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राजनीति में फेल हुए तो ईश्वर की शरण में पूर्व डीजीपी, जानिए क्या चाहिए गुप्तेश्वर पांडेय को

निषादराज ने भगवान राम की नैया पार कराई थी। अब यूपी में निषादों की राजनीति करने वाले संजय निषाद ‘रामरथ’ पर सवार बीजेपी को 2022 में चुनावी नैय...

निषादराज ने भगवान राम की नैया पार कराई थी। अब यूपी में निषादों की राजनीति करने वाले संजय निषाद ‘रामरथ’ पर सवार बीजेपी को 2022 में चुनावी नैया पार कराने का दावा कर रहे हैं। हालांकि संजय ने डेप्युटी सीएम की कुर्सी सहित इतनी ‘उतराई’ मांगी है कि बीजेपी के लिए हां करना मुश्किल है। उधर, बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय का सियासत से इस हद तक मोहभंग हुआ कि गेरुए कपड़े में वह कथावाचक की भूमिका में आ गए। दोनों के बारे में बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ और प्रेम शंकर मिश्र :

Gupteshwar Pandey News: गुप्तेश्वर पांडेय को शुरू से नीतीश कुमार का करीबी अधिकारी माना जाता रहा है। बिहार में शराबबंदी लागू करने में वह नीतीश कुमार की कोर टीम का हिस्सा थे और बाद में नीतीश की पहल पर ही डीजीपी भी बने। 2020 के विधानसभा चुनाव के वक्त उन्होंने एक बार फिर कोशिश की। शायद अब उन्होंने मान लिया है कि राजनीति उनके वश की बात नहीं। इसलिए उन्होंने नया रास्ता चुन लिया।


विशुद्ध राजनीति: राजनीति में फेल हुए तो ईश्वर की शरण में पूर्व डीजीपी, जानिए क्या चाहिए गुप्तेश्वर पांडेय को

निषादराज ने भगवान राम की नैया पार कराई थी। अब यूपी में निषादों की राजनीति करने वाले संजय निषाद ‘रामरथ’ पर सवार बीजेपी को 2022 में चुनावी नैया पार कराने का दावा कर रहे हैं। हालांकि संजय ने डेप्युटी सीएम की कुर्सी सहित इतनी ‘उतराई’ मांगी है कि बीजेपी के लिए हां करना मुश्किल है। उधर, बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय का सियासत से इस हद तक मोहभंग हुआ कि गेरुए कपड़े में वह कथावाचक की भूमिका में आ गए। दोनों के बारे में बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ और प्रेम शंकर मिश्र :



राजनीति में नहीं बनी गुप्तेश्वर की बात
राजनीति में नहीं बनी गुप्तेश्वर की बात

बिहार काडर के 1987 बैच के आईपीएस और बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय राजनीति में आने को इस हद तक व्याकुल थे कि उन्होंने दो बार सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति ली, लेकिन दोनों बार मायूसी ही हाथ लगी। शायद अब उन्होंने मान लिया है कि राजनीति उनके वश की बात नहीं। इसलिए उन्होंने नया रास्ता चुन लिया। किस्मत ने उनके साथ पहली बार 2009 में दगा की, जब उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के इरादे से रिटायरमेंट लिया लेकिन उनका टिकट नहीं हो पाया। उस वक्त उनकी सर्विस में करीब 12 साल बाकी थे। ऐसे में नीतीश कुमार के साथ उनकी नजदीकी काम आई। राज्य सरकार ने अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए उनके स्वैच्छिक सेवानिवृति वाले आवेदन को निरस्त कर दिया और उनकी नौकरी में वापसी करा दी।

इसे भी पढ़ें:- मेरे अंदर नेता बनने की क्षमता नहीं- गुप्तेश्वर पांडेय, जिस IPS पर था सीधे सीएम का हाथ उसमें राजनीति की कौन सी 'योग्यता' नहीं?



