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कोरोना से सांसें ही नहीं रिश्तों की डोर भी टूटी, न मिला कंधा न अस्थियां लेने आया कोई

गाजियाबाद जब तक वे जिंदा थे, तो अपनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहे, बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाया, कंधे पर बिठाकर उन्हें दुनि...

गाजियाबाद जब तक वे जिंदा थे, तो अपनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहे, बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाया, कंधे पर बिठाकर उन्हें दुनिया दिखाई, अपनों का हौसला कभी न टूटे इसके लिए उन्होंने हरसंभव कोशिश की। लेकिन जब कोरोना की वजह से उनकी सांसों ने साथ छोड़ा तो रिश्तों की डोर भी टूट गई। जिनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले उन लोगों ने शव के पीछे तक चलना भी जरूरी नहीं समझा। कुछ के परिवार वाले श्मशान घाट तक दाह संस्कार करने तो पहुंचे, लेकिन उनकी अस्थियां लेने नहीं पहुंचे। ब्रजघाट गंगा में 48 शव किए प्रवाहित यह दर्दनाक हकीकत यूपी में गाजियाबाद के उन 48 लोगों की है, जिन्होंने पिछले डेढ़ महीने में कोरोना काल में दम तोड़ा। इनमें से 30 का तो कोई परिवार वाला दाह संस्कार के लिए भी नहीं आया। इनका लावारिश में अंतिम संस्कार करना पड़ा। वहीं 18 लोग ऐसे थे, जिनकी कोरोना से मौत हुई थी। इनके परिवार वाले दाह संस्कार के लिए तो आए, लेकिन उनकी अस्थियां लेने श्मशान घाट नहीं पहुंचे। ऐसे में हिंडन मोक्ष स्थली के प्रबंधकों ने बुधवार को ब्रजघाट जाकर गंगा में अस्थियां प्रवाहित कीं। मोक्ष स्थली (श्मशान घाट) के संचालक आचार्य मनीष पंडित ने बताया कि उन्होंने 48 शवों की अस्थियों को ब्रजघाट गंगा में प्रवाहित किया है। इनमें 18 कोरोना संक्रमित लोगों की थी, जिनके परिवार के लोग लेने नहीं आए थे। अचानक बढ़ गए थे मामले कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में 15 अप्रैल के बाद आई तेजी के बाद जिले के अधिकांश सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों के बेड फुल हो गए थे। ऑक्सिजन की कमी, इलाज के अभाव में बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हुई। कई तो ऐसे भी थे जिनके तीमारदार अस्पताल के बाहर इलाज के लिए एडमिशन का इंतजार करते रहे लेकिन बेड खाली न मिलने पर मरीज ने अस्पताल के बाहर ही दम तोड़ दिया। 21 अप्रैल से लेकर 10 मई तक हिंडन मोक्ष स्थली (श्मशान घाट) पर हालात ऐसे ही थे। सवेरे से ही अंतिम संस्कार के लिए शवों की लाइन लग जाती थी। इसके लिए 8 घंटे तक इंतजार करना पड़ता था। मोक्ष स्थली में कई बार तो एक दिन में 70 से लेकर 80 शवों तक का अंतिम संस्कार कराया गया। इसके कारण नगर निगम कोरोना संक्रमितों के संस्कार की प्रक्रिया अपने हाथों में ले ली। जब शवों की संख्या और अधिक होने लगी तो प्रशासन ने इंदिरापुरम और करहेड़ा में अलग से श्मशान घाट चालू कर दिया। सरकारी आंकड़ों में बेशक दूसरे लहर में मृतकों की संख्या करीब 450 हो लेकिन गैर सरकारी सूत्र यह संख्या हजारों तक बताते हैं। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग तर्क देता है कि बड़ी संख्या में दिल्ली और आसपास के जिलों से भी संक्रमित व्यक्तियों की अंतिम संस्कार हिंडन नदी के तट पर किया गया। पहली लहर में भी अपनों ने मोड़ा था मुंह आचार्य मनीष पंडित ने बताया कि कोरोना संक्रमण की पहली लहर में भी जब बड़ी संख्या में प्रवासी गाजियाबाद के रास्ते से दूरदराज क्षेत्र के लिए पैदल ही जा रहे थे, इस दौरान कई संक्रमित व्यक्तियों की रास्ते में मौत हो गई थी। जिनके परिवार शवों का अंतिम संस्कार करने तो लाए लेकिन फूल (अस्थियां) चुनने नहीं आए। इस दौरान भी करीब 50 लोगों की अस्थियां को गंगा नदी प्रवाहित किया गया था। दूसरी लहर में भी वही हाल उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में भी 18 संक्रमित ऐसे थे जिनके संस्कार के दौरान तो उनके परिवार के लोग आए थे लेकिन फूल चुनने नहीं आए। जबकि 30 लावारिश शवों के फूल थे। कुल 48 लोगों की अस्थियां गंगा में प्रवाहित कर उनकी मुक्ति के लिए हम लोगों ने प्रार्थना की। हम इन अस्थियों को एक विशेष वाहन से बृजघाट ले गए जहां नाव किराए पर लेकर पूरे धार्मिक अनुष्ठान के साथ अस्थियों को बीच गंगा नदी में प्रवाहित कर मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।


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