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जब दस रुपये लेकर चैम्पियन बनने घर से निकली थीं दीपिका कुमारी, आज इस तीरंदाज के पीएम मोदी भी मुरीद

रवि सिन्हा, रांची रांची की तीरंदाज दीपिका कुमारी टोक्यो ओलंपिक में पदक की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि दीपिका...

रवि सिन्हा, रांची रांची की तीरंदाज दीपिका कुमारी टोक्यो ओलंपिक में पदक की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि दीपिका ने चैंपियन बनने की राह पर आगे बढ़ने की शुरुआत अपने रिक्शाचालक पिता से दस रुपये लेकर की थी। उनके प्रारंभिक जीवन के संघर्ष की कहानी दिल को छूने वाली है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में दीपिका कुमारी की खास तौर से चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब प्रतिभा, समर्पण, दृढ़ संकल्प और Sportsman Spirit एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई चैंपियन बनता है। देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों और गांव से निकल कर आते हैं। टोक्यो जा रहे भारतीय ओलंपिक दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है। पीएम मोदी ने कहा- तीरंदाज दीपिका के जीवन का सफर भी उतार-चढ़ाव भरा रहा प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज टीम की सदस्य रांची की दीपिका कुमारी का जिक्र करते हुए कहा कि उनके जीवन का सफर भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। दीपिका के पिता ऑटो-रिक्शा चलाते हैं और उनकी मां नर्स हैं। दीपिका अब टोक्यो ओलंपिक में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज है। कभी विश्व की नंबर एक तीरंदाज रही दीपिका के साथ हम सबकी शुभकामनाएं हैं। जब पिता ने दीपिका को जिला स्तरीय टूर्नामेंट के लिए कर दिया था मना, फिर...दीपिका कुमारी के प्रारंभिक जीवन के संघर्ष की कहानी दिल को छूने वाली है। सबसे पहले दीपिका जिला स्तरीय टूर्नामेंट में भाग लेना चाहती थी, लेकिन उनके पिता ने साफ मना कर दिया। दीपिका ने हार नहीं मानीं और पिता को उनकी बात माननी पड़ी। पिता ने उन्हें महज दस रुपये दिए और वह लोहरदगा में आयोजित खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने चली गईं। इसमें दीपिका ने जीत दर्ज की और इसके बाद वह लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं। टोक्यो ओलंपिक में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज हैं दीपिकाइस टूर्नामेंट ने ही दीपिका के स्टार बनने के दरवाजे खोल दिए। बाद के दिनों में खुद के पास धनुष नहीं होने के कारण वह कई प्रतियोगिता में क्वालिफाई नहीं कर पायी, तब पिता ने कहा कि उनके लिए धनुष खरीद देंगे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि धनुष की कीमत दो लाख रुपये से अधिक होती है। आखिर में दीपिका के लिए धनुष भी खरीद लिया गया और वह तीरंदाजी स्कूल में दाखिल हो गईं। इसके बाद दीपिका ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, एक के बाद एक कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत को पदक दिलाए।


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