(राजीव कुमार) कृषि प्रधान देश में पहले खेती की जिम्मेवारी पूरी तरह पुरुषों के कंधों पर होती थी, लेकिन जागरुकता, प्रोत्साहन व समानता के प्र...

(राजीव कुमार) कृषि प्रधान देश में पहले खेती की जिम्मेवारी पूरी तरह पुरुषों के कंधों पर होती थी, लेकिन जागरुकता, प्रोत्साहन व समानता के प्रयास ने इस क्षेत्र में अब महिलाओं की भी दिलचस्पी बढ़ा दी है, इसके नतीजे भी सामने आ रहे है। इसकी शुरूआत 2007 में बोधगया से हुई, जब कुंती देवी ने श्रीविधि से धान की खेती कर बंपर उत्पादन की। अब मानपुर और टनकुप्पा की महिलाओं ने उस क्रम को आगे बढ़ाया है।
कुंती बनी श्रीविधि की पहली किसान
2007 में बोधगया के शेखवारा गांव की कुंती देवी ने खेती की नयी तकनीक श्रीविधि अपना कर बिहार की पहली महिला किसान होने का गौरव हासिल किया। इतना हीे नहीं, उन्होंने अपने हुनर व तरकीब से कर्ज में डूबे परिवार को समृद्धि की ओर बढ़ाया है। कुंती देवी कहती है, उपज से होनेवाली अधिकतर आय कर्ज चुकाने में ही चली जाती थी। 2007 में प्रोफेशनल असिस्टेंट फॉर डेवलपमेंट एक्शन (प्रदान) के तीन कृषि विशेषज्ञ व राज्यस्तरीय प्रशिक्षक अनिल कुमार वर्मा शेखवारा आए थे।
उन्होंने गांव के किसानों को श्रीविधि की जानकारी दी व फायदे बताए। किसानों ने सुना कि परंपरागत खेती की तुलना में एक एकड़ में मात्र एक से डेढ़ किलोग्राम ही धान का बीज लगेगा, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ व नकार दिया। लेकिन वह श्रीविधि के पक्ष में उठी।
एक एकड़ में श्रीविधि से धान की खेती के लिए हामी भरी। जब एक-एक पौधे से 60 से 80 कल्ले निकलने शुरू हुए, गांव व आसपास के किसानों के अलावा अधिकारियों ने वहां आकर उनकी खेती का निरीक्षण शुरू किया। फसल का उत्पादन अप्रत्याशित रहा। एक एकड़ में पहले के 20 से 22 मन की तुलना में 81 मन धान हुआ था।
खेती से शंफुल देवी ने बदल दी गांव की सूरत

जिले के मानपुर प्रखंड का दोहारी, महादलित गांव है। परवाना की जमीन पर बसे सभी ईंट भट्ठे पर मजदूरी को परिवार सहित दूसरे राज्य को पलायन कर जाते थे। इसकी तस्वीर 45 वर्षीय शंफूल देवी ने बदल दी है। उसने प्रिजर्वेशन एंड प्रोलिफिकेशन ऑफ रूरल रिसोर्सेस एंड नेचर(प्राण) संस्था के सहयोग से न सिर्फ खुद बल्कि गांव की महिलाओं को खेती से जोड़ने का प्रयास किया।
जहां पहले कमाई का साधन मजदूरी थी, लोग पाई-पाई को मोहताज थे, अब महिलाओं की पहल पर खेती से न सिर्फ खुद के खाने का अनाज व सब्जी पैदा करते हैं बल्कि पैसा बचाकर भविष्य के लिए रख भी रहे हैं। शंफूल जीविका की दीदी को ऑर्गेनिक खेती का प्रशिक्षण भी देती है।
शंफूल देवी बताती हैं कि उसके पास 15 कट्ठा खेत है। अन्य महिलाओं को प्रोत्साहित कर पांच एकड़ में ऑर्गेनिक खेती कर रही है। इससे वह सलाना 50 हजार रुपए तक बचा रही है। अन्य महिलाओं को भी लाभ का हिस्सा मिलता है। खाने को साल भर का अनाज व सब्जी के अलावा पैसों की बचत भी हो रही है।
ऑर्गेनिक और जीरो बजट का माधुरी ने पढ़ाया पाठ

जैविक और जीरो बजट खेती से लाभ है। जिले के टनकुप्पा प्रखंड के बरसोना की माधुरी देवी इसकी एक्सपर्ट है। उसने बताया कि गोबर, गोमूत्र, बेसन, मिट्टी, गुड़, तंबाकू जैसे घर में उपलब्ध वस्तुओं से जैविक कीटनाशक व उर्वरक बनाने में लागत नहीं पड़ता। ग्रामीण महिलाओं का समूह बनाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मल्टी लेयर फार्मिंग का प्रशिक्षण कर खेती से लाभ कमाया जा रहा है। वह जीविका से भी जुड़ी है। अब मल्टी लेयर फार्मिंग पद्धति से आय बढ़ाने की कोशिश कर रहें हैं।
इसमें तीन कट्ठा सब्जी उत्पादन में 03 हजार रुपए खर्च पड़ता है और आय लगभग 50 हजार रुपए की होगी। इस पद्धति में एक साथ कई सब्जी की खेती होती है। कुछ पहले तैयार होता है, कुछ बाद में। एक ही श्रम शक्ति, खाद व दवा में सभी सब्जी तैयार होता है। इसलिए लाभ अधिक है। इसके अलावा खाने को साल भर का अनाज व सब्जी मिल रही है। वहीं ग्रामीण महिलाओं का समूह बनाकर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
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