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रांची पुल हादसे में ठेकेदार आदित्यनाथ पांडेय का उछला नाम, मामले में खुलकर क्यों नहीं बोल रहे अफसर-नेता?

रांची देश में उच्च क्वालिटी का कोयला उपलब्ध कराने और भारी उद्योग धंधों के लिए मशहूर झारखंड पिछले तीन दिनों से निर्माण कार्य में भ्रष्टाचा...

रांची देश में उच्च क्वालिटी का कोयला उपलब्ध कराने और भारी उद्योग धंधों के लिए मशहूर झारखंड पिछले तीन दिनों से निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार को लेकर मीडिया की सुर्खियां बन रहा है। तीन दिनों में राज्य में उद्धाटन से पहले दो विशालकाय पुल और विधानमंडल के नए भवन की कॉरिडोर की फॉल्स सीलिंग गिरने की घटना हुई है। गनीमत रही कि तीनों हादसों में कोई हताहत नहीं हुआ है। इन घटनाओं के बाद हर तरफ यही सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इन तीनों निर्माण कार्य का ठेका किस ठेकेदार को दिया गया था। नवभारत टाइम्स.कॉम ने रांची के कांची नदी पर बने पुल के उद्धाटन से पहले गिरने की घटना को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मामले की जांच के लिए उच्च कमेटी का गठन कर दिया है। तमाम नेताओं और पुल निर्माण विभाग के अफसरों से बातचीत करके पता लगाने की कोशिश की आखिर वो कौन सा ठेकेदार है जिसने कांची नदी पर इतनी खराब क्वालिटी का पुल बनवाया कि वह उद्धाटन से पहले ही गिर गया। इस संदर्भ में राजनेताओं और अफसरों से बात की गई तो वे जांच कराने की मांग तो कर रहे थे, लेकिन उस ठेकेदार का नाम लेने से बचते दिखे। हमने जब इस पूरे मामले को तह तक जाकर समझने की कोशिश की तो पता चला कि कांची नदी पर पुल निर्माण का ठेका लेने वाले ठेकेदार रसूखदार हैं उनका झारखंड के किसी बड़े नेता के साथ खास रिश्ता है इसलिए कोई भी उनका नाम खुलकर लेने से बच रहा है। ये भी पढ़ेः कांची नदी पुल हादसे में आदित्यनाथ पांडेय का नाम उछला कांची नदी पर ग्रामीण विकास विभाग विशेष प्रभाग की ओर से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत से बनाए गए पुल के गिरने पर झारखंड प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने कहा, 'कांची पुल का टूटना रघुवर दास के शासन काल में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का खेल हुआ है। यकीन मानिए जब कांची पुल मामले का उद्भेन होगा तो यही बीजेपी के नेता चिल्लाते हुए कहने लगेंगे राज्य की मौजूदा सरकार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम कर रही है।' आलोक कुमार ने आरोप लगाया कि आदित्यनाथ पांडेय और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर जितेंद्र गुप्ता ने उस समय के मुख्यमंत्री और ग्रामीण मंत्री के कहने पर इस कांची पुल के निर्माण में अनियमितता बरती। बीजेपी के लोग कह रहे हैं कि नदी से रेत निकल गए इसलिए पुल धंस गया। रघुवर दास के शासनकाल में बने 10 पुल ध्वस्त हो गए। डबल इंजन की पूर्ववर्ती सरकार ने जो खेल किया है। झारखंड का पैसा उत्तर प्रदेश और गुजरात के चुनाव में खर्च हुए हैं। इन सबका पर्दाफाश होगा। भाग्य समझिए कि इस दुर्घटना में कोई हताहत नहीं हुआ है। जब जांच रिपोर्ट आएगी तब कंपनी के संवेदक आदित्यनाथ पांडेय और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर जितेंद्र गुप्ता की अनियमितता सामने आ जाएगी। देखिए कांग्रेस प्रवक्ता ने क्या कहा... ये भी पढ़ेः आदित्यनाथ पांडेय ने पूरे मामले से पल्ला झाड़ा कांची पुल ढहने मामले में जब हमने फोन कर आदित्यनाथ पांडेय से उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उन्होंने सीधे-सीधे मामले से पल्ला झाड़ लिया। बातचीत के दौरान आदित्यनाथ पांडेय ने कहा, 'हम तो गोपालगंज में रहते हैं, हमारा उन सब से कोई मतलब नहीं है। लोग ऐसे ही मेरा नाम उछाल रहे हैं। मैं इसपर कुछ नहीं बोलना चाहता।' जब हमने उनसे पूछा कि क्या आपकी कंपनी ने ही कांची नदी पर पुल बनाने का ठेका लिया था? इसपर आदित्यनाथ ने कहा, 'मैं अब वो सब काम नहीं देखता। बच्चे लोग वहां ये सब देखते हैं। इसलिए मैं इसपर कुछ नहीं कहूंगा।' पुल निर्माण विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक कांची नदी पर बने पुल का निर्माण करने वाली कंपनी का नाम आदित्यनाथ पांडेय के नाम पर ही है। लेकिन इसके प्रोपराइटर रंजन कुमार पांडेय हैं। बताया