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जबरन नील की खेती...किसानों पर यातनाएं, फिर बापू के चंपारण सत्याग्रह से हिल उठी थी अंग्रेजी सत्ता

मोतिहारी महात्मा गांधी को चम्पारण सत्याग्रह (Mahatma Gandhi Champaran Satyagrah) से विश्व में प्रसिद्धि मिली। अंग्रेजों के खिलाफ हुए सत्य...

मोतिहारी महात्मा गांधी को चम्पारण सत्याग्रह (Mahatma Gandhi Champaran Satyagrah) से विश्व में प्रसिद्धि मिली। अंग्रेजों के खिलाफ हुए सत्याग्रह में नील की खेती करने वाले किसानों को संगठित कर महात्मा गांधी ने आन्दोलन की आधारशीला रखी थी। चम्पारण नील की खेती के लिए सदियों से प्रसिद्ध रहा। किसानों पर तीन कठिया प्रथा लागू कर अंग्रेज जबरन नील की खेती कराते थे। नील की खेती नहीं करने वाले किसानों के जमीन को नीलाम करने के साथ-साथ बेरहमी से पिटाई की सजा भुगतनी पड़ती थी। अंग्रेजों की क्रूरता से परेशान होकर नील के किसानों ने आन्दोलन का मन बनाया और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को नेतृत्व करने के निमंत्रण दिया था। नील की खेती के लिए अंग्रेजी सत्ता चम्पारण की जमीन को उपयुक्त मानती थी। इस वजह से किसानों से जबरन नील की खेती कराकर बड़ा मुनाफा अंग्रेज कमाते थे। मुनाफे के लालच में अंग्रेज किसानों पर जुल्म करते थे। उस समय यूरोपीय देशों में नील की बड़ी मांग थी और चम्पारण की भूमि नील उत्पादन के लिए उपयुक्त थी। मुफ्त में मेहनती किसान मिल रहे थे। इस वजह से अंग्रेजी सत्ता ने किसानों का दोहन शुरू किया और नील की खेती को बढ़ाने के लिए तरह-तरह के कानून को लागू कर शोषण करना शुरू किया। चम्पारण में लागू किया गया था तीनकठिया कानून चम्पारण में तीनकठिया कानून लागू किया गया। इस कानून में किसानों को एक बीघा जमीन में से तीन कट्ठा जमीन में नील की खेती करना अनिवार्य कर दिया गया। नील के उपज होने से एक दो फसल के बाद जमीन बंजर हो जाती थी, जिससे किसान नील की खेती करना नहीं चाहते। चम्पारण के किसानों के उत्पादन नील के बीज की पेराई का काम घोडासहन प्रखंड के भेलवा कोठी में किया जाता था, जहां किसान कंधे के सहारे पत्थर के बने बड़े रोलर को बीज पर चलाते थे। बीज से निकलने वाले रस को जमाकर सुखाया जाता और फिर उसकी टिकिया बनाकर घोडासहन से ट्रेन के जरिए निर्यात किया जाता था। किसानों से जबरन नील की खेती कराते थे अंग्रेज भेलवा के पूर्व मुखिया जयप्रकाश सिंह उर्फ चुन्नु सिंह बताते हैं कि उनके दादा अंग्रेजों के शोषण के शिकार होने वाले किसानों में एक हुआ करते थे। वे बताते थे कि अंग्रेज किसानों से जबरन नील की खेती कराते और खेती नहीं करने वाले किसानों को तरह तरह की यातनाएं दी जाती थी। जबकि नील की खेती करने से खेत बंजर हो जाते। इस प्रकार एक बीघा जमीन में तीन कट्टा में नील की खेती होने से खेत बंजर होने के बाद किसान अंग्रेजों की यातना से बचने के लिए दूसरे तीन कट्टा जमीन में नील की खेती करते और इस प्रकार पूरा खेत बंजर हो जाता, तब नील की खेती नहीं करने और लगान के रूप में नील नहीं मिलने पर अंग्रेजी हुकूमत जमीन की नीलाम कर देता। किसानों ने आंदोलन के लिए गांधी जी को बुलाया था वहीं महात्मा गांधी सेवा समिति भेलवा के सचिव डॉ सुरेश प्रसाद सिंह बताते है कि अंग्रेज किसानों पर जुल्म करते थे, जिस कारण किसानों ने एकजुट होकर महात्मा गांधी को बुलाया था। महात्मा गांधी ने किसानों के साथ बैठक किया और फिर गोरों के खिलाफ अवज्ञा आंदोलन और फिर चम्पारण सत्याग्रह के नाम से आन्दोलन शुरू किया। किसानों के बुलावे पर 11 अप्रैल 1917 को मोतिहारी पहुंचे थे मोतिहारी कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के किसानों का प्रतिनिधि मंडल पं राजकुमार शुक्ला के नेतृत्व में महात्मा गांधी से मिला, जहां किसानों ने अंग्रेजों के जुल्म की गाथा को उन्हें सुनाया और महात्मा गांधी को चम्पारण आऩे का न्योता दिया था। किसानों के बुलावे पर महात्मा गांधी 11 अप्रैल 1917 को मोतिहारी पहुंचे और किसानों के साथ बैठक कर चम्पारण सत्याग्रह को शुरू किया था, जो देश की आजादी का पहला आन्दोलन साबित हुआ। 'नील की खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म होती जाती थी'चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के अध्यक्ष प्रो चन्द्रभूषण पांडेय बताते हैं कि नील की खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म होती जाती थी, जिससे किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे। खेती नहीं करने पर अंग्रेज उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देते। यातना से परेशान किसान एकजुट हुए और महात्मा गांधी का नेतृत्व मिलते ही आन्दोलन को शुरू किया था। नील की खेती के खिलाफ शुरू हुआ चम्पारण सत्याग्रह देश की आजादी का पहला कारण बना।


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