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'गवर्नर एक्टिव है तो सीएम को खुश होना चाहिए', छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके का Exclusive इंटरव्यू

() इस मामले में दूसरे राज्यपालों से अलग दिखती हैं कि राज्य में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद वह किसी मुद्दे पर उसको कठघरे में खड़ा करने से...

() इस मामले में दूसरे राज्यपालों से अलग दिखती हैं कि राज्य में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद वह किसी मुद्दे पर उसको कठघरे में खड़ा करने से परहेज करती हैं। कहती हैं, ‘राज्यपाल के रूप में तो मैं राज्य सरकार की कस्टोडियन हूं। अगर मैं अपनी सरकार को असफल बताऊंगी तो असफलता के दायरे में मैं भी आ जाऊंगी।’ उनका नजरिया साफ है, कहती हैं, गवर्नर और सीएम के बीच टकराव से कुछ भी हासिल नहीं होगा। उइके पिछले हफ्ते दो दिवसीय दौरे पर दिल्ली रहीं, जहां उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मुलाकात की। उन्होंने एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम के साथ राज्य की कांग्रेस सरकार के साथ अपने रिश्तों और बतौर राज्यपाल अपने अनुभवों को साझा किया। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश : आपने लंबा वक्त एक्टिव पॉलिटिक्स में गुजारा है। अब राजभवन के तमाम तरह के प्रोटोकॉल के बीच कैसा महसूस करती हैं? पॉलिटिक्स में आपके पास कहीं ज्यादा स्वतंत्रता होती है। लेकिन जब किसी संवैधानिक पद पर पहुंच जाते हैं, तो उसके प्रोटोकॉल का पालन करना ही होता है। सबसे बड़ी बात यह कि दलगत राजनीति से ऊपर उठना होता है। राज्यपाल बनने के बाद मुझे अचानक बंदिश जैसा कोई अहसास इसलिए नहीं हुआ कि इससे पहले मैं राष्ट्रीय जनजाति आयोग में रही हूं। वह भी संवैधानिक पद होता है। संवैधानिक पद पर रहने का एक फायदा यह होता है कि आप जनता के लिए वह सब कुछ कर सकते हैं, जिसे पॉलिटिक्स में रहने के दौरान दूसरे से करने की अपेक्षा करते हैं। दो दिन दिल्ली में गुजारे, राष्ट्रपति से मिलीं, प्रधानमंत्री से मिलीं, कोई खास मकसद? मैं जिस राज्य की राज्यपाल हूं, वह आदिवासी बहुल राज्य है। करीब 32 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है। संविधान की अनुसूची पांच, जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के अधिकार सुनिश्चित करती है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं रहा है। इस अनुसूची के तहत अधिसूचित क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था भी पूरी तरह से राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के अधीन होती है। मैंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों से अनुरोध किया कि आदिवासी क्षेत्रों के लिए जो संवैधानिक व्यवस्था है, वे लागू की जाएं। आदिवासियों के बीच काम करने वाले तमाम संगठन समय-समय पर मुझसे मिलने आते हैं। राज्यपाल के नाते उनकी मुझसे अपेक्षा होती है कि संविधान में जो कहा गया है, उसका पालन हो। इसके लिए तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ही कुछ कर सकते हैं। लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भविष्य में आपको और बड़ी जिम्मेदारी दी जाने वाली है... मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। मैं यह जानती हूं कि मैं राज्यपाल हूं, जिस अपेक्षा के साथ मुझे राज्यपाल मनोनीत किया गया है, मैं उसे पूरा करूं। मुझे अपने कर्तव्य और दायित्व का अहसास है, उनके प्रति मैं कटिबद्ध हूं। राज्यपाल के रूप में आप बहुत सक्रिय हैं। जब-तब आप सरकार से जवाब-तलब करती रहती हैं। मई महीने में सिलगेर गांव में सीआरपीएफ कैंप बनाने के विरोध में आंदोलन में जब तीन आदिवासी मारे गए तो आपने पुलिस अधिकारियों को राजभवन तलब कर लिया था? अगर गवर्नर सक्रिय है तो सीएम को खुश होना चाहिए। गवर्नर की सक्रियता सीएम की सहायता करती है। मेरे जरिए अगर जनता की किसी समस्या का समाधान होता है तो उसका श्रेय सरकार को ही मिलेगा। गवर्नर को न तो चुनाव लड़ना होता है और न ही वोट लेना होता है। सिगनेर गांव में मेरे हस्तक्षेप से आदिवासियों के बीच जो नाराजगी थी, वह कम हुई तो इसका फायदा सीएम को ही हुआ, वरना उन्हें लंबे आंदोलन का सामना करना पड़ जाता। सीएम भूपेश बघेल को आपकी सक्रियता पसंद आती है या टकराव चलता रहता है? मुझे नहीं लगता है कि गवर्नर और सीएम के बीच टकराव से कुछ हासिल होने वाला है। दोनों को मिलकर ही काम करना होगा तभी जनता की अपेक्षाओं को पूरा किया जा सकता है। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है, आवश्यकता महसूस होने पर प्रदेश के हित में मैं उन्हें सलाह देती हूं। ज्यादातर वह मेरी सलाह मान भी लेते हैं। जब सरकार का कोई निर्णय मेरे पास मंजूरी के लिए आता है और मुझे लगता है कि इसमें कोई बात ऐसी नहीं वैसी होनी चाहिए तो मैं उसमें उन्हें परिवर्तन करने को कहती हूं। बघेल सरकार को आप दस में कितने नंबर देना चाहेंगी? मैं आठ नंबर दे दूंगी। आठ नंबर देने की वजह भी मैं आपको बताती हूं। सवाल यहां भूपेश बघेल का नहीं है, राज्य सरकार का है। मैं राज्य सरकार की कस्टोडियन हूं और अपनी सरकार को मैं विफल नहीं कह सकती। हर सरकार में कुछ कमी होती है और तो कुछ अच्छाई भी होती है। नक्सली समस्या का हल नहीं हो पा रहा है, इसकी क्या वजह देखती हैं? इसके लिए मैंने दो सुझाव दिए हैं। पहला तो यह कि जो नक्सली हैं, उनमें से ज्यादातर स्थानीय हैं। अगर उन्होंने हथियार उठाए हैं तो क्यों उठाए हैं, इसकी तह में जाना चाहिए। जब तक हम जड़ में नहीं जाएंगे, यह समस्या बनी रहेगी। दूसरी यह कि नक्सलवाद का रास्ता छोड़ने पर उनके लिए हमने जिन योजनाओं की बात की है, उनका क्रियान्वयन हर हाल में सुनिश्चित हो, तभी बात बन सकती है।


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