा है। महिलाएं किसी एक पार्टी की थोक वोट समूह भले ही न हों लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि चुनाव में महिला मतों की कोई भूमिका नहीं है। वो बतौर उम्मीदवार और वोटर अपना रोल अदा करती हैं। धीरे-धीरे ही सही चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है जो सकारात्मक संकेत है (देखें चार्ट)।
बीते दो चुनावों में महिला वोटरों का टर्न-आउट गौरतलब है। 2010 और 2015 में उनका मतदान प्रतिशत पुरुषों से 7%अधिक रहा। बिहार में महिला-पुरुष वोटों में यह गैप देश के किसी राज्य की तुलना में सर्वाधिक है। 2010 के चुनाव में भी महिलाएं पुरुषों से आगे निकलीं थीं तब उनका मत प्रतिशत पुरुषों से 3% अधिक था और तब बिहार पहला राज्य था जहां ऐसा हुआ।
लेकिन यह साफ नहीं है कि महिलाओं का मत प्रतिशत आखिर बढ़ा क्यों? किन कारणों से बढ़ा? लेकिन सीएसडीएस के अध्ययन से एक बात प्रमाणित हुई है कि ज्यादातर महिलाएं अब खुद निर्णय लेने लगी हैं कि उन्हें किसे वोट देना है। इसके पीछे पंचायत चुनावों में उनकी बढ़ती भूमिका एक कारण हो सकती है। कई महिलाएं तो ऐसी हैं जो लंबे समय से पंचायतीराज संस्थाओं की सत्ता में हैं।
उनका राजनीतिक समाजीकरण बढ़ा है। देश के दूसरे राज्यों की पंचायती राज संस्थाओं में भी महिलाओं के लिए आरक्षण है लेकिन बिहार में यह आरक्षण 50% है जो 33% की निर्धारित लिमिट से अधिक है। बिहार की ही देखा-देखी कई राज्यों ने 50% आरक्षण का प्रावधान लागू किया।

पंचायतों के इसी आरक्षण ने चुनाव लड़ने और जीतने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ाई है। लेकिन सीएसडीएस के अध्ययन से यह भी प्रमाणित हुआ है कि जिस तरह पुरुषों का वोट पार्टियों में बंटता है, उसी प्रकार महिलाओं का भी वोट बंटता है। महिलाओं ने कभी भी किसी दल या गठबंधन के प्रति रुझान प्रदर्शित नहीं किया है।
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