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रहस्यमयी पातालकोट के गांवों को छू न सका कोरोना, दोपहर में यहां होता शाम का अहसास, धरातल से तीन हजार फीट है नीचे

छिंदवाड़ा यहां न तो कोविड है, न सूरज की किरणें पहुंच पाती हैं। कोरोना देश में डेढ़ साल से फैला हुआ है, लेकिन एमपी के छिंदवाड़ा जिले के रह...

छिंदवाड़ा यहां न तो कोविड है, न सूरज की किरणें पहुंच पाती हैं। कोरोना देश में डेढ़ साल से फैला हुआ है, लेकिन एमपी के छिंदवाड़ा जिले के रहस्यमय पातालकोट (Mysterious ) के एक दर्जन गांवों में कोविड का एक भी मामला नहीं है। घाटियों के बीच बसे इन गांवों में औषधियों का पौधों का खजाना है। इस क्षेत्र में चट्टानों की अधिकता के कारण लोग सीधे धूप से बचे रहते हैं। भोपाल से 250 किमी दूर सतपुड़ा की वादियों में बसे पातालकोट धुंध और मिथक की भूमि है। मान्यता यह भी है कि यह वह जगह है, जहां मां सीता पृथ्वी पर उतरी थीं, जबकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह हनुमान ने भगवान राम और लक्ष्मण को बचाने के लिए यहीं से प्रवेश किया था। इस तरह के मिथक यहां कायम हैं, इसलिए दोपहर के समय पातालकोट में शाम का अहसास होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पातालकोट में 21 गांव हैं, लेकिन एक दर्जन गांव ही यहां अच्छी तरह से बसे हुए हैं। अन्य में कुछ झोपड़ियां हैं, यहां भूरिया जनजाति के लोग रहते हैं। यह गोंड संप्रदाय है, इनके आसपास औषधीय गुणों से भरपूर पौधे रहते हैं। इसी के बीच ये लोग रहकर जीवन जीते हैं। कुछ साल पहले ये लोग घाटी के गहरे हिस्से से कुछ उपर आए हैं, तो गांव में चार से पांच घंटे तक धूप आती है। ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर नरेश लोधी ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि पातालकोट के गांवों में कोई कोविड केस नहीं है। यहां हमलोगों ने सात सौ लोगों के सैंपल लिए हैं। इसके पीछे का एक स्पष्ट कारण यह नजर आता है कि यहां बाहरी लोगों का पहुंचना मुश्किल है। कुछ साल पहले तक यहां से बाहर जाने और अंदर आने के लिए रस्सी एक मात्र सहारा हुआ करता था। अब, गांवों तक पहुंचने के लिए सड़क बन गई है। फिर भी गांव में पहुंचने के लिए यही एक कठिन रास्ता है। रहस्य की इस धरती पर आने वाले लोगों पर प्रशासन भी कड़ी नजर रखता है। बाहरी लोगों के संपर्क में नहीं होने की वजह से पातालकोट के निवासी वायरस से बच जाते हैं। बीएमओ डॉक्टर लोधी ने बताया कि एक साल पहले कोरोना की पहली लहर के दौरान यहां दो मामले मिले थे, लेकिन दोनों की ट्रैवल हिस्ट्री थी। वे अन्य जगहों से लौटे थे। पातालकोट का कोई भी निवासी संक्रमित नहीं हुआ है। बीएमओ ने कहा कि शुरुआती दौर में ग्रामीणों ने हमारी टीमों को भी यहां अनुमति नहीं दी, जिन्हें सैंपल लेने के लिए वहां पैदल ही जाना पड़ा। इसे लेकर कई तरह की अफवाहें भी उड़ीं और विरोध भी हुआ, हालांकि बाद में लोगों को समझ में आया। वहीं, तामिया ब्लॉक में आने वाले रातेड ग्राम पंचायत के सचिव अंतलाल भारती ने कहा कि हम यहां से बाहर नहीं जाते, न ही बाहरी लोग यहां आते हैं। यहां के लोग ज्यादातर अपने तक ही रहते हैं। उनके पास अपनी औषधि प्रणाली और जड़ी-बूटियों का आकर्षक ज्ञान है। मैंने यहां कोई कोविड केस नहीं देखा है। ग्रामीण अपनी पारंपरिक जीवन शैली से आज भी चिपके हुए हैं। क्षेत्र की बनावट की वजह से 2018 के अंत तक यहां बिजली नहीं थी। इसके बाद यहां बिजली पहुंचाने के लिए उर्जा विभाग ने लोगों ने ट्रांसफर्मर को टुकड़े-टुकड़े कर पीठ पर ढोए थे। 500 कोविड मरीजों का इलाज करने वाले भोपाल के डॉक्टर भुवनेश गर्ग ने कहा कि पातालकोट के निवासी इसलिए कोविड-19 से सुरक्षित हैं, क्योंकि बाहरी दुनिया के संपर्क में वे नहीं हैं। साथ ही उनकी जीवनशैली भी काफी कठोर है, जो उन्हें मजबूत बनाती है। उनके पास इलाज के अपने प्राकृतिक तरीके भी हैं, जो प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं।


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