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कैसे यूपी पुलिस के सीओ से ED के जॉइंट डायरेक्टर बने राजेश्वर सिंह? उत्‍तर प्रदेश से लड़ सकते हैं चुनाव

लखनऊ प्रवर्तन निदेशालय (ED) के संयुक्त निदेशक रहे राजेश्‍वर सिंह चर्चा में हैं। कभी उत्तर प्रदेश पुलिस में एनकाउंटर स्पेशिलिस्ट के नाम से...

लखनऊ प्रवर्तन निदेशालय (ED) के संयुक्त निदेशक रहे राजेश्‍वर सिंह चर्चा में हैं। कभी उत्तर प्रदेश पुलिस में एनकाउंटर स्पेशिलिस्ट के नाम से पहचान रखने वाले राजेश्वर सिंह को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं क‍ि वे भाजपा में शामिल होकर आगामी विधानसभा चुनाव (UP ELection 2022) लड़ सकते हैं। 1996 बैच के पीपीएस अधिकारी हैं। लखनऊ में डिप्टी एसपी के रूप में तैनाती के दौरान उन्हें इनकाउन्टर स्पेशलिस्ट माना जाता था। वर्ष 2009 में राजेश्वर सिंह प्रतिनियुक्ति पर ईडी में चले गए थे। वहां भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण केस साल्व किये। प्रवर्तन निदेशालय के पद पर रहते हुए राजेश्‍वर सिंह ने अगस्‍त 2021 में वॉलेंटियरी रिटायरमेंट (Voluntary Retirement Scheme) ले लिया था, जिसे स्‍वीकृति अब मिली है। उनके चुनाव लड़ने के कयास तो तभी से लगाए जा रहे थे। चुनाव की तरीखों के बाद मिली स्‍वीकृति के बाद कयास को और बल मिला है। कहा जा रहा है क‍ि वे साहिबाबाद से चुनाव लड़ सकते हैं। अभी तक सिंह ने अपने बीजेपी में शामिल होने और अपने वीआरएस के बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। वह अभी तक इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। 13 एनकाउंटर से कम समय में बना ली पहचान राजेश्वर सिंह के नाम 13 एनकाउंटर हैं, जिसके जरिए वह खूंखार और कट्टर अपराधियों को कटघरे तक पहुंचाने में सफल हुए। यूपी पुलिस ज्‍वाइन करने के 14 महीने में ही उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि उन्हें उनके काम के दम पर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' और 'साइबर जेम्स बॉन्ड' की उपाधियों से नवाजा जाने लगा था। कौन हैं राजेश्वर सिंहसंयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) और कांग्रेस को मुश्किल में डालने वाले प्रवर्तन निदेशालय (ED) के संयुक्त निदेशक रहे राजेश्वर सिंह यूपी के सुल्तानपुर जिले के पखरौली के मूल निवासी हैं। उन्‍होंने इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स धनबाद से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट राजेश्वर सिंह ने लॉ और ह्यूमन राइट्स में भी डिग्री ली है। 1996 बैच के पीपीएस अधिकारी हैं। लखनऊ में डिप्टी एसपी के रूप में तैनाती के दौरान उन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माना जाता था। वर्ष 2009 में राजेश्वर सिंह प्रतिनियुक्ति पर ईडी में चले गए थे। वहां भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण केस साल्व किये। राजेश्वर सिंह ने ईडी में अपने कार्यकाल के दौरान अफेंडर्स के तकरीबन 3000 करोड़ रुपये के असेट्स को सीज किया। उनके नेतृत्व में ईडी ने 2जी स्पैक्ट्रम स्कैम में 223 करोड़, रेड्डी मामले में 1000 करोड़, एयरसेल-मैक्सिस मामले में 750 करोड़, मधु कोड़ा मामले में तकरीबन 300 करोड़ के असेट्स सीज किए। इनके एक भाई और एक बहन इनकम टैक्स कमिश्नर हैं। बहनोई राजीव कृष्ण