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जीनोम की ABCD को ऐसे समझें, एक्सपर्ट ने बताया कैसे और किन तरीकों से होती है नए वेरिएंट की पहचान

नई दिल्ली कभी अल्फा तो कभी बीटा। कोरोना के नए नए वेरिएंट के बारे में सुनने और जानने को मिल रहा है। इन दिनों डेल्टा और डेल्टा प्लस चर्चा म...

नई दिल्ली कभी अल्फा तो कभी बीटा। कोरोना के नए नए वेरिएंट के बारे में सुनने और जानने को मिल रहा है। इन दिनों डेल्टा और डेल्टा प्लस चर्चा में है। कोरोना वायरस में हुए बदलाव के बाद नए स्ट्रक्चर के साथ यह एक प्रकार का नया वायरस है, जिसे मेडिकली नया वेरिएंट कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, नए वेरिएंट की पहचान कैसे होती है, पहचान करने का क्या-क्या तरीका है। इन तमाम पहलुओं के बारे हमारे एक्सपर्ट बता रहे हैं..... हर वायरस के जीन का डेटा खास प्रकार के सिक्वेंस में होता है ऐपेडेमोलॉजिस्ट और पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया ने कहा कि हर वायरस के जीन का एक डेटा होता है, जो एक खास प्रकार के सिक्वेंस में होता है। जब कोरोना आया था तो इस वायरस के बारे में 11 जून 2020 को चीन और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने इसके के बारे में बताया था। जीनोम सिक्वेंसिंग जीन का एक स्ट्रक्चर होता है। लेकिन, जब वायरस रिप्लिकेट करता है तो यह अपनी कॉपी बनाता है। लेकिन, कई बार यह अपनी कॉपी बनाने में गलती कर जाता है और वह पहले वाले की तरह नहीं होता है, उसमें कुछ मिसिंग रह जाता है, जो उसके ऑरिजिनल यानी बेस पेयर से अलग होता है। अपने मूल चरित्र या बेस पेयर अलग होने को ही म्यूटेशन कहा जाता है। डॉक्टर चंद्रकांत ने कहा कि आमतौर पर यह नए रूप में वायरस आने के बाद उसके व्यवहार में बड़ा बदलाव नहीं होता है, इसलिए अधिकतर यह देखा गया है कि म्यूटेशन के बाद भी वायरस ज्यादा खतरनाक नहीं होता है। लेकिन, कोरोना में खासकर डेल्टा और डेल्टा प्लस में देखा जा रहा है कि म्यूटेशन के बाद यह वायरस पहले से ज्यादा खतरनाक हो गया है। वेरिएंट की पहचान के लिए वायरस के आरएनए को बढ़ाया जाता है बीएलके सुपर स्पेशलिटी के हॉस्पिटल लैब सर्विसेज के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर अनिल हांडू का कहना है कि जहां तक नए वेरिएंट की जांच या पहचान की बात है तो इसे ऐसे समझा जा सकता है। हर वायरस का एक जेनेटिक सिक्वेंस होता है, आसान शब्दों में एक फिक्स नंबर या स्ट्रक्चर होता है। जिसे उस वायरस का बेस पेयर कहा जाता है। हम सभी जानते हैं कि जो वायरस सबसे पहले आया था उसे अल्फा, फिर बीटा, गामा, डेल्टा और डेल्टा प्लस है। यहां पर हर वायरस का एक स्ट्रक्चर है, जो लैब में मौजूद है। वेरिएंट की पहचान के लिए वायरस के आरएनए को बढ़ाया जाता है, इसके लिए इसे सिक्वेंसिंग मशीन पर डाला जाता है। इसके लिए आजकल एनएसजी प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि यह नेक्स्ट जेनरेशन का है। जब किसी