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Vijaya Raje Scindia : गुरु के कहने पर राजमाता ने ठुकरा दी थीं अटल-आडवाणी की बात, जानें क्या है वो किस्सा

ग्वालियर में जनसंघ के लिए 60 के दशक में कांग्रेस से ज्यादा राजमाता विजया राजे सिंधिया चुनौती थीं। उस समय चंबल के इलाके में जनसंघ की स्थिति ज...

ग्वालियर में जनसंघ के लिए 60 के दशक में कांग्रेस से ज्यादा राजमाता विजया राजे सिंधिया चुनौती थीं। उस समय चंबल के इलाके में जनसंघ की स्थिति ज्यादा मजबूत नहीं थी। पूरे इलाके में सिंधिया परिवार का दबदबा था। इसकी वजह जनसंघ को इस इलाके में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही थी। जनसंघ 1967 के आम चुनाव से पहले यह रणनीति बनाने में लगी थी कि राजमाता के सामने कौन सी रणनीति अपनाई जाए। जनसंघ के बड़े नेता इस पर विचार कर ही रहे थे कि राजामाता ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी।

राजमाता विजया राजे सिंधिया का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 12 अक्टूबर 1919 को हुआ था। वह जनसंघ की संस्थापक रही हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी राजमात के काफी करीब रहे हैं। राजमाता विजया राजे सिंधिया अटल जी को अपना धर्मपुत्र मानती थी। आइए आपको किस्सा सुनाते हैं कि कैसे एक बार राजमात ने अटल और आडवाणी जी की बातों को ठुकरा दिया था।


Vijaya Raje Scindia : गुरु के कहने पर राजमाता ने ठुकरा दी थीं अटल-आडवाणी की बात, जानें क्या है वो किस्सा

ग्वालियर में जनसंघ के लिए 60 के दशक में कांग्रेस से ज्यादा राजमाता विजया राजे सिंधिया चुनौती थीं। उस समय चंबल के इलाके में जनसंघ की स्थिति ज्यादा मजबूत नहीं थी। पूरे इलाके में सिंधिया परिवार का दबदबा था। इसकी वजह जनसंघ को इस इलाके में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही थी। जनसंघ 1967 के आम चुनाव से पहले यह रणनीति बनाने में लगी थी कि राजमाता के सामने कौन सी रणनीति अपनाई जाए। जनसंघ के बड़े नेता इस पर विचार कर ही रहे थे कि राजामाता ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी।



1971 में जनसंघ की सदस्यता लीं
1971 में जनसंघ की सदस्यता लीं

राजमाता के ऐलान के साथ जनसंघ में खुशी की लहर दौड़ गई। नारायण कृष्ण शेजवलकर उन दिनों ग्वालियर में जनसंघ के अध्यक्ष थे। उन्होंने ने राजमाता को जनसंघ में लाने की कवायद शुरू कर दी। ग्वालियर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे के आवास पर राजामाता के करीबी सरदार आंग्रे के साथ चर्चा की। बातचीत के बाद उम्मीदवारों को लेकर आपसी सहमति बन गई। मगर राजमाता ने जनसंघ की सदस्यता नहीं ली। कुछ सालों बाद वह 1971 में आधिकारिक रूप से जनसंघ की सदस्यता ले लीं।



टिकट बंटवारे में नहीं बनती थी बात
टिकट बंटवारे में नहीं बनती थी बात

राजमाता जनसंघ में शामिल हो गई थीं। मगर कई जगहों पर टिकट बंटवारे के दौरान बात नहीं बनती थी। उस दौर में कई सीट ऐसे होते थे, जहां जनसंघ के अलग और राजमाता के अलग उम्मीदवार होते थे। राजमाता अपने ही उम्मीदवारों को चुनाव जीताकर लाती थीं। कई किताबों में इस बात का जिक्र है कि राजमाता के पास जनसंघ के टिकट ब्लैंक चेक की तरह होता था।



राजामाता को जनसंघ अध्यक्ष बनाने का सुझाव
राजामाता को जनसंघ अध्यक्ष बनाने का सुझाव

राजमाता जनसंघ की सदस्यता 1971 में ग्रहण की थी। 1972 में नए अध्यक्ष के लिए चर्चा शुरू हो गई। लाल कृष्ण आडवाणी की किताब माई कंट्री माई लाइफ इस बात का जिक्र है कि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि मैं चार साल अध्यक्ष रह चुका हूं, अब आगे नहीं रहना चाहता हूं। अटल जी ने लालकृष्ण आडवाणी से अध्यक्ष बनने के लिए कहा। इस पर लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि मैं सभाओं में अच्छे नहीं बोल पाता हूं, अध्यक्ष कैसे बन सकता हूं। अटल जी ने कई उदाहरण भी दिए, मगर लालकृष्ण आडवाणी ने अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया। इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी ने राजमाता का नाम सुझाया।



अटल-आडवाणी लेकर आए प्रस्ताव
अटल-आडवाणी लेकर आए प्रस्ताव

लालकृष्ण आडवाणी के सुझाए नाम पर अटल बिहारी वाजपेयी तैयार हो गए। इसके बाद दोनों इस प्रस्ताव को लेकर ग्वालियर पहुंचे। दोनों ने अपनी बात राजमाता विजया राजे सिंधिया के सामने रखी। वह भी शुरुआती दौर में तैयार नहीं हुईं, काफी समझाने के बाद शर्तों के साथ अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हुईं। उनकी शर्त यह थी कि अगर मेरे गुरु इसके लिए हां कर देंगे तो ही पार्टी अध्यक्ष का पद स्वीकारूंगी।



गुरु की बात मानकर नहीं बनीं अध्यक्ष
गुरु की बात मानकर नहीं बनीं अध्यक्ष

राजमाता विजया राजे सिंधिया के आध्यात्मकि गुरु दतिया में पीतांबरा पीठ के स्वामी थे। अटल-आडवामी के प्रस्ताव पर उनके गुरु उन्हें अध्यक्ष पद नहीं स्वीकारने की सलाह दी। इसके बाद राजमाता विजयराजे सिंधिया कभी जनसंघ की अध्यक्ष नहीं बनीं। हमेशा वह उपाध्यक्ष ही बनीं रहीं। वह पार्टी की प्रमुख फाइनेंसर भी रहीं।





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