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सुपरटेक के 32 मंजिला ट्विन टावर कैसे होंगे ध्वस्त? जानिए क्यों है भारत का 'सबसे ऊंचा' चैलेंज

नोएडा नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 32 मंजिला ट्विन टावर को गिराना सबसे बड़ा चैलेंज है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि चुनौती इसलिए ज्यादा...

नोएडा नोएडा में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 32 मंजिला ट्विन टावर को गिराना सबसे बड़ा चैलेंज है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि चुनौती इसलिए ज्यादा बड़ी है क्योंकि भारत में इतनी ऊंची बिल्डिंग को अब तक गिराया नहीं गया। स्काई स्क्रैपर्स का कॉन्सेप्ट भारत में अभी नया है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस टेक्निक के जरिए गगनचुंबी इमारतों को गिराने को लेकर देश में अभी बहुत कम रिसर्च हुई है। 40 मंजिल का प्लान, अभी 32 फ्लोर बने रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक का दोनों टावरों एपेक्स और सियेन पर 40-40 मंजिल बनाने का प्लान था। इनमें से अब तक 32 मंजिलें बन चुकी हैं। इन दोनों टावरों को ध्वस्त करना एक कठिन लॉजिस्टिक चैलेंज है। सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों टावरों को गिराने का आदेश दिया है। दरअसल इन टावरों के आसपास कई इमारतें हैं। एमराल्ड कोर्ट कंपाउंड के सबसे करीब एक बिल्डिंग है, जो ट्विन टावर की दीवार से सिर्फ एक संकरे रास्ते के फासले पर है। गिराने के लिए इस तकनीक को एक्सपर्ट बता रहे बेहतर हालांकि ऐसे ऊंचे निर्माण को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर गिराने के लिए बहुत सारी तकनीक हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि घनी आबादी वाले इलाकों में आंतरिक विस्फोट (Implosion) के जरिए बिल्डिंग को ध्वस्त करना बेहतर तरीका हो सकता है। इस तकनीक के जरिए बिल्डिंग में अलग-अलग जगहों पर छोटी-छोटी एक्सप्लोसिव डिवाइस रखी जाती हैं। इन डिवाइस को इस तरह रखा जाता है कि धमाका होने के बाद मलबा परिसर के अंदर ही गिरे। इस तरह के ध्वस्तीकरण पूरी दुनिया में होते रहे हैं। भारत में भी छोटे पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा चुका है। लेकिन इसके लिए काफी तैयारी की जरूरत होती है। इसके साथ ही ट्विन टावर के मामले में एमराल्ड कोर्ट के अंदर मौजूद नजदीकी टावरों की संरचना को बचाए रखना भी चुनौती होगी। अभी इम्प्लोजन तकनीक का ही सफलतापूर्वक प्रयोग इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के अध्यक्ष दिव्य कुश कहते हैं, 'भारत में बमुश्किल स्काई स्क्रैपर डिमॉलिशन या उससे संबंधित रिसर्च देखने को मिलती है। नोएडा अथॉरिटी को एक्सपर्ट्स के रूप में विदेशी कंसल्टेंट्स को हायर करना होगा। अब तक इम्प्लोजन ही ऐसी तकनीक है, जिसका सफलतापूर्वक हर जगह इस्तेमाल हो चुका है।' जनवरी 2020 में केरल में गिरी थी 18 मंजिला बिल्डिंग हालिया दिनों में एक उदाहरण मिलता है, जब जनवरी 2020 में केरल के मराडु में चार मल्टी स्टोरी कॉम्प्लेक्स को को गिराया गया था। नियमों को ताक पर