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Gupteshwar Pandey News : ओहदा विधायक का भले ही ऊपर हो लेकिन ठसक तो डीजीपी की ही ज्यादा होती है... जानिए NBT पर और क्या-क्या बोले पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय

पटना/नई दिल्ली: बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने अपना ट्रैक बदल लिया है। एक समय वह राजनीति में जाने के इतने इच्छुक थे कि दो-दो ...

पटना/नई दिल्ली: बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने अपना ट्रैक बदल लिया है। एक समय वह राजनीति में जाने के इतने इच्छुक थे कि दो-दो बार वीआरएस ले लिया था। फिर भी उस मंजिल तक नहीं पहुंच पाए, जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी। शायद यही वजह रही कि अब उन्होंने खुद को नई भूमिका में ढाल लिया है। अब वह भागवत कथा वाचक बन गए हैं। एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने उनसे राजनीति से मोहभंग और बिल्कुल अलग रास्ता चुनने की वजह पूछी। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश : अचानक आपकी भूमिका बदल गई है, क्या वजह रही? मेरी रुचि शुरू से आध्यात्मिक रही है, लेकिन मैं फनैटिक हिंदू नहीं हूं। मैं सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने वाला हिंदू हूं। बिहार में 33 साल नौकरी की है। राज्य में जब कहीं दंगे होते, मुझे ही हेलिकॉप्टर से लैंड कराया जाता। मुझे कभी लाठीचार्ज कराने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। लोग मेरी बात सुन लिया करते थे क्योंकि मुझे उनका भरोसा हासिल था। पूजा, पाठ, भजन, कीर्तन यह सब मेरे जीवन का हिस्सा रहे हैं। ब्राह्मण परिवार से आता हूं। ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन, दोनों में संस्कृत विषय होने की वजह से तमाम हिंदू धर्मग्रंथ पढ़ने का मुझे मौका मिला। सेवा अवधि पूरी होने के बाद कई दूसरे विकल्प भी थे, लेकिन आपने कथावाचक की ही भूमिका क्यों चुनी? हमारे यहां प्रकृति के तीन गुण हैं- तम, रज, सत। जब मनुष्य में तम प्रधान होता है तो उसका चिंतन आहार, निद्रा, भय और मैथुन तक ही सीमित होता है। इससे आगे वह कुछ नहीं सोचता। जब रजो गुण आ जाता है तो उसमें भोग-विलास और बल-वैभव के प्रदर्शन की रुचि पैदा हो जाती है। लेकिन सतगुण आने पर वह इन सबके दायरे से बाहर आ जाता है, उसकी रुचि यह जानने में हो जाती है वह कौन है? जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है? समय, काल, परिस्थितियों के अनुसार मनुष्य के भीतर के गुणों में परिवर्तन होते रहते हैं। मेरे अंदर भी ऐसा ही हुआ। लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजनीति में आने की इच्छा आपमें थी?सच है कि मैं राजनीति में आना चाहता था। उसी के लिए मैंने वीआरएस लिया। लेकिन यह सोचने की जरूरत है कि क्या मैंने सिर्फ विधायक बनने के लिए अपनी नौकरी छोड़ी थी? प्रोटोकॉल में एक विधायक डीजीपी से जरूर ऊंचा होता है, लेकिन डीजीपी की जो हनक और ठसक होती है, वह विधायक से ज्यादा होती है। तो सिर्फ विधायक बनने के लिए मैंने नौकरी नहीं छोड़ी थी। दरअसल विधायक बनकर नया मानक स्थापित करना चाहता था कि एक आदर्श विधायक कैसा होना चाहिए? विधायक बन जाता तो भी आखिर में मेरा रास्ता वही होता, जो आज है। लेकिन राजनीति में आप फेल हो गए, क्या वजह मानते हैं?राजनीति में सरवाइव करने और कामयाब होने के लिए जिन अति दुर्लभ गुणों की जरूरत होती है, वे शायद मुझमें अभी विकसित नहीं हुए हैं। चाणक्य नीति भी आपको आनी ही चाहिए। साम, दाम, दंड, भेद- यह सब जरूरी है राजनीति के लिए। लेकिन न तो मेरी इसमें कभी ट्रेनिंग हुई, न ही मेरा संस्कार वैसा रहा। राजनीति में तो बड़े महान लोग जाते हैं, जिनके अंदर क्षमा हो, दया हो, करुणा हो, त्याग हो, तपस्या हो, संघर्ष करने की शक्ति हो। राजनीति बहुत त्यागी पुरुषों की जगह है, हम उसके योग्य नहीं हैं। यह मैं व्यंग्य में नहीं कह रहा हूं। सचाई बता रहा हूं। सितंबर 2020 में आपने जेडीयू की सदस्यता ली थी, तो अभी उसके मेंबर हैं या उसे भी त्याग दिया?सदस्यता मेरे पास अभी भी है, मैंने उससे इस्तीफा नहीं दिया है। लेकिन पॉलिटिकल एक्टिविटीज में कभी शामिल नहीं रहा। चुनाव प्रचार के दौरान एक-दो जगह कहीं गया था, इससे ज्यादा राजनीति में मेरी कोई भूमिका अभी तक नहीं रही। जब आप नई भूमिका में आ रहे थे तो क्या नीतीश कुमार जी को उसके बारे में बताया था?वह हमारे अभिभावक हैं। वह हमें बहुत मानते हैं। मैं भी उनका बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन हम हर व्यक्तिगत बात उन्हें बताने की जरूरत नहीं समझते। टिकट के भरोसे आपने 2-2 बार वीआरएस लिया, नीतीश जी से कभी पूछा नहीं कि क्यों आपको टिकट नहीं मिल पाया?राजनीति के अपने समीकरण, दांव पेंच होते हैं। मैं इसके लिए किसी दूसरे को कसूरवार नहीं मानता। ऐसा करने के लिए मेरे पास कोई आधार भी नहीं है। मैंने अगर दो-दो बार वीआरएस लिया तो यह मेरा अपना निर्णय था, नीतीश जी का नहीं। मैं राजनीति में आना चाहता था, तो यह भी मेरा निर्णय था। जेडीयू में शामिल हुआ, यह भी मेरा व्यक्तिगत निर्णय था, राजनीति में फेल हो गया तो उसका जिम्मेदार भी मैं ही हूं। मेरी किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं है। कोई दूसरी पार्टी से आपको साथ लेना चाहे, किसी सदन में भेजने की बात करे तो क्या फैसला होगा?आपको कैसे मालूम कि ऐसे ऑफर मुझे नहीं मिल रहे हैं? छह महीने से मेरे पास ऐसे बहुत से ऑफर आए, लेकिन राजनीति में सक्रिय होना फिलहाल मेरी रुचि में नहीं है। जो रास्ता चुना है, उसी में आगे बढ़ते जाना है। बिहार के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर आपकी क्या राय है? मुझे इस पर कुछ नहीं बोलना। बस इतना कह सकता हूं कि बिहार को बहुत योग्य मुख्यमंत्री मिला हुआ है। इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना।


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