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राज्यपाल मिश्र की बायोग्राफी पर वबाल, इसमें लिखा- बीजेपी ज्वाइन करो, गवर्नर ऑफिस ने किया खुद को विवाद से दूर

जयपुर राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र एक बार फिर विवादों में घिर गए है। ताजा मामला राज्यपाल की जीवनी से जुड़ी किताब का है। महज विमोचन के...

जयपुर राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र एक बार फिर विवादों में घिर गए है। ताजा मामला राज्यपाल की जीवनी से जुड़ी किताब का है। महज विमोचन के तीसरे दिन ही विवादों में आई इस किताब के कंटेट से लेकर इसकी बिक्री तक प्रक्रिया अब कंट्रोवर्सी का हिस्सा बन गया है, जिस पर आपत्तियां जताई जा रही है। वहीं इसे लेकर सियासत भी बढ़ गई है। इधर इस पूरे मामले में बढ़े विवाद को देखते हुए अब गवर्नर ऑफिस ने आधिकारिक बयान करते हुए इससे खुद को दूर कर लिया है। दरअसल आपको बता दें कि इस पुस्तक के विमोचन के दौरान राज्य के 27 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को इस बायोग्राफी की प्रतियां कथित तौर पर बेची गई। यह जानकारी मिली है कि प्रदेश के 27 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को बिना ऑर्डर 19-19 किताब दी गई। साथ ही इन किताबों के साथ ही 68-68 हजार के बिल भी थमा दिए गए, लेकिन बिना सहमति के कुलपतियों को किताब बेचने और बिल थमाने को लेकर जब विवाद बड़ा तो, राज्यपाल कार्यालय की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि इस पुस्तक बिक्री में उनका कोई भूमिका नहीं है। कुलपतियों ने किताब वापस लौटाने की कही बात आधिकारिक बयान में साफ तौर पर कहा गया है कि प्रकाशक, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप (IIME) ने राज्यपाल के घर पर पुस्तक को लॉन्च करने का अनुरोध किया था और यह उन्हें प्रदान किया था, लेकिन किताबों की 'बिक्री' गवर्नर हाउस की कोई भूमिका नहीं है। इधर बयान जारी होने के तुरंत बाद उन सभी कुलपतियों ने भी प्रतियां वापस लौटाने की बात कह दी है। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल के 80 वें जन्मदिन पर 1 जुलाई को इस पुस्तक का विमोचन किया गया। पुस्तक का नाम 'कलराज मिश्रा: निमित मातृ हूं मैं' (आई एम जस्ट ए मीडियम)' है, जिसे डॉ. डी.के टकनेट ने लिखा है। पुस्तक बिक्री के संबंध में सहयोगी अखबार टीओआई से बात करते हुए IIME के निदेशक, डी के टकनेट ने कहा कि "मैं राज्यपाल के कार्यालय के बयान से पूरी तरह सहमत हूं कि उन्हें किताबों की बिक्री के बारे में पता नहीं था। यह एक मानक प्रथा है कि ऐसे आयोजनों के दौरान हम पुस्तकों को बिक्री के लिए ले जाते हैं। कुलपतियों को किताबें इस शर्त पर दी गईं कि अगर वे इसे नहीं चाहते हैं तो वे उन्हें वापस कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि वे इस कार्यक्रम में पुस्तक की 500 प्रतियां लेकर आए थे और लगभग हर अतिथि को मानार्थ प्रतियां दी थीं। कुलपतियों का कहना - कार्यक्रम में पुस्तक खरीदने का जिक्र नहीं किया गया सहयोगी अखबार टीओआई के अनुसार दरअसल कार्यक्रम खत्म होने के बाद कुलपतियों की कारों में एक कार्टन में किताब की 19 प्रतियां छोड़ी गई थी। साथ ही उनके उनके ड्राइवरों को 10% छूट के बाद कुल 68,383 रुपये का बिल थमाया गया था। इस मामले में कुछ कुलपतियों से जब टीओआई ने बात की, तो उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि उन्हें पांच घंटे के कार्यक्रम के दौरान पुस्तक की 'खरीद' के बारे में सूचित नहीं किया गया था। पुस्तक में बीजेपी ज्वाइन करने की अपील उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर पुस्तक की खरीद को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर से इस किताब के कंटेंट को लेकर भी अब सियासत गर्मा रही है। बताया जा रहा है कि इस पुस्तक के पेज नंबर 116 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ज्वाइन करने की बात कही गई है। वहीं पुस्तक में आरएसएस का भी जिक्र है। बड़ी बात यह है कि इसमें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के अलावा सीएम अशोक गहलोत ने भी हिस्सा लिया। वहीं विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी सहित 27 कुलपतियों भी इस आयोजन में मौजूद रहे। राज्यपाल के ओएसडी भी घिरे विवादों में उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में राज्यपाल मिश्रा के ओएसडी गोविंद राम जायसवाल भी विवादों में घिर गए है। किताब में उन्हें सह-लेखन के तौर पर दर्शाया गया है, लेकिन राज्यपाल के सूत्रों ने सह- लेखन की बात को खारिज किया है। उन्होंने बताया कि जायसवाल की भूमिका सिर्फ राज्यपाल मिश्रा की ओर से लेखकों को जानकारी देने की थी।


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