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कोई बिल्डर बना तो किसी ने रियल एस्टेट में लगाया पैसा...सुपरटेक के 'खेल' में कितने गुनहगार?

नोएडा सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर को तोड़ने के फैसले के साथ नोएडा अथॉरिटी की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी भी की है। कोर्...

नोएडा सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर को तोड़ने के फैसले के साथ नोएडा अथॉरिटी की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी भी की है। कोर्ट ने कहा है कि नोएडा अथॉरिटी की बिल्डर से मिलीभगत थी। इसके साथ ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। बात अगर प्रॉजेक्ट से जुड़े अधिकारियों की करें तो उनकी कार्यशैली न तो तब छिपी थी और न अब। अधिकतर जिम्मेदारों की दिल्ली-एनसीआर में बेहिसाब प्रॉपर्टी है। यही नहीं कई तो रियल एस्टेट सेक्टर में खुद ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उतरे हुए हैं। अब अगर इनकी शासन स्तर से संपत्ति को लेकर कोई जांच करवाई गई तो और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। एमराल्ड कोर्ट के नक्शे में संशोधन को अहम मंजूरी देने वाले एक अधिकारी जिनके साइन भी सामने आए हैं, उनके बेटों के नाम से दो रियल एस्टेट के प्रॉजेक्ट एनसीआर में हैं। एक ग्रेटर नोएडा में इस समय चल रहा है। दूसरा गाजियाबाद में बना है। उसमें फ्लैट बेचे जा चुके हैं। तीसरे प्रॉजेक्ट के लिए भी एक अथॉरिटी में इनके बेटे ने आवेदन किया हुआ है। बात अगर इन तत्कालीन अधिकारियों की नोएडा अथॉरिटी में कार्यकाल की करें तो भगदड़ 2014 में हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद ही मच गई थी। एक अधिकारी ने तो वीआरएस ले लिया था। इसके कुछ समय बाद जिले की ही दूसरी अथॉरिटी में कांट्रैक्ट के आधार पर कुछ दिन काम भी किया। वहीं कुछ अधिकारियों की दूसरी रियल एस्टेट कंपनियों में मोटे निवेश की भी चर्चाएं हैं। वह उन प्रॉजेक्ट से जुड़ी पैरवी या प्रकरण में अक्सर नजर भी आते हैं। इन अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं इसका सीधा जवाब यह है कि सत्ता में इनकी पहुंच है। 2014 के बाद ही हो जानी चाहिए थी जांच और कार्रवाई हाई कोर्ट ने सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के टावर नंबर-16 और 17 को अवैध करार देते हुए तोड़ने का आदेश 2014 में दिया था। इसके साथ ही इसके लिए जिम्मेदार नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए कहा था। उस समय जिम्मेदारों का रसूख इस कदर था कि कोई जांच और कार्रवाई नहीं हुई। अथॉरिटी अपने स्तर पर हुई कमियों का आकलन और विभागीय कार्रवाई कर सकती थी। कम से कम उस अधिकारी पर कार्रवाई जरूर हो सकती थी, जिसने आरटीआई का जवाब तक आरडब्ल्यूए को नहीं देने दिया। यही नहीं प्रॉजेक्ट का नक्शा तक नहीं देखने दिया गया था।


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