चित्तौडगढ़ अब तक व्यापारियों को पार्टनरशिप करने के बारे में सुना होगा, लेकिन यदि व्यापार में भगवान को ही बराबर का पार्टनर बना लिया जाये, त...

चित्तौडगढ़अब तक व्यापारियों को पार्टनरशिप करने के बारे में सुना होगा, लेकिन यदि व्यापार में भगवान को ही बराबर का पार्टनर बना लिया जाये, तो इसे आप क्या कहेंगे। जी हां हम बात कर रहे चित्तौड़गढ जिले के कृष्णधाम मंडफिया स्थित सावरा सेठ की। इन्हें श्रृद्धालु अपना बिजनेस पार्टनर बनाकर व्यापार करते है, जिसके चलते प्रतिमाह उनके भंडार से निकलने वाली करोड़ों की राशि से सांवलिया जी को सेठों का सेठ साबित करने में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। ऐसे स्थापित हुए यहां सावंलिया सेठ किवदंतियों के अनुसार औरंगजेब की मुगल सेना जब मंदिरों को तोड़ रही थी, तब मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। ऐसे में संत दयाराम ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर दबा दिया। फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम का देवलोकगमन हो गया। मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां जमीन में दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गई, तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं, जो सभी बहुत ही मनोहारी थी। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फैल गई और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पंहुचने लगे। फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जाई गई, भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत के निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। 6 दशक पूर्व था छोटा सा मंदिरसांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्री कृष्ण ने वह रूप धारण किया था। व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं। लगभग 6 दशक पूर्व तक मंडफिया में सांवलिया सेठ का एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था, जहां औसतन प्रतिमाह भंडार से ढाई सौ रूपयें की राशि निकलती थी, लेकिन ज्यों-ज्यों सांवलिया जी ख्याति बढती गई। भंडार की राशि भी बढती चली गई। सांवलिया सेठ की महिमा बढने पर भंडार से अपेक्षा से कई अधिक धनराशि निकलने पर मंदिर विस्तार पर ध्यान दिया गया। जिसके फलस्वरूप पुराने मंदिर के स्थान पर अहमदाबाद के अक्षरधाम की तर्ज पर इस मंदिर का विस्तार किया गया। कई स्थानों से आते हैं श्रद्धालुयहां आज प्रतिमाह लाखों श्रद्धालु मेवाड़, मालवा, गुजरात सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से दर्शनार्थी यहां आते है। इस मंदिर की व्यवस्था के लिये मंदिर मंडल का गठन किया हुआ है, जिसमें प्रशासनिक अधिकारी के रूप में स्थाई रूप से अतिरिक्त कलक्टर को प्रभार दिया हुआ है। मंदिर मंडल के विधान के अनुसार मंदिर क्षेत्र के 16 गावों में चढावे के रूप में प्राप्त धनराशि का जनहित में उपयोग करने की व्यवस्था है।
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