आईपीएस हैं और आगरा ज़ोन के एडीजी हैं। इनके दूसरे बहनोई वाई पी सिंह भी आईपीएस थे और उन्होंने भी वीआरएस ले लिया था। राजेश्वर सिंह के पिता भी पुलिस विभाग में थे और डीआईजी के पद से रिटायर हुए थे। राजेश्वर सिंह की पत्नी लक्ष्मी सिंह भी आईपीएस अधिकारी हैं और इस समय लखनऊ रेंज की आईजी हैं। राजेश्वर सिंह माइनिंग इंजीनियरिंग में बीटेक हैं लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वे पुलिस सेवा में आ गए। कामनवेल्थ और अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले की जांच की कांग्रेस की यूपीए सरकार में वर्ष 2010 से 2018 तक हुए कामनवेल्थ गेम में हुए घोटाले और कोल डिपो के आवंटन में हुई अनियमितता की जांच भी इनके द्वारा की गयी। साथ ही अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर डील में हुई अनियमितता के मामले में जिसमें तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और उनके बेटे कीर्ति चिदम्बरम का नाम शामिल होने का मामला आया था। उसमें भी इनके द्वारा कार्यवाही की गयी। इसके अलावा मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला, मधु कोड़ा और जगन मोहन रेड्डी के खिलाफ चल रही जांच का भी यह हिस्सा रहे। अपने एक लम्बे समय की प्रवर्तन निदेशालय लखनऊ में तैनाती के बाद भी राजेश्वर सिंह की सेवा में अभी 12 साल थे। सरकार ने वर्ष 2018 में इनके खिलाफ एक जांच की शुरुआत किया लेकिन जांच में इनके खिलाफ कुछ भी नहीं मिला। सहारा मामले से सुर्खियों में आएबात 2011 की है। तब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक अधिकारी के खिलाफ अलग-अलग मंत्रालयों और सरकारी निकायों के समक्ष लगभग 50 एक जैसी शिकायतें दर्ज की गईं। वह अधिकारी कोई और नहीं राजेश्‍वर सिंह ही थे। राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर रक्षा और कानून समेत अलग-अलग मंत्रालयों को सिंह के कामकाज के तौर-तरीकों की जांच की शिकायतें मिलीं। उन पर आय से अधिक संपत्ति के मामले के भी आरोप लगे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा हालांकि, सिंह इनका डटकर मुकाबला करते रहे। उसी साल मई 2011 में सिंह ने सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय, पत्रकार उपेंद्र राय और सुबोध जैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। राजेश्‍वर ने शिकायत की थी कि रॉय के साथ उपेंद्र और सुबोध जैन 2जी स्‍कैम में उनकी जांच में हस्‍तक्षेप कर रहे हैं। इस जांच के दायरे में सहारा ग्रुप के भी कुछ सौदे थे। कोर्ट ने 2013 में माना था कि इनके खिलाफ केस बनता है। इसके बाद उन्‍हें नोटिस जारी किया गया था। सहारा इंडिया न्यूज नेटवर्क और उसके सहयोगी संस्‍थानों को सिंह से संबंधित किसी भी स्‍टोरी या प्रोग्राम के प्रकाशन और प्रसारण से रोक दिया गया था। सहारा प्रमुख को हाउसिंग फाइनेंस के नाम पर लोगों से गैर-कानूनी तरीके से 24000 करोड़ लेने के आरोप में जेल भेजा गया था। सहारा समूह की दो कंपनियों ने गैर-कानूनी तरीके से निवेशकों से यह पैसा जमा किया था। इसके बाद साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह को निवेशकों से जुटाई गई रकम को सेबी के एस्‍क्रो अकाउंट में जमा करने को कहा था। जब सहारा ऐसा नहीं कर पाए तो उन्‍हें जेल भेज दिया गया था।


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