शराब के अवैध नेटवर्क तोड़ने के लिए राज्य पुलिस मुख्यालय के स्तर से चार थानेदारों के निलंबन से शुरू हुआ एक्शन, आगे भी जारी रहेगा। कई और नपेंग...
शराब के अवैध नेटवर्क तोड़ने के लिए राज्य पुलिस मुख्यालय के स्तर से चार थानेदारों के निलंबन से शुरू हुआ एक्शन, आगे भी जारी रहेगा। कई और नपेंगे। अब उन थानेदारों की छुट्टी होगी जिनके इलाके में अवैध शराब की भट्ठी चल रही है या शराब पकड़ी जा रही है। पुलिस मुख्यालय ने पहले ही अल्टीमेटम दे रखा है कि जिन थाना क्षेत्रों में शराब पकड़ी जाएगी वहां के थानेदारों के खिलाफ एक्शन तय है।
रविवार सस्पेंड किए गए पटना, वैशाली और मुजफ्फरपुर के चार थानेदारों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू हो गई है। मुख्यालय की कार्रवाई पर बिहार पुलिस एसोसिएशन ने कहा कि सिर्फ थानेदारों को ही जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। अवैध शराब के कारोबार के मामले में एसपी और डीएसपी को भी जिम्मेदार ठहराया जाए।
एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि शराब हो या अन्य अपराध इसके नियंत्रण की जिम्मेदारी थाने के सिपाही से लेकर डीएसपी और एसपी तक तय होनी चाहिए। अगर किसी पुलिसकर्मी के विरुद्ध साक्ष्य पाया जाता है तो निश्चित रूप से उसपर कार्रवाई हो। लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि अगर वह गलत कर रहा है तो उसके पीछे की जड़ क्या है।
अच्छा काम होता है तो एसपी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं कि उनके जिले की पुलिस ने बेहतर काम किया। वे उसका श्रेय लेते हैं। ऐसे में अगर कहीं गलत हो रहा है तो उसकी जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए। एसोसिएशन ने मुख्यालय से ऐसे मामलों की समीक्षा की मांग की है।
2016 में ऐसी ही कार्रवाई हुई तो थानेदारों ने की थी थाना छोड़ने की पेशकश, तब सस्पेंड हुए थे 11 थानों के दारोगा
वर्ष 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद सरकार की सख्ती के बाद कई थानेदारों ने स्वेच्छा से थाना छोड़ने की भी पेशकश की थी। तब 11 थानेदारों को निलंबित किया गया था। साथ ही दस वर्षों तक उन्हें थानेदारी से अलग रखने की कार्रवाई की गई थी। उस समय राज्यभर के थानेदारों ने यह कहते हुए स्वेच्छा से थानाध्यक्ष के पद से हटाने की पेशकश करनी शुरू कर दी थी कि वर्तमान परिस्थिति में वे असहज महसूस कर रहे हैं। दरअसल मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक मंच से यह अल्टीमेटम भी दिया था कि जो पुलिसकर्मी थानाध्यक्ष के पद पर नहीं रहना चाहते हैं वे पद छोड़ सकते हैं।
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