पटना कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बिहार (Bihar Latest News) के कई जिलों में गंगा नदी में शव तैरते हुए मिले थे। बक्सर और कटिहार जिले में स...

पटना कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बिहार (Bihar Latest News) के कई जिलों में गंगा नदी में शव तैरते हुए मिले थे। बक्सर और कटिहार जिले में सबसे ज्यादा शव दिखे थे। साथ ही बिहार के दूसरे जिलों में भी कहीं-कहीं शव मिले थे। उस वक्त यह कहा गया था कि ये शव कोरोना संक्रमितों के हैं। ऐसे में लोगों के मन में यह डर था कि संक्रमितों के शव गंगा नदी में फेंकने की वजह से गंगाजल में भी कोरोना के वायरस होंगे। इस डर पर से अब पर्दा उठ गया है। दरअसल, गंगा नदी में शव मिलने के बाद भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के साथ मिलकर स्वच्छ गंगा अभियान के तहत रिसर्च किया था। इस रिसर्च में गंगा नदी के पानी में कोरोना वायरस के होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक घोष ने कहा कि इस साल मई और जून में कोविड की दूसरी लहर के दौरान गंगा नदी में शव तैरते हुए पाए गए थे। उन्होंने कहा कि इसके बाद पानी के सैंपल लिए गए थे। अशोक घोष ने कहा कि राहत की बात यह है कि लिए गए सैंपल में कोविड वायरस के निशान नहीं थे। इसका मतलब है कि पानी कोविड पीड़ितों के शव से दूषित नहीं था। उन्होंने कहा कि दूसरे मानव निर्मित कारणों से गंगा नदी में अशुद्धियां हैं। अशोक घोष ने कहा कि टीम ने बिहार और यूपी के कई जिलों से दो चरणों में गंगा जल के नमूने लिए। नमूने की जांच के लिए सीएसआईआर-आईआईटीआर लखनऊ में भेजे गए थे क्योंकि हमारे लैब में ऐसी सुविधाएं नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अध्ययन की रिपोर्ट कुछ दिन में आधिकारिक रूप से जारी की जाएगी। मुख्य रूप से इसका नतीजा यही है कि पानी में कोरोना से दूषित नहीं हुआ था। अधिकारियों के अनुसार केंद्र सरकार की तरफ से गठित पैनल ने एक जून को बक्सर में गंगा नदी से और पांच जून को पटना, भोजपुर और सारण में गंगा नदी से नमूने लिए। पटना में दीघा घाट और गाय घाट से नमूने लिए गए थे। टीम में शामिल वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन दो चरणों में किया है। इस दौरान गंगा नदी से जो सैंपल लिए गए थे, उनकी आरटी-पीसीआर जांच भी की गई। इसके साथ ही नदी की अन्य जैविक विशेषताओं की भी जांच की गई है। पटना यूनिवर्सिटी में जूलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डीके पॉल ने कहा कि कोरोनावायरस आम तौर श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है। अगर लोग मुंह और नाक में पानी नहीं लेते हैं, तो उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। यहां तक कि अगर पानी सीमा से अधिक भी प्रदूषित है तो यह लोगों को प्रभावित नहीं करेगा। वहीं, पटना यूनिवर्सिटी में पीजी डिपार्टमेंट ऑफ जूलॉजी के हेड अरबिंद कुमार ने कहा कि नदी के किनारे पानी की थोड़ी मात्रा में प्रदूषण होगा क्योंकि कोविड पीड़ितों की लाशों को दफन किए बिना छोड़ दिया गया था। गंगा नदी के निरंतर प्रवाह के कारण पानी में वायरस की संद्रता कम हो गई थी।
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