मरीज का सैंपल लिया जाता है तो उसके छोटे से हिस्से को पीसीआर के जरिए बड़ा करके यह पता लगाते हैं कि कोरोना है या नहीं। लेकिन जीनोम सिक्वेंसिंग में आरएनए को बड़ा करके बेस पेयर के स्ट्रक्चर से मिलान किया जाता है। डॉक्टर अनिल ने कहा कि हमारे पास पहले से जो बेस पेयर है और वायरस का स्ट्रक्चर उससे मिल रहा है तो हम उसे आसानी से पहचान सकते हैं कि सैंपल में कौन सा वायरस है। डॉक्टर अनिल ने कहा कि अगर किसी वायरस का स्ट्रक्चर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8... है और जब वह अपनी कॉपी बनाता है और उस स्ट्रक्चर में कोई एक अंक गायब है या उसके स्थान पर कोई दूसरा अंक है, जो समझ लिया जाता है कि इस वायरस में बदलाव हो गया है और उसका नंबर यह है। अब अगर लगातार सैंपल की जांच के बाद इसी तरह का स्ट्रक्चर मिलता रहता है तो समझ लिया जाता है कि वायरस में एक नया म्यूटेशन हो गया, जिसका स्ट्रक्चर ऐसा है। डॉक्टर ने कहा कि अभी लैब में न्यूट्रलाइजेशन भी किया जा रहा है। इसमें हम यह भी देख सकते हैं कि जो नया वेरिएंट आया है उसे एंटीबॉडी से क्रॉस कराते हैं। इससे यह पता चल जाता है कि नया म्यूटेशन में बीमार करने की कितनी क्षमता है। जैसा डेल्टा प्लस में देखा जा रहा है कि यह संक्रमित तो कर ही रहा है, यह बीमार भी ज्यादा कर रहा है। उन्होंने कहा कि जीनोम की जांच के लिए सैंपल को बड़ा करना और उसके सिक्वेंस से मैच कराने में बहुत समय लगता है, इसलिए यह एक चुनौतीपूर्ण काम है। देश में 10 लैब इस पर काम कर रहे हैं और 45 हजार सैंपल की ही जांच हो सकी है डॉक्टर चंद्रकांत ने कहा कि अभी हमारे देश में 10 लैब इस पर काम कर रहे हैं और केवल 45 हजार सैंपल की ही जांच हो सकी है। सरकार ने इसके लिए एक Indian SARS CoV-2 consortium on Genomics (INSACOG) बनाया गया है, जो इस पर नजर रख रही है और इस प्रोसिजर को और आगे बढ़ाने के लिए देश के बाकी हिस्सों में भी लैब तैयार कर रही है। आईएनएसएसीओजी के अनुसार आने वाले दिनों में देश में 18 और लैब को इससे जोड़ा जा रहा है। इसमें से दो लैब और दिल्ली में होंगे, जिसमें एक एम्स और दूसरा आईएलबीएस है। इससे पहले दिल्ली में एनसीडीसी और आईजीआईबी में सैंपल की जीनोम टेस्टिंग की जा रही है। जानकारी के अनुसार दिल्ली में अब तक 1605 सैंपल की जीनोम टेस्टिंग की जा चुकी है।
  • देश भर में अभी 10 जीनोम सिक्वेंसिंग लैब हैं
  • दिल्ली में ऐसे दो लैब हैं, एनसीडीसी और आईजीआईबी
  • आने वाले समय में देश में ऐसे 18 लैब खोले जा रहे हैं
  • दिल्ली में ऐसे दो लैब एम्स और आईएलबीएस में शुरू किए जा रहे हैं
  • अभी तक पूरे देश में 45 हजार सैंपल लिए गए हैं, जिसमें 36,630 सैंपल की जांच हुई
  • 18,747 वेरिएंट्स ऑफ कंसर्न है
  • कुल 28 लैब शुरू होने पर एक महीने में 45 हजार सैंपल की जांच संभव होगा
  • इसके लिए देश में Indian SARS CoV-2 consortium on Genomics बनाया गया है


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