मेरठ चार शताबादी पहले मुगलों की सेना में भर्ती हुए अफगानिस्तान के एक सैनिक ने मेरठ से करीब 30 किमी. दूर शाहजहानपुर शहर बसाया। उस सैनिक की...

मेरठ चार शताबादी पहले मुगलों की सेना में भर्ती हुए अफगानिस्तान के एक सैनिक ने मेरठ से करीब 30 किमी. दूर शाहजहानपुर शहर बसाया। उस सैनिक की अब 11वीं पीढ़ी यहां रह रही है और सैनिक मोहम्मद अब्बास खान करलानी की विरासत को लेकर आगे बढ़ रही है। अब यह परिवार किसानों का है। मोदीनगर के कॉलेज में इतिहास के प्रफेसर डॉ. केके शर्मा कहते हैं, 'पिछली शताब्दी तक इस शहर को शाहजहानपुर अफगान के नाम से जाना जाता था।' अब यहां दो हजार लोग रहते हैं। ज्यादातर लोग दौलत खान के वंशज हैं। दौलत खान, मोहम्मद अब्बास के चार बेटों में से एक था। इन सभी को मुगल सेना ने भर्ती किया था। दौलत खान ही अकेले थे जो यहां रुक गए। तोप के गोले से उड़ गए थे शरीर के चीथड़े इस टाउन में एंट्री करते ही स्मारक यहां मोहम्मद अब्बास खान की कहानी सुनाते हैं। वह पश्तून समुदाय के दिलजाख पठान थे। 1632 में उन्होंने यह इलाका बसाया और 1660 में उनकी मृत्यु हो गई। शाह शुजा के खिलाफ उन्होंने औरंगजेब के लिए लड़ाई लड़ी। तोप के गोले से उनके शरीर के चिथड़े उड़ गए। बस एक हाथ बचा जिसे दफनाया गया। आज उसी जगह पर मेरठ-गढ़ रोड पर उनका मकबरा बना है। खुद को बताते हैं भाग्यशाली अब एक मामूली घर में रह रहे परिवार के मुखिया मोहम्मद इमरान खान कहते हैं, 'हम यह नहीं भूल सकते कि हमारी जड़ें अफगानिस्तान से जुड़ी हैं। लेकिन मैं सोचता हूं कि हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पूर्वज यहां आ गए।' वह कहते हैं, 'इतिहास गवाह है कि अफगानियों को न तो ब्रिटिश, न रूसी और न ही अमेरिका नियंत्रित कर पाया।' जोधपुर की राजकुमारी को डकैतों से बचाया था इमरान खान के भाई नौमान खान (84) बताते हैं, 'मोहम्मद अब्बास खान ने जोधपुर की राजकुमारी को डकैतों से बचाया था। तभी से राजपरिवार उनका एहसान मानता है। वह जोधा बाई थीं जिन्होंने मोहम्मद खुर्रम को जन्म दिया। जिन्हें शाहजहां नाम से जाना गया।' मोहम्मद अब्बास खान ने दिन मुगल बादशाहों- जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब की सेवा की। अफगानिस्तान पर नहीं करना चाहते चर्चा हालांकि, परिवार में से कोई भी इस बात पर चर्चा नहीं करना चाहता है कि अफगानिस्तान में आज क्या हो रहा है। इमरान खान के भतीजे जकराया खान कहते हैं कि इस बात का क्या मतलब है? हम तो भारतीय हैं। परिवार अपने खर्चे के लिए आम के बागों और नर्सरी पर निर्भर है। इतिहासकार डॉक्टर शर्मा कहते हैं कि परिवार के पास अब छोटे खेत ही बचे हैं।
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