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उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव परिणाम समाजवादी पार्टी के लिए संजीवनी

  पिछले विधानसभा व आम चुनाव में भाजपा से करारी शिकस्त मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव परिणाम समाजवादी पार्टी के लिए किसी संजीवनी स...

 




पिछले विधानसभा व आम चुनाव में भाजपा से करारी शिकस्त मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव परिणाम समाजवादी पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं दिख रहे हैं। यदि अब तक के रुझानों को देखें तो सपा प्रदेश भर में अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही है। प्रदेश में भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्यों की संख्या अधिक है, लेकिन वाराणसी, मथुरा, काशी, अयोध्या, प्रयागराज, चित्रकूट आदि शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सपा ने अपनी बढ़ती ताकत का एहसास कराया है। राजनीतिक दलों ने इस बार के पंचायत चुनाव को प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइन मानकर ही चुनाव जीतने की रणनीतियां बनाई थीं।


यही कारण है कि पहली बार उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में सियासी दलों के समर्थित उम्मीदवारों ने जिला पंचायत सदस्य के तौर पर चुनाव लड़ा है। जिसमें समाजवादी पार्टी ने भी अपने अधिकृत उम्मीदवारों के लिए ही वोट मांगा। इससे पहले पंचायत चुनावों में सपा के कई नेता एक साथ चुनाव मैदान में नजर आते थे। गौर करने की बात यह है कि पंचायत चुनाव में मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार ने अपने गढ़ को बचाने में कामयाबी पाई है। मुलायम की भतीजी संध्या यादव (भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ी थीं) भी चुनाव हार गईं। सबसे खास बात रही है कि मुलायम सिंह यादव के परिवार के गढ़ को बचाने के लिए उनके भाई शिवपाल यादव ने भी साथ दिया। जबकि शिवपाल और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की राह अलग-अलग हैं। चुनाव में भाजपा को सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी कड़ी टक्कर देती नजर आई है। कांग्रेस और बसपा के अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी भाजपा के विजय रथ को रोकने में बड़ी सफलता अर्जित की है।


सपा प्रवक्ता व एमएलसी सुनील सिंह साजन ने को बताया कि प्रदेश की जनता ने विधानसभा व आम चुनाव में भाजपा को भारी बहुत से जिताया था। लेकिन, केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। इसलिए भाजपा के सांसद व विधायक पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपने क्षेत्र से पंचायत उम्मीदारों को विजय नहीं दिला पाए। भाजपा के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों से सपा के प्रत्याशी जीते हैं। प्रदेश की जनता के साथ भगवान भी भाजपा से नाराज हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में जनता सपा को जिताकर अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने जा रही है। लोगों को धर्म की राजनीति नहीं चाहिए। वह अच्छी सड़कें, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज चाहती है। उनका दावा है कि कम से कम 50 फीसदी सीटों पर सपा जीत रही है। 


पश्चिम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन का फायदा भी मिला है।  दोनों दलों के गठबंधन से जहां भाजपा का नुकसान हुआ है, वहीं किसान आंदोलन का असर भी इन चुनावों में देखने को मिला है। 

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पंचायत चुनाव से ठीक पहले प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर चुनाव की रणनीति तैयार की थी। इस रणनीति के तहत गुटबाजी से दूर होकर कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव लड़ने का आह्वान किया था, जिसका फायदा चुनाव के नतीजों पर भी दिख रहा है।

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