पटना राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव सक्रिय राजनीति में फिलहाल मौजूद नहीं हैं। अब हर किसी को लालू यादव से मिलना संभव नहीं है। बिहार...

पटना राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव सक्रिय राजनीति में फिलहाल मौजूद नहीं हैं। अब हर किसी को लालू यादव से मिलना संभव नहीं है। बिहार की राजनीति में उनकी चर्चा ना हो ऐसा संभव ही नहीं है। विधानसभा चुनाव 2020 में उनका सक्रीय ना रहना भी चर्चा का विषय था। कभी बिहार के दलितों-पिछड़ों और वंचितों की आवाज थे लालू 15 साल तक बिहार में शासन करने वाले लालू प्रसाद यादव का सियासी सफर 1970 के दशक से शुरू हुआ था। जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे लालू प्रसाद यादव ने सड़क से लेकर सदन तक दलितों-पिछड़ों और वंचितों के लिए लड़ाई लड़ी। ये लालू यादव द्वारा दी गई ताकत का ही नतीजा था कि जिन दलित-पिछड़े और वंचितों के मुंह से आवाज नहीं निकलती थी, वे अपने हक की लड़ाई के लिए खुलकर लालू यादव के समर्थन में उतर गए। इन्हीं लोगों के बल पर लालू यादव ने 15 साल तक बिहार पर राज किया। लेकिन पहले बढ़ते अपराध फिर चारा घोटाला मामले में फंसने पर लालू प्रसाद यादव का यह वोट बैंक उनसे दूर होता चला गया और 2005 में लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। दूसरों की नकल उतारने के माहिर लालू यादव लालू प्रसाद यादव ने एक चुनावी मंच से खुद ही यह कहा था कि उन्हें मिमिक्री करने में मजा आता है। हालांकि 2020 के विधान सभा चुनाव में लालू यादव के गंवई अंदाज में दिए गए भाषण में 'ऐ बुड़बक' जैसे शब्दों के साथ 'तबला बाजे धीन-धीन, एक नमो पर तीन-तीन', 'रघुपति राघव राजा राम, भाजपा को विदा कर दे भगवान' और 'गांधी-पीर अली का है बिहार, नहीं बनेगी भाजपा सरकार' जैसे जुमले नहीं सुनने को मिले। आपको याद होगा 2015 विधानसभा चुनाव में किस प्रकार लालू यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिमिक्री की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को पैकेज दिए जाने की घोषणा की थी। मगर लालू यादव ने जिस प्रकार नकल उतारी, उसे भला कौन भूल सकता है। राजनीतिक दांवपेंच में लालू का जबाब नहीं 2015 में राजनीतिक दांवपेच की वजह से आरजेडी को सत्ता में वापस लाने वाले लालू प्रसाद यादव की कमी 2020 में उनके परिवार वालों के साथ पार्टी के लोगों को काफी खली। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद, 2015 में बीजेपी से अलग हुए नीतीश कुमार के साथ महागठबंधन बनाया। लालू यादव की राजनीति की वजह से ना सिर्फ 2015 में पूर्ण बहुमत के साथ महागठबंधन की सरकार बनी बल्कि, लालू यादव ने एक बार फिर साबित कर दिया था कि वे राजनीतिक दांवपेंच के कुशल खिलाड़ी हैं। 2020 विधानसभा चुनाव के वक्त चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू यादव भले ही जेल में बंद थे लेकिन वो जेल में रहकर भी बिहार की सियासत में अपनी मौजूदगी का एहसास कराते रहते थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लालू प्रसाद यादव ने पलटीमार क्या कहा, आज भी उनके समर्थक नीतीश कुमार को पलटीमार ही कहते हैं। यानी लालू प्रसाद यादव अपने वोटर और समर्थक की नब्ज देखकर ही किसी शब्द का इस्तेमाल किया करते हैं। भीड़ को हसांते हुए बड़ा संदेश दे जाते हैं लालू यादव आरजेडी सुप्रीमो ने ही बीजेपी को 'भारत जलाओ पार्टी' की संज्ञा दी थी। 2015 के चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए सवा लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी। तब लालू यादव ने भी अपने ठेठ अंदाज में पैकेज को लेकर प्रधानमंत्री की जिस अंदाज में मिमिक्री की थी। उससे पीएम के पैकेज की जगह लालू प्रसाद के किए गए मिमिक्री की चर्चा शुरू हो गई थी। तब लालू प्रसाद यादव ने अपने रैली में यह कहा था कि, 'मोदी जी, इस अंदाज़ में मत बोलिए वरना गर्दन की नस खींच जाएगी'। लालू यादव के पीएम की नकल आज भी चर्चित है। सत्ता से बेदखल होने के बाद भी लालू यादव लोगों के बीच ही रहे। अपने ऊपर होने वाले हमले का जवाब भी लालू यादव कुछ इस तरह देते थे कि लोग लोटपोट हो जाते थे। अपने संकट काल में विरोधियों का वार झेलने वाले लालू यादव ने कहा कि 'हाथी पड़े पांकी में, सियार मारे हुचुकी'। यानी हाथी अगर फंस जाएगा तो सियार हसीं उड़ाते ही हैं। इसके साथ ही लालू यादव कहते थे सियार के हंसने से हाथी को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि संकट आया है तो जाएगा भी।
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