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पिता के मना करने पर भी भोपाल छोड़ पाकिस्तान गए थे अब्दुल कादिर खान, परिवार से बयां किया था 'मुहाजिर' होने का दर्द

भोपाल भारत से बेइंतहा नफरत करने वाले (Abdul Qadeer Khan Latest News) का जन्म भोपाल में हुआ था। भोपाल के जिस घर में उनका बचपन गुजरा है, वह...

भोपाल भारत से बेइंतहा नफरत करने वाले (Abdul Qadeer Khan Latest News) का जन्म भोपाल में हुआ था। भोपाल के जिस घर में उनका बचपन गुजरा है, वह गिन्नौरी इलाके में स्थित है। सरकारी स्कूल के पीछे एक संकरी गली में अब्दुल कादिर खान का मकान है, जहां उनके परिजन रहते हैं। अब्दुल कादिर खान अपनी मां, तीन भाई और दो बहन के साथ यहां से 1951 में पाकिस्तान गए थे। पिता और छोटे भाई जाने के लिए तैयार नहीं हुए। अब्दुल कादिर खान बचपन में भोपाल को भारत का स्विट्जरलैंड कहते थे। पिता अब्दुल गफूर और छोटे भाई अब्दुल हफीज ने भोपाल नहीं छोड़ा। परिवार के लोग बताते हैं कि दोनों पाकिस्तान के सख्त विरोधी थी। भारत के खिलाफ आग उगलने वाले अब्दुल कादिर खान के पाकिस्तान जाने का विरोध करते थे। पाकिस्तान के न्यूक्लियर साइंटिस्ट के पिता अब्दुल गफूर होशंगाबाद जिले के एक स्कूल में हेडमास्टर थे। 1956 में उनका निधन हो गया था। वहीं, छोटे भाई अब्दुल हफीज भोपाल नगर निगम के अधिकारी थे। उनका भी निधन हो गया है। भोपाल को भारत का स्विट्जरलैंड कहते थे अब्दुल कादिर खान अब्दुल कादिर खान के चचेरे भाई जब्बार खान याद करते हुए बताते हैं कि वह परिवार के लोगों से भोपाली प्यार के बारे में बात करते थे। हॉकी, मछली पकड़ना और पतंगबाजी आदि के बारे में। अब्दुल कादिर खान भोपाल को भारत का स्विट्जरलैंड कहते थे। लेकिन भोपाल का एक शांत किशोर परमाणु अप्रसार के लिए खतरा कैसे बन गया, इस बारे में विनम्रता से ध्यान नहीं दिया जाता है। गिन्नौरी इलाके में राम फल वाली गली स्थित घर में कोई रहस्य नहीं है। इसमें एक मस्जिद की मीनार है जो घर की ओर देख रही है। हॉलैंड से आया निधन का संदेश भोपाल में रह रहे उनके करीबी लोगों को रविवार सुबह सात बजे हॉलैंड से आए मैसेज से जानकारी मिली थी कि अब्दुल कादिर का निधन हो गया है। रिश्तेदारों ने बताया कि इस्लामाबाद में उनकी मृत्यु हुई है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए अब्दुल कादिर खान के चचेरे भाई अब्दुल जब्बार खान ने कहा कि रक्त संबंध है। कौन इनकार कर सकता है? आप अपने दोस्तों को चुन सकते हैं, लेकिन अपने परिवार को नहीं। पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक के भोपाल रिश्तेदारों ने कहा कि उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1951-52 के आसपास भारत छोड़ दिया। उनके पिता अब्दुल गफ्फूर ने वहां जाने से मना करने के लिए भी इनकार कर दिया था। जब्बार ने कहा कि मेरे पिता और चाचा कभी पाकिस्तान नहीं गए। वे पढ़े-लिखे लोग थे, जो मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं के आह्वान को समझते थे। पिता थे हेडमास्टर जब्बार ने बताया कि अब्दुल कादिर के पिता ग्रेजुएट और शिक्षक थे, जो 79 रुपये की पेंशन के साथ एमपी के होशंगाबाद जिले से रिटायर हुए थे। 1950 के दशक में टीचर की सैलरी 45 रुपये था। भोपाल के पुश्तैनी घर में अब्दुल कादिर खान को कदम रखे करीब 50 साल हो गया है। अपने पिता की मृत्यु के बाद अब्दुल कादिर खान 1972 में भोपाल में श्रद्धांजलि अर्पित करने भोपाल आए थे। आठ घंटे के करीब वह यहां रुके थे। उन्होंने कहा कि कई लोगों अब्दुल कादिर खान के भोपाल कनेक्शन के बारे में तब तक पता नहीं था, जब तक कि परमाणु से संबंधित गतिविधियां सार्वजनक नहीं हो गईं।


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