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जन्माष्टमी: पीढ़ियों से काशी की गलियों में मुस्लिम परिवार बना रहे हैं कृष्ण के श्रृंगार का सामान

अभिषेक कुमार झा, वाराणसी देश में के उत्सव काशी के कोयला बाजार की तंग गलियों में छोटे छोटे कमरों में कारीगरों की बारीक कलाकारी कौमी एकता क...

अभिषेक कुमार झा, वाराणसी देश में के उत्सव काशी के कोयला बाजार की तंग गलियों में छोटे छोटे कमरों में कारीगरों की बारीक कलाकारी कौमी एकता के धागे को मजबूती के साथ पिरोए हुए हैं। काशी के ये मुस्लिम बुनकर कई पीढ़ियों से कृष्ण के मुकुट, पोशाक,चूड़ी, कुंडल से लेकर तमाम ऐसी चीज़ें बना रहे हैं जो काशी ही नही देश के कई शहरों में घर-घर मे सजने वाली कृष्ण झांकियों को खूबसूरत बनाएंगे। पीढ़ियों से तैयार कर रहे हैं कृष्ण के मुकुटकोयला बाजार के रहने वाले अच्छे खान बमुश्किल दस वर्ग फ़ीट के एक कमरे में जो कि बेसमेंट में है। करीब आधे दर्जन कारीगरों के साथ के पहले मुकुट , कुंडल , पोशाक , बेल्ट, चूड़ी, बांसुरी बनाते ये कारीगर कई पीढ़ियों से कृष्ण के समान बना रहे हैं। 46 वर्षीय अच्छे खान बताते हैं कि वो 35 वर्षों से इस काम को कर रहे हैं, जन्माष्टमी पर कान्हा के सजावटी वस्तुओं को तैयार कर के वे शहर के दुकानदारों और बड़े व्यवसायियों को देते है। उसके बाद ये सभी सजावटी समान मथुरा वृंदावन, दिल्ली, आगरा, अयोध्या, राजस्थान, जैसे कई शहरों में भेजे जाते हैं। बारीक काम कम उम्र में ही कर देते है रिटायर अच्छे खान के इस कमरे के बगल में ही अब पान की दुकान चला रहे बुज़ुर्ग बताते हैं कि इस कोयला बाजार में सैकड़ो की संख्या में लोग हैं जो इस तरह के सजावट के समान कई पीढ़ियों से बना रहे हैं। यहां की बारीक कारीगरी एक उम्र तक ही सीमित है, क्योंकि बड़ी ही संजीदगी और बारीकी से डिज़ाइन तैयार किया जाता है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव आंखों पर पड़ता है। इस मुश्किल की वजह से 50 की उम्र आते आते कारीगरों को ये काम छोड़ के दूसरे रोजगार की ओर देखना पड़ता है।


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