पटना लोक जनशक्ति पार्टी में हुई टूट के बाद अब सभी की निगाहें इसी बात पर है कि आखिर चाचा-भतीजे के बीच जारी इस सियासी जंग में आगे क्या होगा...

पटना लोक जनशक्ति पार्टी में हुई टूट के बाद अब सभी की निगाहें इसी बात पर है कि आखिर चाचा-भतीजे के बीच जारी इस सियासी जंग में आगे क्या होगा? फिलहाल दोनों ही खेमे की ओर से पार्टी पर नियंत्रण के लिए कोशिशें तेज कर दी गई हैं। मंगलवार को जहां चिराग पासवान () के नेतृत्व में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पशुपति पारस समेत 5 असंतुष्ट सांसदों को निष्कासित करने का दावा किया गया। वहीं दूसरी ओर पार्टी के 6 में से 5 सांसदों ने चिराग पासवान की जगह पारस को न केवल लोकसभा में संसदीय दल का नेता चुन लिया, साथ ही चिराग को पार्टी अध्यक्ष पद से भी हटा दिया। इसलिए पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे पशुति पारस हालांकि, जिस तरह से पूरा घटनाक्रम सामने आया उसके बाद सवाल उठ रहे आखिर पशुपति पारस ने ये बगावती तेवर अचानक क्यों अख्तियार किया? आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन कभी अपने भाई रामविलास पासवान के इशारों पर कदम बढ़ाने वाले पारस अचानक ही पार्टी की टूट के सूत्रधार नहीं बने। इसका बीज 2019 में ही पड़ गया था जब करीब दो साल पहले उनको दरकिनार कर चिराग पासवान को पहले संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष और बाद में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। 2019 में एलजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया जाना नागवार गुजरा यही नहीं चिराग को 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद संसदीय दल के नेता का पद भी दे दिया गया। सियासी जानकारों के मुताबिक, 24 सितंबर, 2019 जब पशुपति पारस को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाया गया और दलित सेना के राष्ट्रीय प्रमुख की जिम्मेदारी दी गई तो ये बात भी उन्हें नागवार गुजरी। इसी के बाद से पारस लगातार पार्टी नेतृत्व से खफा चल रहे थे। हालांकि, तख्तापलट करने में उन्हें एक साल नौ महीने लग गए। सवाल ये भी है कि आखिर पारस ने एलजेपी में तख्तापलट क्यों किया? रामविलास पासवान के गुजरने के बाद बढ़ने लगी पारस की हसरतें21 जुलाई, 2019 समस्तीपुर के तत्कालीन सांसद और दलित सेना के प्रमुख रामचंद्र पासवान का निधन हुआ, फिर 8 अक्टूबर 2021 को पार्टी के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दोनों भाइयों के गुजरने के बाद पशुपति पारस ने अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने की कवायद शुरू की। इसका पता इस बात से भी चला कि कुछ समय पहले एक पत्र सामने आया थे जिसमें पशुपति पारस के हस्ताक्षर थे और ऐसी चर्चा उड़ी थी कि उनके नेतृत्व में 4 सांसद अलग हो रहे हैं। हालांकि, बाद में खुद पशुपति पारस ने इसे खारिज कर दिया था। लेकिन कहीं न कहीं उनके मन में एलजेपी का 'बॉस' बनने की हसरत बनी हुई थी, जिसे आखिरकार अब उन्होंने पूरा करने की ओर कदम बढ़ा दिया है। एलजेपी में घमासान पर क्या है जेडीयू-बीजेपी की रणनीतिइस पूरे घटनाक्रम को लेकर जेडीयू खेमे खुशी नजर आ रही है, लेकिन बीजेपी की ओर से अभी तक कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा गया है। पार्टी लगातार इसे एलजेपी का अंदरूनी मामला ही बता रही है। हालांकि, सियासी जानकारों के मुताबिक, बीजेपी नहीं चाहेगी कि चिराग की स्थिति किसी भी तरह से पार्टी में कमजोर पड़े। ऐसा होने की स्थिति में जेडीयू को फायदा होगा क्योंकि पशुपति पारस कई मौकों पर नीतीश की तारीफ कर चुके हैं। हालांकि, जेडीयू और बीजेपी फिलहाल वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। पारस Vs चिराग में अब आगे क्या?फिलहाल पारस ने पार्टी संसदीय दल का नेता बनने के बाद चुनाव आयोग से उनके नेतृत्व में अलग हुए गुट को असली एलजेपी के रूप में मान्यता देने के लिए कहा है। तकनीकी रूप से चिराग अभी भी पार्टी अध्यक्ष हैं। वहीं सूत्रों के मुताबिक, पारस और चिराग दोनों ही पार्टी पर अपना-अपना दावा पेश करने के लिए कानूनी सलाह में जुटे हुए हैं। वहीं पारस पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर विचार कर रहे हैं, इसकी औपचारिकता के लिए राष्ट्रीय परिषद की ओर से समर्थन की आवश्यकता होगी। लेकिन इसमें दिलचस्प बात यह है कि चिराग ने इसी साल फरवरी में राष्ट्रीय परिषद और राज्य कार्यकारिणी दोनों समितियों को भंग कर दिया था। ऐसे में सवाल ये है कि एलजेपी में जारी उठापटक में अभी और क्या नया घटनाक्रम नजर आएगा, इसका इंतजार सभी को है।
from Hindi Samachar: हिंदी समाचार, Samachar in Hindi, आज के ताजा हिंदी समाचार, Aaj Ki Taza Khabar, आज की ताजा खाबर, राज्य समाचार, शहर के समाचार - नवभारत टाइम्स https://ift.tt/3pWiYsQ
https://ift.tt/3q6d74w
No comments