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एमपी-राजस्थान में बागी छुड़ा रहे बीजेपी के पसीने, उपचुनाव की नैया कैसे लगेगी पार? गुणा-गणित समझिए

भोपाल/जयपुर देश के दो बड़े राज्यों में हो रहे उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी बागियों से जूझ रही है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी ने...

भोपाल/जयपुर देश के दो बड़े राज्यों में हो रहे उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी बागियों से जूझ रही है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी नेतृत्व के पसीने छूट रहे हैं। एमपी में खंडवा लोकसभा के साथ पृथ्वीपुर, रैगांव और जोबट विधानसभा सीट पर उपचुनाव है। जबकि राजस्थान में वल्लभनगर और धरियावद में वोटिंग होनी है। राजस्थान में वसुंधरा की एक नहीं चली राजस्थान की वल्लभनगर और धरियावद सीट पर हो रहे उपचुनावों में बीजेपी चक्रव्यूह में फंसती दिख रही है। इन दोनों ही सीटों पर बागी प्रत्याशियों ने चिंताएं बढ़ा दी है। वल्लभनगर सीट पर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने सांसद सीपी जोशी की सुनी। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जनता सेना के रणधीर सिंह भिंडर को पार्टी में शामिल करके उनकी पत्नी दीपेंद्र कंवर को प्रत्याशी बनाना चाहती थीं। टिकट नहीं मिलने से नाराज भिंडर ने अपनी पत्नी दीपेंद्र कंवर से निर्दलीय नामांकन दाखिल कराया। वहीं, बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ चुके उदयलाल डांगी ने भी बगावत कर दी। डांगी ने हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से ताल ठोक दी। वहीं, धरियावद सीट से दिवंगत विधायक गौतम मीणा के पुत्र कन्हैया लाल मीणा का टिकट लगभग फाइनल था। कन्हैया लाल मीणा ने नामांकन की तैयारी के लिए 600 से ज्यादा गाड़ियों के काफिले और अन्य तैयारियां पूरी कर ली थी। लेकिन अंतिम समय में कन्हैया लाल मीणा का टिकट कट गया। पार्टी ने खेत सिंह मीणा को उम्मीदवार बना दिया। गौतम लाल मीणा वसुंधरा राजे गुट के हैं और राजे चाहती थीं कि कन्हैयालाल मीणा को टिकट मिले। लेकिन पार्टी ने उनकी नहीं मानी। अब राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पूनिया के लिए दोहरी मुसीबत है। बागियों से सांसत में शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में भी बागियों से बीजेपी जूझ रही है। यहां लोकसभा की खंडवा और विधानसभा की पृथ्वीपुर, रैगांव और जोबट सीट पर चुनाव है। मगर बागी इन सीटों पर दो-दो हाथ करने के लिए तैयार बैठे हैं। खंडवा लोकसभा सीट से नंद कुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह को टिकट मिलने की उम्मीद थी। परिवारवाद का हवाला देकर पार्टी ने रेस से बाहर कर दिया। दरअसल, पार्टी ओबीसी कार्ड खेलना चाहती थी और ज्ञानेश्वर पाटिल पर दांव लगाया गया। हर्ष के समर्थक चुनाव से दूरी बना लिए हैं। सतना के रैगांव सीट पर पूर्व विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन के बाद सियासी विरासत संभाल रहे बेटे पुष्पराज बागरी और छोटे बेटे देवराज की पत्नी वंदना पार्टी उम्मीवार के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गए। यहां से पार्टी ने जिला महामंत्री प्रतिमा रावत को मैदान में उतारा है। वहीं, जोबट और पृथ्वीपुर में बाहरियों को टिकट देना भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबत बन गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा बागियों को मनाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। मगर मामला बनता नहीं दिख रहा। राजस्थान बीजेपी गुटबाजी की शिकार है। वसुंधरा राजे प्रदेश में अपना सिक्का चलाना चाहती हैं। मगर केंद्रीय नेतृत्व सुनने को तैयार नहीं हैं। सीपी जोशी पर फिलहाल दिल्ली मेहरबान दिख रहा है। गुलाबचंद कटारिया भी बीच-बीच में कुलाचें भरते रहते हैं। इसी का नतीजा है कि बागियों को वरदहस्त हासिल हो जाता है और वो नेतृत्व के फैसले को चुनौती देने तक की हैसियत में आ जाते हैं। मध्य प्रदेश में फिलहाल शीर्ष नेतृत्व में उपचुनाव को लेकर टसल नहीं दिख रही मगर स्थानीय स्तर पर मामला काफी उलझा हुआ दिख रहा है।


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