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...जब पटना में एक कमरे के लिए मंत्री और IAS में ठनी तो CM ने कैसे सुलझाया? जानिए

IAS अफसर और CM के संबंधों पर कई कहानियां हो सकती है। दोनों की प्रतिबद्धता जनता के प्रति ही होती है। मगर तरीका अलग-अलग होता है। पूर्व ब्यूरोक...

IAS अफसर और CM के संबंधों पर कई कहानियां हो सकती है। दोनों की प्रतिबद्धता जनता के प्रति ही होती है। मगर तरीका अलग-अलग होता है। पूर्व ब्यूरोक्रेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर के साथ अपने संबंधों से जुड़ी यादों को तीन कहानियों के जरिए साझा किया है।

पूर्व ब्यूरोक्रेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने अपनी पुस्तक 'रिलेन्ट्लेस' में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया है। जिसमें उन्होंने पहली मुलाकात का जिक्र किया है। इसके अलावा एक कमरे के लिए मंत्री और आईएएस के जिद्द की भी चर्चा की है।


...जब पटना में एक कमरे के लिए मंत्री और IAS में ठनी तो CM ने कैसे सुलझाया? जानिए

IAS अफसर और CM के संबंधों पर कई कहानियां हो सकती है। दोनों की प्रतिबद्धता जनता के प्रति ही होती है। मगर तरीका अलग-अलग होता है। पूर्व ब्यूरोक्रेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर के साथ अपने संबंधों से जुड़ी यादों को तीन कहानियों के जरिए साझा किया है।



जब कर्पूरी ठाकुर से पहली बार मिले यशवंत सिन्हा
जब कर्पूरी ठाकुर से पहली बार मिले यशवंत सिन्हा

केंद्र से बिहार मेरी वापसी के वक्त राज्य में जगन्नाथ मिश्र के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी लेकिन 1977 के विधानसभा चुनाव में वहां जनता पार्टी सत्ता में आ गई और कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री हुए। एक दिन मुख्य सचिव शरण सिंह का फोन मेरे पास आया। वह यह जानना चाह रहे थे कि क्या मैं कर्पूरी ठाकुर के प्रमुख सचिव के रूप में काम करना पसंद करूंगा? उन्होंने बताया कि इस पद के लिए दो अन्य अधिकारियों के नामों पर भी विचार चल रहा है। मैं उस वक्त तक कर्पूरी ठाकुर से परिचित नहीं था लेकिन मुझे यह पद दिलचस्प संभावनाओं से भरा लगा। हालांकि शरण सिंह ने मुझे आगाह भी किया कर्पूरी ठाकुर बेहद बेतरतीब से रहने वाले इंसान हैं। उनके साथ काम करने में मुझे कड़ी मश्क्कत करनी होगी। मैंने यह सब सुनकर भी अपनी सहमति दे दी क्योंकि उस वक्त तक मेरी तैनाती पशुपालन मंत्रालय में थी जोकि मुझे बहुत आकर्षित नहीं कर रहा था। मेरे सहयोगी आईएएस अफसरों ने जब मुझे मिले इस प्रस्ताव के बार में सुना तो वे सभी उत्साहित दिखे। उस दौर में इस पद पर चयन के लिए कैबिनेट की मंजूरी अनिवार्य हुआ करती थी। अंतत: मेरे नाम पर कैबिनेट की मंजूरी मिल गई और जब मुझे इस पद के लिए ट्रांसफर लेटर मिला तो मैंने मुख्यमंत्री से मुलाकात करने का निश्चय किया। जब मैं मुलाकात करने पुराने सचिवालय भवन स्थित उनके कार्यालय पहुंचा तो वहां लोगों का हुजूम था। मैंने उनके स्टाफ से मुख्यमंत्री से मिलने की इच्छा जताई तो उन्होंने बहुत ही बेरुखी के साथ पूछा कि क्यों मिलना है? जब मैंने उन्हें अपना नाम बताया तो अचानक उनका व्यवहार बदल गया। वह मुझे बहुत आदर के साथ मुख्यमंत्री कक्ष में ले गए। वहां भी उतनी ही भीड़ थी। खैर किसी तरह उनकी मुझ पर नजर गई। चूंकि मुझे यह बताया गया था कि कर्पूरी ठाकुर अंग्रेजी पसंद नहीं करते, इस वजह से मैंने बहुत शुद्ध हिंदी में उन्हें परिचय दिया कि मेरा नाम यशवंत सिन्हा है, मैं आपका प्रमुख सचिव नियुक्त हुआ हूं। कर्पूरी ठाकुर ने मेरी तरफ देखा और सांत्वना देने वाले भाव में बोले- कोई बात नहीं। पहली मुलाकात भले इतनी ठंडी रही हो लेकिन बाद के दिनों में मैंने अपनी इस नई भूमिका का पूरा आनंद लिया बल्कि मैं और कर्पूरी ठाकुर एक दूसरे के बहुत नजदीकी भी हो गए।



CM ने IAS के घर जाकर पूछा, CS बनेंगे?
CM ने IAS के घर जाकर पूछा, CS बनेंगे?

