खेतों में पानी पहुंचाने के लिए जिले में पानी की तरह पैसे बहाए गए। लेकिन करीब 100 से अधिक सिंचाई परियोजनाओं पर बहाया गया करोड़ों रुपए व्यर्थ...
खेतों में पानी पहुंचाने के लिए जिले में पानी की तरह पैसे बहाए गए। लेकिन करीब 100 से अधिक सिंचाई परियोजनाओं पर बहाया गया करोड़ों रुपए व्यर्थ चला गया। पिछले 2 सालों में जिलेभर में अंधाधुंध आहर, पोखर और बड़े तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया।
उद्देश्य था कि बरसात का पानी संचय किया जाएगा और यह पानी रबी फसल की सिंचाई के लिए काम आएगा। लेकिन रबी फसल के लिए एक छटाक पानी भी काम नहीं आ रहा है। जिले भर के किसान रबी फसल की पटवन मोटर पंप सेट से करने को मजबूर हैं। इनमें उन गांवों के किसान भी शामिल है जिन गांव में 50/60 लाख या एक करोड़ से ऊपर खर्च कर आहार, पोखर का जीर्णोद्धार किया गया।
इन आहर, पोखरों में पानी न के बराबर है। कई जगह तो मछली मार कर पोखर को सुखा भी दिया गया। किसानों की माने तो पोखर तो खोद दिया गया है, लेकिन उनमें पानी भरने के लिए कोई कवायद नहीं हुई। लिहाजा इन जल भंडारों में पर्याप्त पानी जमा ही नहीं हुआ। हालत यह है कि गेहूं फसल के लिए तो दूर इन जल भंडारों से खरीफ की फसल यानी धान के लिए भी किसानों को पानी नहीं मिल पाया। किसान अब सिंचाई के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं।
जल संचय का उद्देश्य पूरा न हुआ
पिछले दाे सालाें में 100 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए जा चुके हैं। साेख्ता, आहर, तलाब, चेक डैम जैसे सैकड़ाें स्ट्रक्चर बनकर तैयार हाे गए, लेेकिन इसके बाद भी जल संचय का मुक्कमल इंतजाम नहीं हाे पाया है। जल संचय की शक्ति पर ही वाटर लेबल में सुधार हाेता है, लेकिन जिले के जलस्तर में हुआ सुधार नकाफी दिख रहा है। सरकार के द्वारा जारी किए गए आंकड़े के अनुसार नवादा के वाटर लेवल में एक फीट 7 इंच का सुधार आया है। जबकि पड़ाेसी जिले में वाटर लेवल 9 से 10 फिट तक ऊपर आया है।
इनलेट व आउटलेट पर ध्यान नहीं
योजनाओं का निर्माण पूरा करने के साथ ही सभी कनीय अभियंताओं काे याेजना वाले तालाब और आहराें में पानी के इनलेट और आउटलेट की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया था। इस साल 23 मई काे ही लघु सिंचाई विभाग के प्रधान सचिव ने वीडयाे कांफ्रेसिंग के तहत बैठक कर इसके लिए कड़े निर्देश दिए थे। कनीय अभियंताओं काे बरसात में जमा पानी का लेवल और फोटो दोनों विभाग के साइट पर अपलोड करने को कहा गया था। लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। कई जल भंडार भरे ही नहीं और जो भरे उनका पानी जैसे-तैसे बह गया।
सिर्फ ठेकेदारों से मतलब
किसानों का कहना है कि योजनाएं किसानों को ध्यान में रखकर कम और पैसे की निकासी में ज्यादा काम आई है। किसान नेता मुसाफिर कुशवाहा बताते हैं कि जब योजनाएं चल रही थी तब लघु सिंचाई विभाग के अधिकारी आते रहे, लेकिन योजना पूरी हुई और पैसे की निकासी हो गई तो अब कोई इसकी सुध लेने वाला नहीं है। जबकि अधिकारियों को इन भंडारों पर नजर रखने को कहा गया था। ठेकेदारों ने कहीं निर्माण के बाद बांध को खुला छोड़ दिया, तो कहीं मिंट्टी ऐसे रह गई की जल भंडार भरा ही नहीं।
अनुपयाेगी याेजनाएं
तीन वर्ष पूर्व जलस्त्रोतों को विकसित करने के लिए करीब चार सौ करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई थी। आहराें की खुदाई, चेक डैम निर्माण, पईन जीर्णाेद्धार कार्य, बांध निर्माण आदि की याेजनाएं शुरू की गई। इनमें से कई दर्जन याेजनाएं कंप्लीट हाे गई, लेकिन इनमें से कई याेजनाएं अनुपयाेगी बनी हुई है।
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