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तेलंगाना में रेवंत तो यूपी में ओपी राजभर... BJP से नहीं संभल पाए ये चेहरे, जानिए हैं कौन

हैदराबाद/लखनऊ तेलंगाना में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में रेवंत रेड्डी की नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो गया है। उनका विरोध पार्टी के अंदर...

हैदराबाद/लखनऊ तेलंगाना में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में रेवंत रेड्डी की नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो गया है। उनका विरोध पार्टी के अंदर से ही हो रहा है। इस विवाद में दिलचस्पी की वजह यह है कि रेवंत को राहुल गांधी का भरोसेमंद माना जाता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि कहीं रेड्डी के बहाने निशाना राहुल तो नहीं हैं? उधर यूपी से ओमप्रकाश राजभर चर्चा में हैं। वह राजभर समाज के बड़े नेता माने जाते हैं, उनकी अपनी पार्टी भी है। कभी वह बीजेपी के दोस्त थे, अब दुश्मन हैं। दोनों के बारे में बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ और आनंद त्रिपाठी: ABVP से PCC चीफ तक पहुंचे रेवंत रेड्डी 53 साल के रेवंत रेड्डी का तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि उन्होंने आरएसएस के अनुषंगिक संगठन- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उनका इसी वजह से विरोध भी हो रहा है। लेकिन इन दिनों उनकी गिनती राहुल गांधी के भरोसेमंद लोगों में होती है। हालांकि कांग्रेस में आने से पहले उन्होंने राज्य के दो अन्य दलों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वह टीआरएस में भी रहे और तेलगुदेशम में भी। 2017 में उन्होंने कांग्रेस में एंट्री की थी। कांग्रेस में उनकी एंट्री के राजू के मार्फत हुई है। पूर्व आईएएस अधिकारी राजू राहुल की कोर टीम का हिस्सा माने जाते हैं। रेवंत 1980 से विद्यार्थी परिषद से जुड़े, बाद में उन्होंने बीजेपी में राजनीति की। 2002 में टीआरएस में आए, लेकिन इस पार्टी में उनका बहुत दिनों तक दिल नहीं लग पाया। टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और बतौर निर्दलीय भाग्य आजमाने की कोशिश की। तब कामयाबी तो नहीं मिली, मगर उन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता कम नहीं की। 2008 में चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल किया। तेलंगाना में टीडीपी के कमजोर पड़ने पर छोड़ी पार्टी 2009 और 2014 में लगातार दो बार विधायक बने। लेकिन आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद उनका कार्यक्षेत्र तेलंगाना में आ गया। तेलगुदेशम पार्टी के वहां कमजोर होने के कारण राजनीति भी कमजोर होने लगी। आखिरकार 2017 में उन्होंने टीडीपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने का फैसला किया। 2019 में वह कांग्रेस के टिकट से लड़े और जीतकर लोकसभा सांसद बने। हैदराबाद में जनमे और वहीं से कॉलेज की पढ़ाई करने वाले रेवंत रेड्डी की शादी पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत जयपाल रेड्डी की भतीजी गीता रेड्डी से हुई है। कांग्रेस के अंदर रेवंत रेड्डी को पुराने सीनियर नेताओं का जबरदस्त प्रतिरोध झेलना पड़ा है, लेकिन इस विरोध के बावजूद उन्हें राज्य कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया है क्योंकि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नई टीम के साथ पूरी तरह तैयार रहना चाहती है। रेवंत राज्य में युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय माने जाते हैं और उनकी छवि एक ऐसे जुझारू नेता की है जो विपरीत परिस्थितियों में कहीं ज्यादा बेहतर परफॉर्म करते हैं। कांग्रेस को फिलहाल ऐसे ही नेताओं की जरूरत है। कभी टेंपो भी चलाते थे ओम प्रकाश 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी से मिलते-जुलते नाम वाली एक पार्टी एसबीएसपी (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) ने चौंकाने वाले नतीजे दिए थे। पहली बार पार्टी के चार विधायक विधानसभा पहुंचे और पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। यहीं से ओम प्रकाश राजभर पूरे उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में एक जाना-पहचाना नाम बन गए। पढ़ाई के दौरान ओम प्रकाश रात में टैंपो चलाते थे। बाद में उन्होंने एक जीप खरीदी, जिसमें सवारी लाने ले जाने का काम किया। राजभर ने अपनी राजनीति की शुरुआत 1981 में कांशीराम के साथ की थी, लेकिन 20 साल बीएसपी में रहने के बाद 2001 में वह मायावती से अलग हुए। वजह यह थी कि 2001 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भदोही का नाम संतकबीरनगर किया, तो राजभर इस फैसले के विरोध में उतर आए। मायावती ने उनकी नहीं सुनी, तो उन्होंने बीएसपी छोड़ दी। बीएसपी से अलग होकर 27 अक्टूबर 2002 को उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। 2004 के लोकसभा चुनाव और 2007 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारे, लेकिन जीत नहीं मिली। 2017 में बीजेपी से गठबंधन, 2019 में टूटी दोस्ती 2012 में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल से गठबंधन किया, लेकिन उनके भी प्रत्याशी नहीं जीते। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन किया और चुनाव लड़े। यह चुनाव बीजेपी और बीएसएसपी, दोनों के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ। मगर सत्ता में आने के कुछ महीने बाद ही बीएसएसपी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के मतभेद बीजेपी से बढ़ने लगे। योगी सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने कई बार अपनी ही सरकार की नीतियों पर हमला बोला। 2019 लोकसभा चुनाव आते-आते बीजेपी और बीएसएसपी के बीच दूरियां कुछ ज्यादा ही बढ़ गईं। एसबीएसपी गठबंधन में सीटों की मांग कर रही थी, जिसे बीजेपी ने नहीं माना। बाद में एसबीएसपी ने बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने कैंडिडेट उतार दिए। इसके बाद बीजेपी और बीएसएसपी के बीच गठबंधन टूट गया। राजभर का मानना है कि जब तक आरक्षण का वर्गीकरण नहीं होता, तब तक अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। अब 2022 के चुनावों से पहले ओम प्रकाश राजभर की बातचीत कई दलों के साथ चल रही है।


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