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दादरी में फिर गरमाया सम्राट मिहिर भोज का विवाद, गुर्जर या राजपूत? क्या कहते हैं इतिहासकार

सुधीर कुमार, नोएडा दादरी में सम्राट मिहिर भोज पर विवाद एक बार फिर तूल पकड़ रहा है। मिहिर भोज पीजी कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा क...

सुधीर कुमार, नोएडा दादरी में सम्राट मिहिर भोज पर विवाद एक बार फिर तूल पकड़ रहा है। मिहिर भोज पीजी कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का सीएम योगी आदित्यनाथ ने अनावरण किया था। इस बीच प्रतिमा के पास पुलिस का पहरा लगाया गया है। सोशल मीडिया पर 26 सितंबर को दादरी चलो नाम से मुहिम चलाई जा रही है।इसे गुर्जर स्वाभिमान बचाओ महापंचायत का नाम दिया गया है। गुर्जर और राजपूत दोनों समाज के लोग सम्राट मिहिर भोज को अपना वंशज बताकर दावे कर रहे हैं। इस पर क्या कहते हैं इतिहासकार आइए जानते हैं। मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी सम्राट थे इतिहासकार आचार्य वीरेंद्र विक्रम ने बताया कि गुर्जर सम्राट मिहिर भोज रघुवंशी सम्राट थे और गुर्जर प्रतिहार वंश के सबसे प्रतापी सम्राट थे। उन्होंने 53 वर्षों तक अखंड भारत पर शासन किया। उनके समकालीन शासकों राष्ट्रकूट और पालो ने अपने अभिलेखों में उनको गुर्जर कहकर ही संबोधित किया है। 851 ईसवीं में भारत भ्रमण पर आए अरब यात्री सुलेमान ने उनको गुर्जर राजा और उनके देश को गुर्जर देश कहा है। सम्राट मिहिर भोज के पौत्र सम्राट महिपाल को कन्नड़ कवि पंप ने गुर्जर राजा लिखा है। उन्होंने बताया कि प्रतिहारों को कदवाहा, राजोर, देवली, राधनपुर, करहाड़, सज्जन, नीलगुंड, बड़ौदा के शिलालेखों में गुर्जर जाति का लिखा है। 1300 ईसवीं से पहले राजपूत जाति का उल्लेख नहीं 1957 में डॉक्टर बैजनाथ पुरी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से गुर्जर प्रतिहारो पर पीएचडी करी और उनको गुर्जर जाति का सिद्ध किया। भारत के इतिहास में 1300 ईसवीं से पहले राजपूत नाम की किसी भी जाति का कोई उल्लेख नहीं है। क्षत्रिय कोई जाति नहीं है, क्षत्रिय एक वर्ण है जिसमें जाट, गुर्जर, राजपूत, अहीर (यादव), मराठा आदि सभी जातिया आती हैं। उन्होंने बताया की हमारे सारे प्रमाण मूल लेखों, समकालीन साहित्य और शिलालेखों पर आधारित हैं। गुर्जर प्रतिहार शासकों ने करवाए ये निर्माण ग्वालियर और चंबल संभाग में आज भी गुर्जर समाज के गांवों में गुर्जर प्रतिहार कालीन मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं। इनमें बटेश्वर, नरेश्वर, बरहावली, डांग सरकार प्रमुख है। पद्मश्री के मुहम्मद जी ने बटेश्वर मंदिर श्रंखला मुरैना का जीर्णोद्वार करवा कर इस ऐतिहासिक विरासत की रक्षा की और उन्होंने घोषित किया ये सारे निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाए गए थे। ग्वालियर किले पर बना तेली मंदिर भी सम्राट मिहिर ने बनवाया ग्वालियर किले पर बने तेली के मंदिर और चतुर्भुज मंदिर का निर्माण भी गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने अपने शासनकाल मे करवाया था। प्रतिहारों को कदवाहा, राजोर, देवली, राधनपुर, करहाड़, सज्जन, नीलगुंड, बड़ौदा के शिलालेखों में गुर्जर जाति का लिखा है। गुर्जर शब्द स्थान वाचक बताया ना की जातिवाचक: अजय ओम, राष्ट्रीय अध्यक्ष राजपूत उत्थान सभा ने बताया कि प्रतिहार वंश उत्पत्ति का प्रमुख चंद्रवरदाई की पुस्तक राजपूत वंश प्रतिहार प्रमाण चालुक्य सोलंकी चहमान या चौहान है। 'गुर्जर स्थानवाचक, जातिवाचक नहीं' टीवी वैद्य ओझा दशरथ शर्मा जैसे विद्वानों ने इन्हें गुर्जर देश का शासक कहा और के मुंशी ने अपने विभिन्न उदाहरणों से गुर्जर शब्द को स्थान वाचक बताया ना की जातिवाचक। विभिन्न विद्वानों ने बताया कि यदि वह जाति क्षत्रिय थी तो इसका नामोनिशां सामाजिक आर्थिक स्तर पर समाप्त कैसे हो गया। यह एक गोचर जाती है। इसका वर्तमान में सबसे बड़ा उदाहरण गोचर महाविद्यालय गोचर आईटीआई रामपुर मनिहारान में है। 'प्रतिहार हैं राजपूत' प्रतिहार राजपूतों की प्राचीनतम राजधानी मंडोर में प्रतिहार राजपूत हैं गुर्जर नहीं। दूसरी राजधानी भीनमाल में भी प्रतिहार राजपूत हैं तीसरी कन्नौज। यहां भी प्रतिहार राजपूत आज भी है गुर्जर नहीं। प्राचीन गुजरात और आज के पाली जालौर, सिरोही, पाटन, साबरकांठा, बनासकांठा मेहसाणा आदि इलाकों में अब भी राजपूत मिलते हैं पर गुर्जर जाति का यहां नामोनिशां नहीं है। ...तो इसलिए कहलाए गुर्जर प्रतिहार आधुनिक गुजरात क्षेत्र में राजपूत हैं और गुर्जर जाति यहां भी नहीं मिलती। कन्नौज रघुवंशी प्रतिहारों ने किसी ताम्रपत्र में खुद को गुर्जर नहीं कहा। उनके हर लेख में वह खुद को सौमित्र लक्ष्मण का वंशज लिखते हैं। सिर्फ राजौर गढ़ के प्रतिहार राजवंश को ही शिलालेख में गुर्जर प्रतिहार लिखा। वह भी गुर्जर प्रदेश के अलवर में आने के कारण स्थान सूचक गुर्जर प्रतिहार कहलाए। 'उपाधि है गुर्जर' प्रतिहार वंश के सभी रिश्ते नाते भाटी, चंदेल चौहान, पाल, तोमर, राजपूत राजवंशों में इन्हें बडगुजर कहा गया, जो राजपूत हैं। इसी तरह गुर्जर गॉड, गुर्जर बनिए, गुर्जर सुथार आदि आज भी क्षेत्र के कारण कहलाते हैं। पंजाबी, बिहारी, मराठा जाति नहीं है। उसी तरह गुर्जर उपाधि है।


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