मथुरा/अलीगढ़ 15 हजार लोगों की आबादी वाली मथुरा की नई बस्ती में दो दिनों तक चले अभियान में स्वास्थ्यकर्मी केवल 20 लोगों को ही कोविड वैक्सी...

मथुरा/अलीगढ़ 15 हजार लोगों की आबादी वाली मथुरा की नई बस्ती में दो दिनों तक चले अभियान में स्वास्थ्यकर्मी केवल 20 लोगों को ही कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए राजी कर सके। ग्रामीण इलाकों में वैक्सिनेशन की कम रफ्तार इसलिए देखने को मिली है क्योंकि अधिकतर लोगों में भ्रम की स्थिति है। इम्युनिटी घटने, नपुसंक हो जाने और अधिक से अधिक मौत हो जाने तक की आशंका लोगों में है। कोविड कंट्रोल यूनिट के इंचार्च डॉक्टर भूदेव सिंह ने कहा, 'नई बस्ती के लोग वैक्सिनेशन के लिए तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि वैक्सीन लगवाने से उनकी मौत हो जाएगी। हमने लोगों को बहुत समझाया लेकिन दो दिनों में केवल 20 लोगों को ही वैक्सीन लगवा सके।' उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग तकनीकी रूप से पिछड़े हैं। सभी के पास स्मार्टफोन ना होने की वजह से रजिस्ट्रेशन ना हो पाना भी बड़ी समस्या है। उत्तर प्रदेश में 18 साल से अधिक उम्र वालों की आबादी करीब 14 करोड़ है। इसमें से केवल एक करोड़ 90 लाख को ही कोविड की पहली डोज लगी है, जबकि 35 लाख 30 हजार लोगों को दोनों डोज लग चुकी है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि वैक्सिनेशन के स्लॉट भी बुक नहीं हो पा रहे हैं। अलीगढ़ के जीवनगढ़ में घरों में काम करने वाली रुकसाना कहती हैं, 'मैं मरना नहीं चाहती हूं। जिन्होंने वैक्सीन लिया, वे हॉस्पिटल में भर्ती हुए और फिर उनकी मौत हो गई। मैं और मेरा परिवार वैक्सीन नहीं लगवाएगा।' वहीं नर्सिंग के पेशे से जुड़ी मेहरुन्निसा का कहना है कि वैक्सीन लगवाने से इम्युनिटी कमजोर हो जाएगी, जिससे कोविड हो जाएगा। यूपी स्टेट इम्युनाइजेशन ऑफिसर डॉक्टर अजय घई ने कहा, 'ग्रामीण क्षेत्र के लोग वैक्सिनेशन के फायदों से अनजान हैं। जागरुकता का ही नतीजा है कि नोएडा जैसे शहरों में वैक्सिनेशन की रफ्तार बहराइच या कानपुर से कहीं अधिक है।' अधिकारी अब वैक्सिनेशन के लिए ग्राम प्रधान, पार्षद जैसे स्थानीय स्तर के नेताओं के साथ ही पुजारी और इमाम की मदद भी ले रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रफेसर आफताब आलम ने लोगों में बनी इस सोच के पीछे सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराया। एएमयू के वाइस चांसलर प्रफेसर तारिक मंसूर ने कहा, 'लोगों के बीच सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा हावी हो चुका है। अधिकतर का मानना है कि पहली डोज के बाद लोग या तो नपुंसक हो जाएंगे या फिर मर जाएंगे।'
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