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5 साल पहले पति की कैंसर से मौत, पत्नी ने 19 साल पुराने केस में बेकसूर साबित करा दी अंतिम सलामी

वडोदरा/अहमदाबाद गुजरात के वडोदरा की रहने वाली आशा गुप्ता के पति ने पांच साल पहले कैंसर बीमारी से जूझते हुए दम तोड़ दिया। पति तो गुजर गए ल...

वडोदरा/अहमदाबाद गुजरात के वडोदरा की रहने वाली आशा गुप्ता के पति ने पांच साल पहले कैंसर बीमारी से जूझते हुए दम तोड़ दिया। पति तो गुजर गए लेकिन उनके दामन पर एक दाग लगा था। दाग था वसूली और धमकी से जुड़े एक केस का। यह लड़ाई हाई कोर्ट तक गई। आशा ने पति की मौत के बाद इस लड़ाई का बीड़ा उठाया और आखिरकार पति को बेकसूर साबित कराकर उन्हें अंतिम सलामी दी। गुजरात हाई कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए आरोपी ललित गुप्ता को 19 साल पुराने मामले में बेकसूर करार दिया। 2002 में ललित और उनके दोस्त रत्नाकर राहुरकर पर वसूली और धमकी देने का केस दर्ज हुआ था। 19 साल पहले वडोदरा के मजिस्ट्रेस कोर्ट से चली आ रही कानूनी लड़ाई का फैसला मंगलवार को आ गया। ललित और रत्नाकर पर वडोदरा के राओपुरा थाने में केस दर्ज हुआ था। 2008 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दोनों को आरोपी करार देते हुए 3 साल कैद की सजा सुनाई। दो साल बाद सेशन कोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा। इसके बाद दोनों दोस्तों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यह मामला चल ही रहा था कि 2016 में ललित गुप्ता की मौत कैंसर की वजह से हो गई। ललित की मौत के बाद आशा गुप्ता सामने आईं और पति को बेगुनाह साबित करने की जंग लड़ने का फैसला लिया। हाई कोर्ट के आदेश पर खुशी जाहिर करते हुए गुप्ता के बड़े बेटे हितेश ने कहा, 'यह सम्मान की लड़ाई थी। मौत की घड़ी में भी मेरे पिता इस केस को लेकर ही परेशान थे। वह बेगुनाही साबित करना चाहते थे। पिता के जाने के बाद हमने केस लड़कर उनके नाम पर लगा दाग मिटाने का फैसला किया था।' हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की तरफ से धमकी और वसूली के मुख्य गवाह का परीक्षण नहीं किया गया। कोर्ट ने रिकॉर्ड में गवाह की ऐफिडेविट का संज्ञान भी नहीं लिया। ललित गुप्ता कांग्रेस से जुड़े हुए स्थानीय नेता थे और उनके दोस्त एक मीडियाकर्मी। हाई कोर्ट ने कहा, 'यह घटना 2002 के दंगे के तुरंत बाद सामने आई थी। ललित कांग्रेस से जुड़े हुए थे, जो उस समय सत्ता में भी नहीं थी। कोर्ट ने बिना पूरी तरह परीक्षण और सत्यता की जांच के ही सजा सुना दिया था।'


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