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स्कूल बस में एक बार में 54 नहीं 8 बच्चे ही जाएंगे

कोरोनावायरस के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शिक्षा का भी नाम है। महामारी फैलने के बाद से ही भारत में भी स्कूल-कॉलेज कर...

कोरोनावायरस के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शिक्षा का भी नाम है। महामारी फैलने के बाद से ही भारत में भी स्कूल-कॉलेज करीब 4 महीनों से बंद हैं। बढ़ते संकट को देखते हुए शिक्षण संस्थाएं भी ऑनलाइन क्लासेज को तरजीह दे रहे हैं। अभी तक यह साफ नहीं है कि बच्चों और टीचर्स की स्कूल के अंदर वापसी कब होगी। अब स्कूल जब भी खुलेंगे तो वायरस के कारण हमें यहां हर कदम पर बदलाव देखने को मिलेंगे। बस, कैंटीन, क्लासरूम जैसी सभी जगहों के नजारे एकदम बदल जाएंगे। इतना ही नहीं शिक्षकों के पढ़ाने के तरीकों में फर्क आएगा। बच्चे अपने दोस्तों के साथ पहले की तरह स्कूल के दिनों का मजा नहीं ले पाएंगे। दुनियाभर के बच्चों के स्कूल के दिन की शुरुआत बस की यात्रा से होती है।

महामारी के दौरान कई क्षेत्रों में बच्चों को घर से स्कूल तक लेकर जाना चुनौती है। इस दौरान माता-पिता को ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था करने के लिए कहा जाएगा। सुरक्षा का ध्यान रखते हुए परिवारों को बस स्टॉप पर पहले की तरह भीड़ नहीं लगानी चाहिए। पैरेंट्स से यह कहा जाएगा कि अगर बच्चे को बुखार, खांसी या दूसरे लक्षण हैं तो उन्हें स्कूल न भेजें। महामारी से पहले एक आम स्कूल बस में 54 बच्चे हो सकते थे, लेकिन अब सोशल डिस्टेंसिंग के कारण यह संख्या घटकर केवल 8 ही रह जाएगी। जब बच्चे स्कूल पहुंचेंगे तो सभी को टैम्परेचर और सिम्प्टम चैक से गुजरना होगा।

स्टाफ प्लानिंग मीटिंग्स ऑनलाइन ही बेहतर
अपने दिनभर के काम के दौरान टीचर्स के वायरस के चपेट में आने की आशंकाएं ज्यादा हैं। वे बच्चों, पैरेंट्स, दूसरी टीचर्स से लगातार संपर्क में रहते हैं। इनके जोखिम को कम करने के लिए पैरेंट-टीचर मीटिंग और स्टाफ प्लानिंग मीटिंग्स को घर से ही किया जा सकता है। खास जरूरतों वाले बच्चों के साथ काम करने वाले टीचर्स दूसरे शिक्षकों के साथ क्लास के अंदर तैनात होते हैं। यहां उन्हें बच्चों को हाथ के जरिए ही संभालना होता है। इस दौरान टेक्स्ट मैसेजिंग और मास्क पहनकर कान में बात करना मददगार हो सकता है। स्कूल के अंदर टीचर्स को क्लासरूम की खिड़कियां खुले रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

प्राइमरी क्लास में बच्चे कम होंगे

छोटे बच्चों को उनके नेचर और एनर्जी के कारण एक-दूसरे से अलग रखना सबसे मुश्किल काम हो सकता है। इसके अलावा कई गाइडलाइंस ने इस बात को माना है कि छोटे बच्चों से मास्क पहनने की उम्मीद करना वास्तविक नहीं है। बच्चों को पॉड में रखने की कोशिश करेंगे। क्लास का साइज छोटा कर बच्चों की संख्या को करीब 12 कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं क्लासरूम में बातचीत को भी सीमित कर दिया जाएगा। इस तरह से अगर किसी एक पॉड में कोई पॉजिटिव मामला मिला है तो उन्हें पूरी क्लास को बंद करने की जरूरत नहीं होगी। कुछ गाइडलाइंस टीचर्स को मास्क के बजाए फेस शील्ड पहनने की सलाह देती है। किसी बड़े के चेहरे को देखना बच्चों को चीजें समझने में मदद करता है।



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