पटना जातिगत जनगणना को लेकर देश की सियासत में बहस हो रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरी तरह आर-पार के मूड में दिख रहे हैं। केंद...
पटना जातिगत जनगणना को लेकर देश की सियासत में बहस हो रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरी तरह आर-पार के मूड में दिख रहे हैं। केंद्र सरकार जातीय जनगणना कराने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया जा चुका है। जातीय वोटों की राजनीति करनेवाली पार्टियां जातिगत जनगणना की मांग कर रही है। इन सबके बीच इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने दावा किया है कि देश के ग्रामीण इलाकों में आधी आबादी पिछड़ी जातियों की है। ग्रामीण इलाकों में 44.4 फीसदी OBC रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 17 करोड़ 24 लाख ग्रामीण परिवार है। इनमें 44.4 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी से हैं। जो कि बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जैसे सात राज्यों में रहते हैं। वहीं, राजनीतिक भागीदारी की बात करें तो इन राज्यों से कुल मिलाकर 235 लोकसभा सदस्य संसद पहुंचते हैं। ओबोसी आबादी की बात करें तो बिहार का देश में दूसरा स्थान है। बिहार के गांवों में 58.1% OBC आबादी ग्रामीण क्षेत्र में ओबीसी परिवारों में पहले स्थान पर तमिलनाडु है। यहां इनकी आबादी 67.7% है। इसके बाद बिहार का नंबर आता है। बिहार में 58.1% आबादी ओबीसी की है। जबकि तेलंगाना में 57.4%, उत्तर प्रदेश में 56.3%, केरल में 55.2%, कर्नाटक में 51.6% और छत्तीसगढ़ में 51.4% आबादी अन्य पिछड़ी जातियों की है। सबसे कम नागालैंड 0.2% आबादी ओबीसी की है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के सर्वेक्षण के जरिए इस महीने की शुरुआत में जारी किए आंकड़ों से पता चलता है कि 21.6% अनुसूचित जाति (एससी), 12.3% अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 21.7 फीसदी अन्य समूहों से हैं। वहीं कुल ग्रामीण परिवारों में से 9.3 करोड़ या 54% कृषि पर निर्भर हैं। राजनीतिक दलों को चाहिए जातीय जनगणना जातीय जनगणना की मांग करने वाले दलों का कहना है कि आबादी के हिसाब से राजनीतिक भागीदारी नहीं है। एक बार संख्या का पता चले तो उसके आधार पर उनकी भागीदारी भी बढ़ेगी। जातीय जनगणना के पीछे एक तर्क यह भी है कि संख्या का सही अनुमान लगने पर पिछड़ी जातियों के विकास को लेकर सही दिशा में सटीक योजनाएं बन सकेंगी। इस बात को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार दुहरा चुके हैं। मगर जातियों की राजनीति करनेवाली पार्टियों की सीधे-सीधे नजर देश के मौजूदा आरक्षण कोटे पर होती है। जिसमें ये लोग आबादी के हिसाब से रिजर्वेशन की मांग करते हैं, न कि शिक्षा और आर्थिक स्थिति के हिसाब से।
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