रखकर बनाई गई इन इमारतों को सुप्रीम कोर्ट ने गिराने का आदेश दिया था। इनमें से जो सबसे ऊंची बिल्डिंग गिराई गई थी, वह 18 मंजिल की थी। ध्वस्तीकरण में किन बातों का ध्यान रखना जरूरी मराडु डिमॉलिशन में शामिल रहे एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ध्वस्तीकरण की तैयारी करने में सबसे ज्यादा वक्त लगता है। विस्फोटकों को एकदम सही जगह पर फिट करना अहम है, क्योंकि आसपास मौजूद इमारतों को किसी तरह के नुकसान से बचाना भी जरूरी है। राजस्थान स्थित फर्म एग्जीक्यूड प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर आनंद शर्मा ने मराडु कॉम्प्लेक्स के दो टावरों को गिराने के अभियान का नेतृत्व किया था। वह कहते हैं, 'ब्लास्ट को प्लान करने के साथ ही उसका परफेक्ट खाका खींचने की जरूरत है। पहले हमें उन फ्लोर्स को चुनना होगा, जहां ब्लास्ट करना है। इसके बाद इन फ्लोर्स से सपोर्ट और दीवारों को हटाना होगा। विस्फोटकों को इस तरह रखना होगा कि खंभों (पिलर्स) में एक के बाद एक सिलसिलेवार ब्लास्ट होता जाए।' नियंत्रित ब्लास्ट के साथ ये भी फैक्टर्स अहम आनंद शर्मा बताते हैं कि मराडु के सबसे करीब जो बिल्डिंग थी वह 8 मीटर दूर थी। वहीं नोएडा में एमराल्ड कोर्ट के एस्टर-2 टावर के सबसे पास 9 मीटर दूर रिहाइशी बिल्डिंग है। शर्मा कहते हैं, 'बहुत से फैक्टर्स को ध्यान में रखना होगा, यही वजह है कि इलाके का सर्वे किए बगैर लॉजिस्टिक्स और खर्च को नहीं जोड़ा जा सकता है।' इंडियन आर्मी के स्ट्रक्चरल एक्सपर्ट रिटायर्ड कर्नल एमके प्रसाद बताते हैं, 'ब्लास्ट को बहुत ही नियंत्रित तरीके से संचालित करना होगा। विस्फोट की तीव्रता बिल्डिंग की ऊंचाई, कुल एरिया, डेड वेट, फ्लोर लोड और सपोर्टिंग पिलर्स जैसे फैक्टर्स पर निर्भर करेगी।' 50 से 100 मीटर के रेडियस में खाली कराना होगा इलाका एक्सपर्ट्स का कहना है कि इंप्लोजन के जरिए गिरने वाला मलबा नजदीकी बिल्डिंगों को बमुश्किल प्रभावित करता है। लेकिन धूल का गुबार हवा के बहाव के मुताबिक लंबे वक्त तक रहता है। आनंद शर्मा कहते हैं, 'हम ब्लास्ट के 50 से 100 मीटर के रेडियस में आने वाले हर किसी को हटाने को प्राथमिकता देते हैं। हवा में 10 से 15 मिनट तक धूल बरकरार रह सकती है लेकिन पूरी प्रक्रिया में ज्यादा वक्त लगता है। लोगों को कम से कम तीन से चार घंटे के लिए हटाना पड़ेगा।' ट्विन टावर को गिराने में लग सकते हैं 4 महीनेमराडु में दूसरी इमारतों को ध्वस्त कराने में साउथ अफ्रीका के कंसल्टेंट्स के साथ एक्सपर्ट उत्कर्ष मेहता शामिल थे। मेहता कहते हैं कि मलबे को ताश के पत्तों की तरह नीचे की ओर गिराना सुनिश्चित करना होगा। यह सबसे बड़ी चुनौती है। उनका अनुमान है कि नोएडा में पूरी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में चार महीने लग सकते हैं। इसमें प्लानिंग से लेकर मलबे को हटाना शामिल है। मेहता आगे बताते हैं, 'मराडु में हमें प्लानिंग करने में 15 दिन लगे थे। वहीं दो महीने बिल्डिंग को ब्लास्ट के लिए तैयार करने में लगे। इसके अलावा मलबे को हटाने में एक महीना बीत गया।'


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