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कौन थे हसन खान मेवाती,जो राणा सांगा के साथ बाबर से लड़े, मोहन भागवत ने किया जिक्र

जयपुर RSS के स्थापना दिवस और विजयादशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर जनसंख्या और आंतकवाद के मुद्दे को उठा दिया। नागपुर मे...

जयपुरRSS के स्थापना दिवस और विजयादशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर जनसंख्या और आंतकवाद के मुद्दे को उठा दिया। नागपुर में हुए कार्यक्रम मे जहां सीधे तौर पर बढ़ती जनसंख्या के लिए मुस्लिम समाज को जिम्मेदार ठहराया। वहीं मुस्लिम समाज को जोड़े रखना भी नहीं भूले। दरअसल भागवत ने कहा कि वे क्वार्टरमास्टर अब्दुल हमीद (जिन्हें 1965 के भारत-पाक युद्ध में उनकी वीर भूमिका के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था) या हसन खान मेवाती जैसे देशभक्तों का अनुसरण कर सकते हैं, जिन्होंने राणा सांगा के साथ बाबर से लड़ाई लड़ी थी। क्यों किया हसन खान मेवाती का जिक्रजानकारों की मानें, तो यहां उनका आशय मुस्लिम समाज को जोड़े रखते हुए उन्हें जनसंख्या नियंत्रण का संदेश देना था। यही वजह थी कि उन्होंने अपने संबोधन में हसन खान मेवाती का जिक्र किया। अपने संबोधन के दौरान भागवत ने जनसंख्या नीति सुधार पर भी जोर दिया। साथ ही कश्मीर में अल्पसंख्यकों की हत्या , चीन और पाकिस्तान के मुद्दे को भी उठाया। वहीं ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी नियंत्रण की बात कहीं। कौन है हसन खान मेवाती हसन खान मेवाती मेवात वंश के राजा थे, जिनकी राजधानी अलवर थी। दर्ज इतिहास के अनुसार जब पानीपत युद्ध के बाद बाबर दिल्ली और आगरा में अपनी सल्लनत (अधिकार) चाहता था, तब महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड) और हसन खां (मेवात) बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामने खडे थे। बाबर ने हसन खान मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये उन्हें इस्लाम का वास्ता दिया तथा एक लडाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खान के पुत्र को बिना शर्त छोड दिया, लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने धर्म का वास्ता काम नहीं आया। पहले भी भागवत कर चुके हैं मुस्लिम नायकों का जिक्र उल्लेखनीय है कि विजयदशमी पर्व पर हुए नागपुर संबोधन से पहले भी भागवत हसन खान मेवाती का दिल्ली में हुए कार्यक्रम में जिक्र कर चुके हैं। दरअसल वीर सावरकर पर छपी एक किताब का विमोचन करने पहुंचे भागवत ने यहां भी मुस्लिम समाज को हसन खान मेवाती सहित अन्य मुस्लिम नायकों को अपना आदर्श बनाने की सलाह दी थी। जानकारों की मानें, तो इसके पीछे कि वजह भी है कि कट्टर हिंदूवादी संगठन के रूप में पहचाने रखने वाला आरएसएस अब इस धुरी से अलग आइडेंटिटी बनाना चाहता है।


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