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Fuel Price Hike : मॉनसून जल्दी आया तो डीजल के चढ़े भाव ने बिहार के किसानों की खुशी काफूर की, धान की खेती तक में खर्चा बढ़ा

पटना: बिहार में जल्द आए मॉनसून से किसानों के चेहरे खिल उठे थे। धान की खेती के मौसम में मॉनसून का समय पर या उससे थोड़ा पहले आ जाना अच्छा स...

पटना: बिहार में जल्द आए मॉनसून से किसानों के चेहरे खिल उठे थे। धान की खेती के मौसम में मॉनसून का समय पर या उससे थोड़ा पहले आ जाना अच्छा संकेत माना जाता है। लेकिन इसके बाद भी पटवन के लिए किसानों को डीजल की आवश्यकता पड़ ही जाती है। लेकिन डीजल के भाव में तो आग लगी है। डीजल के चढ़े भाव ने किसानों की बढ़ाई चिंता देश भर के साथ बिहार में डीजल के चढ़े भाव से किसान यूं ही परेशान नहीं हैं। खेती की अधिकांश गतिविधियां जैसे जुताई, खेतों में पानी देना, अनाज को अलग करना और कटाई करना... ये सब ट्रैक्टर, वाटर पंप, थ्रेसर और हार्वेस्टिंग मशीनों के माध्यम से किया जाता है जो डीजल पर काम करते हैं। लेकिन जब से ईंधन की कीमतें बढ़ी हैं, खेती की गतिविधियों की लागत कई गुना बढ़ गई है। पिछले साल के मुकाबले अभी के भाव में बड़ा अंतर बिहार में पिछले साल की समान अवधि के दौरान डीजल का रेट 75 रुपये प्रति लीटर से करीब 96 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया है। सिर्फ पिछले 20 दिन में डीजल की कीमत में 2.46 रुपये प्रति लीटर से अधिक की वृद्धि हुई है। ईंधन की कीमत से फसल इनपुट लागत पर असर किसानों और कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, ईंधन की कीमतें फसलों की इनपुट लागत निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञानी डॉ अब्दुस सत्तार ने कहा कि 'धान के बीज देने के दौरान और उसकी खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए ट्रैक्टरों की आवश्यकता होती है। इसके लिए आम तौर पर खेत में 2 से 3 सेमी पानी भरे रखने की जरूरत होती है। कई किसान ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं जिसके लिए डीजल की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ अभी भी पारंपरिक बैल हल का उपयोग करते हैं। एक बार पौधे की रोपाई हो जाने के बाद, अच्छी उपज के लिए भूमि को प्रति सप्ताह 30 से 35 मिमी बारिश की आवश्यकता होती है।” किसान भी डीजल के रेट से परेशानसमस्तीपुर के पटियाली के रहने वाले किसान हरि प्रकाश चौधरी ने कहा कि 'ईंधन की बढ़ती कीमतों से लेकर श्रम लागत तक, सब कुछ फसल की लागत में ही तो बढ़ रहा है। धान की फसल की खेती की कुल लागत 13,000 रुपये हो गई है, जिसमें मशीनरी, उर्वरक, बीज और श्रम की लागत का उपयोग शामिल है।' वो आगे कहते हैं कि 'जब फसलों को बेचने की बात आती है, तो हमें कभी भी सही कीमत नहीं मिलती है। मेरे पास अभी भी गेहूं का पर्याप्त भंडार है क्योंकि मुझे कोई खरीदार नहीं मिला। सरकार ने एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है, हालांकि मैंने इसे 1,200 रुपये प्रति क्विंटल पर बेच दिया। हम केवल नुकसान का सामना कर रहे हैं।'


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