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एमपी के इस गांव की रक्षा करते हैं शहीद, पहाड़ों से पत्थर निकालने आए लोग हो गए तबाह!

जयप्रकाशछतरपुर एमपी (MP Latest News Update) के छतरपुर जिले स्थित बेड़री एक ऐसा आदिवासी गांव है, जिसकी रक्षा शहीदों की आत्माएं करती हैं। यह...

जयप्रकाशछतरपुर एमपी (MP Latest News Update) के छतरपुर जिले स्थित बेड़री एक ऐसा आदिवासी गांव है, जिसकी रक्षा शहीदों की आत्माएं करती हैं। यह गांव मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। ग्रामीण बताते हैं कि गांव में अंग्रेजों से लड़ते वक्त शहीद हुए हमारे पूर्वज भले ही गुमनामी में खो गए हो लेकिन उनकी आत्माएं आज भी गांव की रक्षा करती हैं। गांव के लोगों ने कहा कि यही वजह की गांव के अंदर मौजूद पहाड़ में आज तक कोई भी खनन नहीं कर सका जबकि जिला प्रशासन कई बार पहाड़ की लीज व्यापारियों/नेताओं को दे चुका है। जिसने भी गांव के अंदर मौजूद पहाड़ में खनन करने की कोशिश की उसे व्यापारिक और राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा है। गांव के लोग कहते हैं कि जिला प्रशासन ने हमारे पूर्वजों को सम्मान नहीं दिया है। उनकी शहादत गुमनामी में है। उनकी आत्माएं आज भी हमारे गांव की रक्षा करती हैं। अंग्रेजों से लड़ते हुए थे शहीद गांव के रहने वाले परसद्दी आदिवासी और पुष्पेंद्र सिंह बताते हैं कि लगभग 100 साल पहले गांव में अंग्रेजी शासन के बढ़ते लगान को लेकर गांव में रहने वाले आदिवासियों ने एक महापंचायत लगाई थी। इस महापंचायत में गांव के आदिवासियों के अलावा गांव के अन्य लोग भी शामिल हुए थे। तभी इस बैठक की जानकारी अंग्रेजों को लग गई. जिसके बाद अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर हमला बोल दिया। सभा में उपस्थित ग्रामीण भी अंग्रेजों पर पलट गए। इस लड़ाई में तीन ग्रामीणों की मौत हुई थी। साथ ही 50 के करीब ग्रामीण घायल हुए थे। शहीदों को भूल गया प्रशासन गांव के लोग बताते हैं कि गांव में शहीद हुए हमारे पूर्वजों को प्रशासन भूल गया। कुछ समय तो शहीदों की याद में मेला लगता रहा लेकिन अब वो भी बंद हो गया। अब शहीदों के सम्मान के नाम पर मात्र एक सफेद चबूतरा है। शहादत के बाद भी करते हैं गांव की रक्षा ग्रामीणों का कहना है कि भले ही आज प्रशासन उन शहीदों की शहादत को भूल गया हो पर हमारे पूर्वज की आत्माएं आज भी हमारे गांव, जन, जंगल और जमीन की रक्षा करती है। गांव में नहीं हो सका खनन बीजेपी के पूर्व किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष गोविंद सिंह बताते हैं कि बेड़री गांव में 90 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है। यहां रहने वाले लोगों की दिनचर्या इन्हीं जंगलों और पहाड़ों के इर्द गिर्द घूमता है। गोविंद सिंह की मानें तो गांव में मौजूद पहाड़ की अब तक कई बार लीज हो चुकी है। पहाड़ पर खनन करने के लिए कई व्यापारी और राजनैतिक रसूख रखने वाले लोगों को काम करने का मौका मिला। मगर अनहोनी होने के बाद वह पीछे हट गए। गांव के लोग शासन एवं प्रशासन से नाराज हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव के जिन पूर्वजों ने अंग्रेजों से लड़ते समय अपनी जान गंवाई। उनके सम्मान के लिए सरकार ने आज तक कुछ भी नहीं किया। सरकार भले ही उन्हें भूल गई हो लेकिन हमारे पूर्वज आज भी हमारे गांव की रक्षा करते हैं।


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