पूर्व डीजीपी से अब बने संत
पूर्व डीजीपी से अब बने संत

गुप्तेश्वर पांडेय को शुरू से नीतीश कुमार का करीबी अधिकारी माना जाता रहा है। बिहार में शराबबंदी लागू करने में वह नीतीश कुमार की कोर टीम का हिस्सा थे और बाद में नीतीश की पहल पर ही डीजीपी भी बने। 2020 के विधानसभा चुनाव के वक्त उन्होंने एक बार फिर कोशिश की। इसी बीच सुशांत सिंह केस में रिया चक्रवर्ती के खिलाफ उनके एक सार्वजनिक बयान ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया था। उन्होंने कहा था कि रिया की इतनी औकात नहीं कि वह बिहार के मुख्यमंत्री पर कॉमेंट करे। सितंबर 2020 में उन्होंने एक बार फिर सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली और औपचारिक रूप से जेडीयू में शामिल हो गए। उन्हें खुद सीएम नीतीश कुमार ने पार्टी की सदस्यता दी, लेकिन जब चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट आई तो उनका नाम इस बार भी गायब था। उनकी जगह पर जिन्हें टिकट मिला, वह बिहार पुलिस के पूर्व कॉन्स्टेबल रहे हैं। यह डीजीपी रहे पांडेय के लिए शर्मिंदगी का विषय बना। यहीं से उनका राजनीति और नीतीश कुमार से मोहभंग हुआ। वह एकांतवास में चले गए। लेकिन पिछले दिनों उन्होंने अपनी नई भूमिका से सबको चौंका दिया। वह गेरुआ रंग के कपड़ों में भगवद‌्गीता के वाचक के रूप में दिखे। पांडेय ने पटना यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल की है। उनकी अधिकतर पोस्टिंग बिहार में नक्सलग्रस्त जिलों में रही है।



‘मीठी गोली’ के डॉक्टर भी हैं संजय निषाद
‘मीठी गोली’ के डॉक्टर भी हैं संजय निषाद

इलेक्ट्रो होम्योपैथी में पीजी डिप्लोमा संजय के मीठी गोली के डॉक्टर से ‘पॉलिटिकल गॉडफादर ऑफ फिशरमैन’ (यह वह उपाधि है जिसे संजय निषाद अपने नाम के साथ लगाते हैं, पार्टी के प्रेस नोट में भी इसका जिक्र अनिवार्य रहता है) बनने की कहानी दिलचस्प है। सीएम योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में होम्योपैथी क्लीनिक चलाने वाले संजय निषाद ने 2002 में पहली लड़ाई इलेक्ट्रो होम्योपैथी को मान्यता दिलाने की लड़ी। 2008 में उन्होंने जातीय गोलबंदी की राजनीति शुरू की। ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी वेलफेयर असोसिएशन बनाकर उसके बैनर तले दिल्ली तक धरना दिया। 2010 में गोरखपुर के कैंपियरगंज से जिला पंचायत सदस्य और 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

2013 में संजय ने निषाद पार्टी बनाई। 2014 में चार लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार भी उतारे, जिनमें जौनपुर से बाहुबली धनंजय सिंह भी शामिल थे। सफलता हालांकि किसी को नहीं मिली। इसी बीच जून 2015 में निषादों की सभी उपजातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने को लेकर संजय निषाद ने गोरखपुर के पड़ोसी जिले संतकबीर नगर में रेलवे ट्रैक जाम कर दिया। प्रदेश में अखिलेश यादव की अगुआई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार थी। प्रदर्शन के दौरान अखिलेश निषाद नाम के युवक की जान चली गई। संजय निषाद पर भी कई मुकदमे हुए। इस आंदोलन ने संजय की निषादों में पैठ और मजबूत कर दी।



इसलिए सुर्खियों में आए संजय निषाद
इसलिए सुर्खियों में आए संजय निषाद

संजय का असली राजनीतिक अभ्युदय मार्च 2018 में योगी के गढ़ गोरखपुर में लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी के पराभव से हुआ। समाजवादी पार्टी ने संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को उम्मीदवार बनाया और तीन दशक बाद बीजेपी यह सीट हार गई। हालांकि, कुछ ही महीनों बाद बेटे सहित संजय ने बीजेपी का दामन थाम लिया और बेटा 2019 में संतकबीर नगर से बीजेपी सांसद बन गया। 2022 के चुनाव नजदीक देखते हुए संजय निषाद ने बीजेपी पर उचित समायोजन न देने का आरोप लगाते हुए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उनका दावा है कि 152 विधानसभा सीटों पर निषादों के वोट निर्णायक हैं। बीजेपी उन्हें डेप्युटी सीएम का चेहरा बनाए तो जीत तय है। पार्टी से पिता-पुत्र के अलावा किसी और चेहरे को आगे न किए जाने के सवाल पर संजय का तर्क है कि बेटे को तो उन्होंने समाज की सेवा के लिए सौंप दिया है। हालांकि, यही तर्क उन्होंने समाजवादी पार्टी में भी शामिल होने पर भी दिया था।





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