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असम सरकार ने जल परियोजना का नाम क्यों रखा पाकिस्तान? बवाल के बाद बदला नाम, जानें पूरी कहानी

गुवाहाटी ऊपरी असम के धेमाजी जिले में 'पाकिस्तान' के नाम पर एक जल आपूर्ति परियोजना का नाम रखा गया। इस प्रॉजेक्ट के नाम को लेकर यहा...

गुवाहाटी ऊपरी असम के धेमाजी जिले में 'पाकिस्तान' के नाम पर एक जल आपूर्ति परियोजना का नाम रखा गया। इस प्रॉजेक्ट के नाम को लेकर यहां बसे हुए जातीय समुदायों ने विरोध किया। लोगों के गुस्से को देखते हुए राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजिनियरिंग विभाग को नेमप्लेट से पाकिस्तान शब्द हटाने को मजबूर होना पड़ा। सड़क का मूल नाम, पाक स्थान सुक है। जिसका अर्थ एक घुमावदार सड़क के माध्यम से पहुंचना होता है, यह 'पाकिस्तान सुक' बन गया। यह इसी नाम से यह कई वर्षों से प्रचलन में है। यहां तक कि आधिकारिक दस्तावेजों में भी इसका नाम पाकिस्तान सुक ही लिखा जाने लगा। असम पीएचई विभाग ने जल परियोजना का नाम दिया 'पाकिस्तान सूबा (कॉलोनी) जलापूर्ति योजना'। एसडीओ ने अधिकारियों के साथ किया निरीक्षण असम के पीएचई मंत्री रंजीत कुमार दास ने आश्वासन दिया है कि वह इस मुद्दे को सुलझाएंगे और कार्रवाई करेंगे। एसडीओ धेमाजी (सदर), नंदिता रॉय गोहैन ने गुरुवार को जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ स्थल का निरीक्षण किया। मूल नाम पाक स्थान सुक कहा, 'मूल नाम 'पाक स्थान सुक' हुआ करता था। वर्षों से लोग इस पाक स्थान सुक की जगह पाकिस्तान सुक कहने लगे और यहां तक कि आधिकारिक तौर पर पीएचई विभाग के दस्तावेजों में यह पाकिस्तान सुक ही दर्ज हो गया।' अधिकांश लोग अहोम और चुटिया समुदाय के गोहैन ने कहा कि वर्तमान निवासियों के पूर्वजों ने पाक स्थान सुक नाम दिया। यह जगह कभी बहुत दूर थी इसलिए अलग हुआ करती थी। यहां पर ज्यादातर अहोम और चुटिया समुदाय के लोग रहते थे। यहां कोई मुस्लिम ग्रामीण नहीं हैं। नेमप्लेट से हटाया पाकिस्तान बीर लच्छित सेना के कार्यकर्ताओं ने बुधवार को परियोजना की नेमप्लेट से पाकिस्तान का नाम मिटा दिया। दास ने मामले की गंभीरता को देखते हुए धेमाजी विधायक और शिक्षा मंत्री रनोज पेगू और जल जीवन मिशन, असम के निदेशक आकाश दीप से बात की। बुरहाकुरी दखिन सुक रखा गया नया नाम गोहैन ने बाद में कहा कि इस परियोजना का नाम बदलकर बुरहाकुरी दखिन सुक रखा गया है, जो राजस्व गांव बुरहाकुरी के नाम पर है। यह इलाका बुरहाकुरी के अंतर्गत ही आता है। उन्होंने कहा कि यहां रहने वाले लोग ओबीसी हैं, कोई भी अल्पसंख्यक नहीं था न ही है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि पीएचई विभाग के रेकॉर्ड बताते हैं कि यह नाम 1992 से उपयोग में है।


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