जाता है कि रंजन कुमार पांडेय आदित्यनाथ पांडेय के रिश्तेदार हैं। इस कंपनी के पास अभी भी झारखंड के कई बड़े प्रोजेक्ट के ठेके हैं। ये भी पढ़ेः कौन हैं आदित्यनाथ पांडेय? आदित्यनाथ पांडेय गोपालगंज के पूर्व बाहुबली सांसद काली पांडेय के छोटे भाई हैं। काली पांडेय इस वक्त राजनीति में हाशिए पर चल रहे हैं। लेकिन माना जाता है कि इनका ठेकेदारी का धंधा अभी भी बड़े स्तर पर चल रहा है। आदित्यनाथ पांडेय पर आरोप लगते रहे हैं कि वह झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के बेहद करीबी हैं। ये भी आरोप लगते रहे हैं कि रघुवर दास की सरकार में झारखंड के ज्यादातर बड़े ठेके आदित्यनाथ पांडेय की कंपनी को ही इश्यू होते थे। माना जाता है कि इनकी झारखंड की राजनीति में इतनी पहुंच है कि अफसर या राजनेता आमतौर से किसी गड़बड़ी के मामले में इनका नाम लेने से बचते हैं। सीएम के आदेश पर कांची पुल मामले की शुरु हुई जांच सीएम हेमंत सोरेन ने कांची पुल हादसे की जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाई है। बताया जा रहा है कि शनिवार को विभागीय जांच के लिए दो सदस्य रमाकांत तिवारी और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ब्रजमोहन वर्मा मौके पर पहुंचकर पारंभिक जांच की। इन्होंने नवभारत टाइम्स.कॉम से बातचीत में बताया कि शुरुआती जांच में पता चला है कि नदी में मौजूद पुल के पिलर के आसपास भारी मात्रा में रेत की निकासी हुई है। जबकि नियम कहता है कि पिलर के एक किलोमीटर के दायरे में किसी प्रकार की रेत निकासी नहीं होनी चाहिए। जब हमने उनसे पूछा कि क्या पुल ढहने के पीछे यही वजह है तो उन्होंने कहा कि यह अभी कहना गलता होगा। यह प्रारंभिक जांच की बात है। नदी का जलस्तर घटने पर उच्च स्तरीय कमेटी जांच कर पुल ढहने का असली कारण बताएगी। पश्चिमी सिंहभूम में निर्माणाधीन पुल का बेसमेंट धंसा कांची नदी पर बने पुल के टूटने की खबर शांत भी नहीं हुई कि शनिवार को पश्चिमी सिंहभूम में निर्माणाधीन पुल का बेसमेंट धंस गया। पश्चिम सिंहभूम के जनरल पहाड़ी क्षेत्र स्थित स्थित टोंटो प्रखंड के नीमडीह गांव में चक्रवाती तूफान यास के कारण हुई भारी बारिश ने निर्माणाधीन पुल का बेसमेंट को धंसा दिया। भारी बारिश की वजह से पानी के तेज बहाव में निर्माणाधीन पुल के आसपास की मिट्टी भी बह गई। इसके अलावा क्षेत्र के संजय नदी पर बने पुल झींकपानी प्रखंड के गुडा गांव में बने पुल में भी दरार आ गई और उसका अप्रोच रोड भी बह गया। ये भी देखें: विधानमंडल बनाने वाले ने कहा, 'हमने दो साल पहले ही भवन का हैंडओवर दे दिया है' झारखंड का विधानमंडल जब से बना है तब से यहां कुछ ना कुछ दुर्घटनां हो रही हैं। शुरुआत से ही विधानमंडल की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। शनिवार को विधानमंडल भवन दो दिनों की बारिश भी नहीं झेल पाया और पहले तल्ले के वेस्ट विंग के कॉरिडोर की फॉल्स सीलिंग गिर गई। आम दिनों की तरह कार्यालय चलता तो बड़ी घटना हो सकती थी। वेस्ट विंग में विधानसभा सचिव के दफ्तर के पास की घटना है। विधानमंडल का निर्माण करने वाली कंपनी के मालिक रंजन कुमार ने फोन पर हुई बातचीत में बताया कि उन्होंने दो साल पहले ही भवन का हैंडओवर दे दिया है। इसलिए उनका इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि भवन की देखरेख का जिम्मा उनका नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी कोई सूचना ही नहीं है कि विधानमंडल भवन कोई हादसा हुआ है। विधानसभा के नए भवन में कई जगहों पर पानी का सीपेज है। सीलन और रखरखाव के अभाव में भवन के कई हिस्से जर्जर हो रहे हैं। विधानसभा सचिव ने मीडिया से कहा है कि पूरे भवन की छानबीन होनी चाहिए। सामान्य दिनों के कामकाज में इस तरह की घटना हो गई तो बड़ी मुसीबत आ सकती है। विधानसभा के नए भवन के पुस्तकालय का सीलिंग भी पहले गिर चुका है। उससे पहले नए भवन में आग लग गई थी। विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा जल गया था। तब नए भवन के फायर फाइटिंग सिस्टम पर भी सवाल उठे थे। झारखंड विधानसभा का नया भवन 465 करोड़ रुपए खर्च कर बनाया गया है। 39 एकड़ में फैले इस नए विधानसभा परिसर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। नया भवन चार वर्षों में बन कर तैयार हुआ था।


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