मेरे मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव बनने के बाद राज्य के मुख्य सचिव शरण सिंह की केंद्र सरकार में नियुक्ति हो गई। ऐसे में राज्य को नया मुख्य सचिव चाहिए था। कर्पूरी ठाकुर ने मुझसे कहा कि वह ऐसा मुख्य सचिव चाहते हैं जो उत्कृष्ट भी हो और ईमानदार भी। इस पद के लिए पीएस अप्पू ठीक बैठते थे, जिनके नाम पर विचार किया जा रहा था। एक दिन हम लोग राज्यपाल से मिलने के लिए राजभवन गए हुए थे। वहां से निकल रहे थे तो कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि वह अप्पू के घर जाना चाहते हैं, जो कि करीब ही रहते थे। बिना पूर्व सूचना के हम लोगों को अपने घर पर देखकर अप्पू हतप्रभ रह गए। कर्पूरी ठाकुर ने उनसे उनके घर आने की वजह बताई- अप्पू साहब, हम आपसे यह पूछने के लिए आए हैं कि क्या आप मुख्य सचिव बनना चाहेंगे? यह सुनकर अप्पू और भी ज्यादा आश्चर्य में पड़ गए। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें इस प्रस्ताव को स्वीकार करने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उनकी कुछ शर्तें हैं। एक तो यह कि जब तक कोई बहुत आपात स्थिति न हो, उन्हें छुट्टी के दिन डिस्टर्ब न किया जाए, यहां तक कि फोन पर भी नहीं। दूसरी यह कि उन्हें किसी तरह का दबाव पसंद नहीं। वह दबाव चाहे मुख्यमंत्री का हो या उनके मंत्रियों का। कर्पूरी ठाकुर ने अप्पू की इन दोनों शर्तों को स्वीकार कर लिया और वह राज्य के नए मुख्य सचिव बना दिए गए। हालांकि उनका कार्यकाल महज डेढ़ साल का ही रहा। उनकी भी नियुक्ति केंद्र सरकार में हो गई और उन्होंने पटना छोड़ दिया।



मंत्री के लिए कमिश्नर को कमरे से हटाना पड़ा
मंत्री के लिए कमिश्नर को कमरे से हटाना पड़ा

कर्पूरी ठाकुर उन राजनेताओं में थे जो अधिकारियों को पूरा सम्मान दिया करते थे लेकिन यह बात उनके मंत्रियों के लिए नहीं कही जा सकती। ऐसा ही एक वाकया याद आता है। कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल के एक मंत्री अपने दौरे के समय बगैर पूर्व सूचना के डाकबंगला पहुंचे। उन्होंने वहां के कक्ष संख्या एक में रुकने की इच्छा जताई क्योंकि यह दूसरे कमरों के मुकाबले ज्यादा सुसज्जित हुआ करता था लेकिन यह कमरा पहले से ही पटना के कमिश्नर जीएस ग्रेवाल को आवंटित था जोकि 1957 बैच के आईएएस थे। ग्रेवाल ने वह कक्ष छोड़ने से इनकार कर दिया। यह बात उस मंत्री को बहुत नगवार गुजरी। उन्होंने पटना पहुंचते ही कर्पूरी ठाकुर से मुलाकात की और उस अधिकारी को हटाने को कहा। कर्पूरी ठाकुर के लिए उस मंत्री की बात को टाल पाना इसलिए मुमकिन नहीं हो पा रहा था कि वह जनसंघ घटक दल से मंत्री था। इस घटक दल की जनता पार्टी सरकार में बहुत महती भूमिका थी। जो भी हो रहा था, उससे मैं खुश नहीं था लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों में ज्यादा कुछ कर पाना मेरे अधिकार में नहीं था। मैंने ग्रेवाल को फोन कर कहा- ब्यूरोक्रेट और मंत्री की लड़ाई कभी बराबरी की नहीं होती। हमेशा इसमें अधिकारी को ही भुगतना पड़ता है। लेकिन हमें जनहित और अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं करना चाहिए। इसलिए उन्हें ट्रांसफर के लिए तैयार रहना चाहिए।

( यशवंत सिन्हा की पुस्तक 'रिलेन्ट्लेस', प्रकाशक: ब्लूम्सबरी, इंडिया से साभार)





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