कोरोनाकाल में दुनिया के सबसे बड़े चुनाव का इतिहास लिखने के लिए ये कतार है। शायद ही किसी ने यकीन किया होगा कि ये कतार पिछले चुनाव के बराबर हो...

कोरोनाकाल में दुनिया के सबसे बड़े चुनाव का इतिहास लिखने के लिए ये कतार है। शायद ही किसी ने यकीन किया होगा कि ये कतार पिछले चुनाव के बराबर होगी। इसमें एक बड़ा हिस्सा आधी आबादी यानी महिलाओं का है। शायद यही वो दिन है जिसमें अंगुली पर लगी लोकतंत्र की स्याही, माथे की बिंदी से कम खूबसूरत और कम कीमती नहीं।
कारण, ये बिहार है। वो बिहार जो भारतीय गणतंत्र की धुरी है। पूरी दुनिया को लोकतंत्र का ज्ञान देने वाली इस भूमि का इतिहास ईसा से 725 वर्ष पुराना है। पटना के पड़ोस के ही जिले वैशाली में ही दुनिया का पहला ( लिच्छवी) गणतंत्र था। बुधवार को पहले चरण के मतदान में बिहार ने फिर पूरी दुनिया को न सिर्फ लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया, साहस, सुरक्षा, सजगता और राजनीतिक सूझबूझ का भी इतिहास दोहराया।
मतदान का औसत कमोबेश उतना ही, जितना आम दिनों में रहता है। लेकिन 71 में से 29 सीटों में पिछले चुनाव से भी अधिक मतदान हुआ। राजनीति के पंडित अपने-अपने रुझान के अनुसार ज्यादा वोटिंग के गणित का विश्लेषण करेंगे। पहली अवधारणा तो यही कि ज्यादा वोटिंग हमेशा सरकार के खिलाफ होती है। लेकिन कई चुनावों में बहुमत ने इसे खारिज भी किया है।
हमें से इस वोटिंग से सिर्फ और सिर्फ एक बात समझ में आती है कि कोरोना के डर से बिहारी मतदाता जीत गए। इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि बिहारी कोरोना से लड़ने (रिकवरी रेट) में पहले ही दुनिया में नंबर वन है। 54.01 फीसदी वोट को चुनाव आयोग की तैयारी के आइने में देखें तो ये आंकड़ा काफी बड़ा दिखाई देगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ने खुद स्वीकारा था कि 60% मतदान के हिसाब से उनकी तैयारी है।
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