चेन्नै मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से बाकायदा माफी मांगी है। दरअसल, आर्थिक अपराध में शामिल एक महिला आर...
चेन्नै मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से बाकायदा माफी मांगी है। दरअसल, आर्थिक अपराध में शामिल एक महिला आरोपी ने एक आईपीएस अफसर पर 3 करोड़ की जबरन वसूली का आरोप लगाया था। इसके खिलाफ अफसर ने रिट दायर की थी, इस पूरे केस की सुनवाई में 6 सालों का लंबा समय लगा। इस देरी के लिए हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी है। अफसर की रिट याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सीवी कार्तिकेयन ने लिखा है, 'मुझे माफी का एक नोट संलग्न करना चाहिए था। हाई कोर्ट माननीय सुप्रीम कोर्ट की आशा और विश्वास को नहीं कायम रख पाई। मामले की पूरी सुनवाई में छह साल से ज्यादा का समय लगा। आशा है कि इस आदेश से विवाद का निपटारा हो जाएगा। यह रिट प्रमोद कुमार ने दायर की थी। जो साल 2009 में पश्चिमी क्षेत्र के आईजी थे। उन्होंने पॉजी फॉरेक्स ट्रेडिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के तीन निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इन तीनों पर आकर्षक रिटर्न का वादा करके लोगों से करोड़ों रुपये हड़पने का आरोप था। इन तीनों में से एक कमलावली अरुमुगम 8 दिसंबर 2009 को अचानक लापता हो गईं और तिरुपुर पुलिस स्टेशन में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई। वह 11 दिसंबर को सामने आईं और दावा किया कि उनका अज्ञात लोगों ने अपहरण किया था। पुलिस ने पूछताछ की तो महिला ने आरोप लगाया कि इंस्पेक्टर वी मोहन राज ने उसे इस केस से बचाने के एवज में 3 करोड़ रुपयों की मांग की है। महिला ने यह भी खुलासा किया कि उसने अपने ही अपहरण का नाटक किया साथ ही यह भी बताया कि इंस्पेक्टर की धमकी के चलते वह 2.95 करोड़ रुपये दे चुकी है। इस तरह महिला के अगवा होने का मामला अब जबरन वसूली में बदल गया। पूछताछ में इंस्पेक्टर ने बताया कि वह तत्कालीन आईजी प्रमोद कुमार के कहने पर यह सब कर रहा था। सीबी-सीआईडी ने आईजी को समन जारी कर पूछताछ की। इस बीच मद्रास हाई कोर्ट ने मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया। सीबीआई ने 2 मई 2012 को आईजी को अरेस्ट कर लिया। आईजी ने सीबीआई जांच को रोकने के लिए अगस्त 2012 में एक रिट याचिका दायर की। तर्क दिया गया कि सीबीआई ने केस चलाने से पहले केंद्र की मंजूरी नहीं ली थी। 5 दिसंबर 2012 को हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद 29 अप्रैल 2013 को हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने भी याचिका खारिज कर दी। फिर से याचिका करने पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च 2015 को रिट याचिका पर नए सिरे से सुनवाई के लिए उसे हाई कोर्ट में भेज दिया। इस बीच, सीबीआई ने आर्थिक अपराध मामले और जबरन वसूली मामले में दो अलग विशेष अदालतों में अंतिम रिपोर्ट लगा दी।
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