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Ground Report : अब सपने में भी बाढ़, रात को उठकर देखने जाते नदी... आफत के बाद गांव का हाल देख छलनी हो जाएगा सीना

हिमांश शर्माग्वालियर केंद्रीय टीम सर्वे करने आई थी, तबाही की तस्वीरें ले गईं... हमलोगों से बात नहीं की है। बाढ़ के बाद हम बीमारी से लड़ र...

हिमांश शर्माग्वालियर केंद्रीय टीम सर्वे करने आई थी, तबाही की तस्वीरें ले गईं... हमलोगों से बात नहीं की है। बाढ़ के बाद हम बीमारी से लड़ रहे हैं...ग्वालियर (Gwalior Flood Village Ground Report) के भितरवार इलाके में नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम को देखकर ग्रामीणों ने सरकारी दावों की कलई खोल दी है। ग्वालियर शहर से करीब 80 किलोमीटर दूर भितरवार इलाके में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। भितरवार के कई गांवों में तबाही के निशान हैं। मंजर देख आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे। पीड़ितों का दर्द जानकार सीना छलनी हो जाएगा। डबरा इलाके के चांदपुर गांव में नवभारत टाइम्स.कॉम की टीम पहुंची। पानी उतरने के बाद गांव में लोग लौट आए हैं, मगर पहले की तरह रौनक नहीं है। गांव की गलियां पहले बच्चों की चहलकदमी से गुलजार रहती है, वहां कीचड़ के ढेर पड़े हैं। घर की दीवारों की जगह अब मलबे हैं। छत की जगह तिरपाल तना है। घरों की जगह लोगों ने सड़क किनारे तंबू गाड़ लिया है। पानी उतरने के बाद भी लोग अपने गांव में नहीं जा रहे हैं। सर्वे टीम ने नहीं की बात गांव की महिला ने कहा कि बाढ़ के बाद केंद्र से सर्वे के लिए टीम आई थी, बर्बादी की तस्वीरें ले गई हैं, लेकिन हमलोगों से कोई बात नहीं की है। महिला ने कहा कि बाढ़ में सब कुछ बह गया है। अब कुछ भी नहीं बचा है। छत के उपर तक पानी चला गया था। हम जो पहने थे, उसी को पहनकर वहां से आगे निकल गए। लोग कहते हैं कि अगर सड़क के उपर रहे तो गांव की झोपड़ी भी चली जाएगी। सिंध नदी से गांव में आई थी तबाही तंबू किनारे रह रहे लोगों से बात करने के बाह हमारी टीम चांदपुर गांव में पहुंची। सिंध नदी गांव के करीब से बहती है। नदी के किनारे पर कई मकान बने थे। किनारे पर कई लोगों के लिए रोजी-रोटी के साधन थे। ग्रामीणों के साथ नवभारत टाइम्स.कॉम की टीम नदी किनारे पहुंची, जहां ग्रामीणों ने बर्बादी की मंजर दिखाया है। पानी उतरने के बाद लोगों की जिंदगी पटरी पर तो लौट रही है, मगर खौफ खत्म नहीं हुआ है। लोग अब खुद को यहां से कहीं और शिफ्ट करने की मांग कर रहे हैं। एक ग्रामीण ने कहा कि हमारे पास न रहने के लिए घर है, न सोने के लिए खटिया है। पूरी रात जागकर गुजराते हैं। अब गांव में सांप और बिच्छू का डर है। अब हमें डर रहते हैं कि बाढ़ कभी भी गांव में आ सकती है। ग्रामीणों ने बताया कि हमारे गांव में कभी ऐसी तबाही नहीं आई थी। ऐसी तबाही हमलोगों ने मीडिया के जरिए उत्तराखंड त्रासदी के दौरान देखी थी। मगर अब अपने गांव में देखा है। रात में उठकर देखने आते हैं नदी चांदपुर गांव के निवासी ने कहा कि अब सपने में भी हमें बाढ़ दिखता है। रात को नींद खुल जाती है, उसके बाद हम नदी देखने आते हैं। सोचते हैं कि बाढ़ से पहले गांव से बच्चे को लेकर तो हम कम से कम यहां से भाग जाएंगे। गांव के लोगों ने कहा कि सिंध नदी के किनारे खेतों में सब्जी की खेती होती थी। लोग उसी को बेचकर अपने घर चलाते थे। मगर खेत बंजर बन गया है। गांव में फैल रहीं बीमारियां बाढ़ पीड़ित लोगों ने कहा कि अब हम बीमारियों से जूझ रहे हैं। गांव में लोग मलेरिया, उल्टी दस्त और बुखार से जूझ रहे हैं, लेकिन सही इलाज नहीं मिल पा रहा है। नई आफत के सामने लोग टूट जा रहे हैं। मदद के लिए मांग रहे कागज वहीं, सरकारी मदद गांव के लोगों तक पहुंच रही है। अभी लोगों को अनाज और आटा मिला है। कुछ लोगों को आर्थिक मदद भी मिली है। मगर गांव के लोगों के सामने दूसरी समस्या यह है कि सरकारी मदद के लिए उनसे पेपर मांगा जा रहा है। गांव के लोगों ने कहा कि बाढ़ में तो सब कुछ बह गया है, हम उन्हें पेपर कहां से दिखाए। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि बिजली बिल माफ कर दें। गांव के लोगों ने कहा कि हमारे पास कुछ बचा ही नहीं है तो हम बिजली बिल कहां से जमा करेंगे। सरकार की तरफ से जैसा कहा जा रहा है, वैसी मदद नहीं मिल रही है। कुछ लोगों ने बताया कि अभी हमें पचास किलो आटा मिला है, पैसे नहीं मिले हैं। पहनने के लिए हमारे पास कपड़ा तक नहीं है। हम बिना कपड़े के कैसे रह पाएंगे। अब कुछ नहीं बचा है ग्रामीणों ने कहा कि हमारे पास अब कुछ नहीं बचा है। बस किसी तरह से जिंदगी बची है। अब मांगकर हम गांव जीवन बसर कर रहे हैं। अपने ही घर में हमें अब डर लग रहा है। नदी का पानी बढ़ते ही हम अब सड़क की तरफ भाग रहे हैं। गांव में रहकर हम जिंदगी नहीं जी रहे, घर से मलबे निकालकर फेंक रहे हैं। बच्चों की जिंदगी गांव में मुश्किल हो गई है।


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