Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

Breaking News:

latest

जिंदगी के साथ उम्मीदें भी खत्म! एक-एक घर छोड़ रोते-बिलखते कहां जा रहे कश्मीरी पंडित?

सलीम पंडित, श्रीनगर पिछले कुछ दिनों में कश्मीर में अल्पसंख्यकों पर नए हमले शुरू हो गए हैं। आतंकवादियों ने तीन दिनों में चार अल्पसंख्यक सम...

सलीम पंडित, श्रीनगर पिछले कुछ दिनों में कश्मीर में अल्पसंख्यकों पर नए हमले शुरू हो गए हैं। आतंकवादियों ने तीन दिनों में चार अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्याएं कीं। श्रीनगर में सरकारी स्कूल के दो शिक्षकों की हत्या के बाद यह दहशत और बढ़ गई। इस घटना के बाद से यहां कश्मीरी पंडितों के कई परिवारों ने पलायन शुरू कर दिया है, तो कई अन्य परिवार अगले कुछ दिनों में घाटी छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। दर्जनों कश्मीरी पंडित परिवारों को शेखपोरा छोड़ते हुए देखा गया। यह वह इलाका है जो 2003 में बडगाम जिले में खास कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए बसाया गया था। 2015 में प्रधानमंत्री के शुरू किए गए एक विशेष पैकेज के तहत बेटे की नौकरी लगी थी लेकिन शारदा देवी ने अपने बेटे और बहू के साथ शनिवार को चुपचाप घर छोड़ दिया और कैब बुक करके चली गईं। 'सिर्फ कॉलोनी में सुरक्षित, लेकिन बाहर क्या?' एक अन्य कश्मीरी पंडित ने कहा कि हालिया हत्याओं के चलते वे लोग बहुत डरे हुए हैं। उनकी इलाके से बाहर कदम रखने की हिम्मत नहीं है। उन्होंने कहा, 'हम इस कॉलोनी के अंदर सुरक्षित हैं क्योंकि इसमें उचित सुरक्षा है, लेकिन हम काम के लिए बाहर नहीं जा सकते। हम में से कुछ को दफ्तरों में जाना पड़ता है और इस तरह हर समय घर के अंदर नहीं रह सकते हैं।' खो गई नए जीवन की उम्मीदें कश्मीरी पंडितों के परिवार जो हाल ही में घाटी लौटे थे, उन्हे उम्मीद थी कि बच्चों को सरकारी नौकरी मिलने के बाद वे लोग कश्मीर में फिर से अपना नया जीवन शुरू करेंगे। सरकार ने उन्हें शेखपुरा में फ्लैट भी आवंटित किए थे। लेकिन लक्षित हत्याओं ने उन्हें एक बार फिर निराश कर दिया है। 'एक बार फिर पलानय को हुए मजबूर' शोपियां से अपने परिवार के साथ बाहर आए 51 वर्षीय कश्मीरी पंडित ने कहा, 'हमने 1990 के दशक में सबसे बुरे समय में भी घाटी नहीं छोड़ी थी, लेकिन अल्पसंख्यक समुदायों की लक्षित हत्या ने अब हमें यहां से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है।'

'बेटे के साथ नई उम्मीदों की भी हत्या' मारे गए स्कूल शिक्षक दीपक चंद की मां कांता देवी ने कहा कि सरकार उनके बेटे की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकी। हम लोगों ने 1990 के दशक में घाटी छोड़ दी थी। उम्मीद लेकर लौटे थे लेकिन बेटे के साथ सारी उम्मीदें भी मर गईं। 'आतंकियों ने दी हमें भी धमकी' दीपक चंद के चचेरे भाई विक्की मेहरा ने कहा कि कश्मीर 'हमारे लिए नर्क है, स्वर्ग नहीं। यह घाटी में 1990 की स्थिति फिर से दोहराने जैसा हो रहा है। सरकार हमारी रक्षा करने में विफल रही है।' विक्की ने कहा कि उन्होंने दीपक को फोन किया था, वह कॉल आतंकी ने उठाया और उन लोगों को भी धमकी दी। 'दोहरा रहा 1990 का सीन' कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टीकू ने बताया बडगाम, अनंतनाग और पुलवामा जैसे विभिन्न क्षेत्रों से 500 से ज्यादा लोगों ने पलायन शुरू कर दिया है। कुछ गैर-कश्मीरी पंडित परिवार भी हैं जो चले गए हैं। यह 1990 की तरह सीन हो रहा है, जब सैकड़ों परिवार अपना सबकुछ छोड़कर यहां से जान बचाकर भागने को मजबूर हुए थे। हमने जून में उपराज्यपाल के कार्यालय से मिलने का समय मांगा था, लेकिन अब तक समय नहीं दिया गया है। कश्मीर से जम्मू की तरफ जा रहे एक अन्य कश्मीरी पंडित संगठन ने कहा कि समुदाय के कुछ कर्मचारी, जिन्हें 2010-11 में पुनर्वास पैकेज के तहत सरकारी नौकरी मिली थी, उन्होंने डर से चुपचाप जम्मू का रुख करना शुरू कर दिया है। उन्होंने प्रशासन पर सुरक्षा न देने का भी आरोप लगाया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस बीच प्रशासन ने अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों को 10 दिन की छुट्टी दी है।


from Hindi Samachar: हिंदी समाचार, Samachar in Hindi, आज के ताजा हिंदी समाचार, Aaj Ki Taza Khabar, आज की ताजा खाबर, राज्य समाचार, शहर के समाचार - नवभारत टाइम्स https://ift.tt/3iNzj0H
https://ift.tt/2YzdN8x

No comments