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दो बार शॉर्ट सर्किट, कमजोर वायरिंग, कंडम वेंटिलेंटर... सब जानते थे जिम्मेदार... भोपाल में मासूमों की मौत के ये हैं गुनाहगार?

भोपाल कमला नेहरू चिल्ड्रेन अस्पताल (Kamala Nehru Children Hospital Fire Updates) में पांच बच्चों की जान आग से ज्यादा लापरवाही ने ली है। म...

भोपाल कमला नेहरू चिल्ड्रेन अस्पताल (Kamala Nehru Children Hospital Fire Updates) में पांच बच्चों की जान आग से ज्यादा लापरवाही ने ली है। मौत का आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है। सरकार अभी पांच ही बता रही है। हादसे के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। ग्राउंड जीरो से हालात को देखने से यहीं पता चलता है कि यह लापरवाही की आग थी। अस्पताल का पूरा फायर सिस्टम बेकार पड़ा था। मगर कभी किसी जिम्मेदार अधिकारी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मासूमों की मौत के बाद जब इनके ऊपर सवाल उठ रहे हैं तो यह मुंह छिपाते फिर रहे हैं। अस्पताल के जिम्मेदारों ने पूरी तरह से हादसे पर चुप्पी साध रखी है। आधिकारिक रूप से इस मसले पर मंत्री का बयान ही आ रहा है। मगर जिन लोगों के कंधों पर अस्पताल की व्यवस्था देखने की जिम्मेदारी वह आंख पर पट्टी बांध कर बैठे रहे। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं था कि अस्पताल में फायर सिस्टम काम कर रहा है या नहीं। कमजोर वायरिंग पर लोड ज्यादा दिया, मगर किसी ने सुध नहीं ली। नगर निगम की तरफ से फायर सिस्टम को लेकर पांच नोटिस भी भेजे गए थे। किसी को इसकी परवाह नहीं थी। हादसे के बाद यह सवाल उठ रहे हैं कि अगर ये बेरहम नहीं बनते तो हमारे बच्चे जिंदा होते। जुगाड़ से चल रही थीं मशीनें बताया जाता है कि एसएनसीयू में मशीनें जुगाड़ से चल रही थीं। इन्हें चलाने के लिए प्रॉपर वायरिंग नहीं थी। एक्सटेंशन केबल से इन मशीनों को चलाया जा रहा था। यहीं वजह है कि इतना बड़ा हादसा हुआ है। पांच नोटिस के बाद भी नहीं संभले मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पीडियाट्रिक विभाग में छह महीने के अंदर दो बार शॉर्ट सर्किट हुआ था। साथ ही फायर एनओसी के लिए नगर निगम ने पांच बार नोटिस दिया था। अस्पताल के जिम्मेदार लोगों ने इसे जरूरी नहीं समझा। नगर निगम के अधिकारी ने कहा कि पांच नोटिस अस्पताल को भेजे गए थे। चार महीने पहले भी एनओसी लेने का अनुरोध किया था। हादसे के बाद कमला नेहरू अस्पताल में आग को बुझाने के लिए पर्याप्त इंतजाम तक नहीं थे। जबकि छह महीने पहले अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग के पंखे में शॉर्ट सर्किट से धुआं भर गया था। सूत्र बताते हैं कि 15 दिन पहले भी ऐसा हुआ था। इसके बावजूद किसी ने परवाह नहीं की। कंडम वेंटिलेटर को लगा दिया हमीदिया अस्पातल के बायोमेडिकल इंजीनियर की जिम्मेदारी यहां पर वेटिंलेटर देखभाल की है। बताया जा रहा है कि जिस वेंटिलेटर के पास शॉर्ट सर्किट हुआ, वहां कंडम वेंटिलेटर को फिर से ठीक कर इंस्टॉल कर दिया गया था। लोड के हिसाब से पावर प्वाइंट को अपग्रेड नहीं किया गया था। डॉक्टरों ने भी इसके ऊपर ध्यान नहीं दिया। इन लोगों ने बरती है लापरवाही 1. निशांत बरवड़े : यह चिकित्सा शिक्षा के आयुक्त हैं। इनके कंधों पर बड़े अस्पतालों की निगरानी का जिम्मा है। मगर इन्होंने हमीदिया और सुल्तानिया जैसे बड़े अस्पतालों में कभी फायर सेफ्टी को ऑडिट नहीं किया। 2. जितेन शुक्ला- यह डीन जीएमसी हैं। इन्हें अस्पताल में व्यवस्थाओं को देखना है। मरीजों की सुरक्षा को लेकर क्या इंतजाम हैं, इसे भी जांचना हैं। मगर इस पर इन्होंने भी ध्यान नहीं दिया। फायर सेफ्टी की समीक्षा की होती तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता। 3. डॉ लोकेंद्र दवे- यह हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक हैं। नगर निगम से बार-बार नोटिस मिलने के बावजूद इन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। साथ ही फायर सेफ्टी को लेकर एनओसी नहीं ली है। 4. देवेंद्र तिवारी- यह अस्पताल में बिल्डिंग मेंटेनेंस देखते हैं। मगर कमजोर वायरिंग और फायर सेफ्टी पर कभी ध्यान नहीं दिया। 5. डॉ ज्योतसना श्रीवास्तव - यह शिशु रोग विभाग की एचओडी हैं। वार्ड में जाने पर सभी को दिखता था कि यहां कैसी लापरवाही बरती जा रही है। बिजली तार जर्जर थे। मगर इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।


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