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तुम्हारे बिना, मैं एक मजबूत लड़की बनूंगी डैडी... कोविड में माता-पिता खोने के बाद 10वीं में 99.8 फीसदी लाकर टॉपर बनी वनिशा

तुम्हारे बिना, मैं एक मजबूत लड़की बनूंगी डैडी, ये लाइनें भोपाल की वनिशा पाठक ने कोविड काल में अपने माता-पिता को खोने के बाद लिखी थी। उसे भोप...

तुम्हारे बिना, मैं एक मजबूत लड़की बनूंगी डैडी, ये लाइनें भोपाल की वनिशा पाठक ने कोविड काल में अपने माता-पिता को खोने के बाद लिखी थी। उसे भोपाल की वनिशा पाठक ने साबित भी कर दिखाया है। सीबीएसई 10वीं का रिजल्ट आ गया है। वनिशा 99.8 फीसदी लाकर एमपी में भोपाल की दो लड़कियों के साथ टॉपर बनी है। पिता के खोने के बाद कविता जरिए वनिशा ने वादा किया था कि मैं आपको हमेशा प्राउड फील कराऊंगी डैडी।

सभी बच्चे जब 10वीं की परीक्षा की तैयारी में जुटे थे, तब भोपाल की वनिशा पाठक ने अपने माता-पिता को कोविड काल में खो दिया। इस दौरान उसके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट गया था। कुछ दिन बाद वह खुद को संभाली और दसवीं में 99.8 फीसदी मार्क्स के साथ वह टॉपर बनी है।


तुम्हारे बिना, मैं एक मजबूत लड़की बनूंगी डैडी... कोविड में माता-पिता खोने के बाद 10वीं में 99.8 फीसदी लाकर टॉपर बनी वनिशा

तुम्हारे बिना, मैं एक मजबूत लड़की बनूंगी डैडी, ये लाइनें भोपाल की वनिशा पाठक ने कोविड काल में अपने माता-पिता को खोने के बाद लिखी थी। उसे भोपाल की वनिशा पाठक ने साबित भी कर दिखाया है। सीबीएसई 10वीं का रिजल्ट आ गया है। वनिशा 99.8 फीसदी लाकर एमपी में भोपाल की दो लड़कियों के साथ टॉपर बनी है। पिता के खोने के बाद कविता जरिए वनिशा ने वादा किया था कि मैं आपको हमेशा प्राउड फील कराऊंगी डैडी।



शब्दों से दिया खुद को हौसला
शब्दों से दिया खुद को हौसला

वनिशा ने एक और कविता अपने पिता को खोने के बाद लिखी है, आंसू के स्थान पर शब्दों को बहने देना...। पैरेंट्स को खोने के बाद वह खुद को टूटने नहीं दिया। 16 वर्षीय वनिशा भोपाल के भेल स्थित कॉर्मेल कॉन्वेंट की छात्रा है। उसके दोस्त जब परीक्षा की तैयारियों में जुटे थे, तब वनिशा सदमे और पीड़ा से जूझ रही थी। वनिशा ने रिजल्ट आने के बाद हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए बताया कि मैंने एक हफ्ते के अंदर पापा और मां को खो दिया। मेरे सामने पूरा अंधेरा था। मुझे लगा कि मैंने अपने जीवन में सब कुछ खो दिया है।



भाई को भी संभाला
भाई को भी संभाला

मां-पिता के निधन के बाद वनिशा पूरी तरह टूट गई थी। फिर उसने अपने छोटे भाई की ओर देखा, जो कि अभी 10 साल का है। वनिशा ने कहा कि मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरे पास वह सब कुछ था। इस उम्र में, मैं उसके के लिए पिता और मां बन गई थी। मैं खुद को भाई से अलग नहीं होने दे सकती थी। मुझे मजबूत रहकर, सारी चीजों पर केंद्रित करना था। वनिशा पाठक ने परिणाम आने के बाद उन सारी चीजों को फिर से याद किया।



उनका सपना अब मेरा सपना
उनका सपना अब मेरा सपना

वनिशा ने मां-पिता को खोने के बाद कविता लिखी थी, उसमें उसने अपने पिता से वादा किया है कि मैं तुम्हारे गौरव का कारण बनूंगी...वनिशा ने पैरेंट्स को खोने का दर्द झेलते हुए आगे बढ़ने को ठान लिया है। वनिशा ने कहा कि मेरे पिता मुझे आईआईटी में देखना चाहते थे या यूपीएससी को क्रैक कर देश की सेवा करते देखना चाहते थे। उनका सपना अब मेरा सपना है।



चार विषय में मिले 100-100 नंबर
चार विषय में मिले 100-100 नंबर

वनिशा ने भोपाल की दो और लड़कियों के साथ 99.8 फीसदी मार्क्स हासिल की है। उसे अंग्रेजी, संस्कृत, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में 100 और गणित में 97 अंक मिले हैं। वनिशा ने कहा कि आपके सपनों को जीने के लिए, मैं अपने दम पर उठूंगा। उसके पिता जितेंद्र पाठक एक वित्तीय सलाहकार थे और मां डॉ सीमा पाठक एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका थीं।



अस्पताल जाते वक्त आखिरी बार देखा
अस्पताल जाते वक्त आखिरी बार देखा

वनिशा ने कहा कि आखिरी बार उन्हें जीवित तब देखा था, जब वह अस्पताल के लिए निकले थे, यह कहते हुए कि जल्द ही मिलते हैं। वनिशा ने कहा कि वह दिन अभी भी मेरे दिमाग में है। मेरे पैरेंट्स ने कहा था कि वे अपने चेकअप के बाद जल्द ही वापस आ जाएंगे, लेकिन वे कभी नहीं लौटे। मैंने आखिरी बार दो मई को मां से बात की थी। चार मई को उनकी मौत हो गई। मेरे रिश्तेदारों ने मुझे नहीं बताया क्योंकि पापा अभी भी अस्पताल में थे। वनिशा ने कहा कहा कि इससे पहले कभी मैंने असहाय महसूस नहीं की थी। कभी यह समझ में नहीं आया था कि तबाह होने का मतलब क्या होता है। मैंने 'जिम्मेदारी की ताकत' को भी कभी महसूस नहीं किया था।



भाई को देख मजबूत बनी
भाई को देख मजबूत बनी

वनिशा ने बताया कि एक दिन, मैंने अपने भाई विवान को देखा और महसूस किया कि मुझे उसके लिए मजबूत होना है। मुझे अतीत को छोड़कर आगे बढ़ना था। हर दिन, हर छोटी-बड़ी बात में मुझे हमेशा अपने माता-पिता की याद आती है। इसके बाद मैं एक कविता लिखती हूं। वनिशा अभी अपने मामा डॉ अशोक कुमार के साथ रहती है, जो भोपाल के गवर्नमेंट एमवीएम कॉलेज में प्रोफेसर हैं। वनिशा ने कहा कि अब मैं हर पल अपने माता-पिता के सपने को साकार करने के लिए जी रही हूं।





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