नई दिल्ली सीबीआई को भ्रष्टाचार के एक मामले में के रिटायर्ड जज एस एन शुक्ला पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मिल गई है। उन पर अपने आदेशों के जरिए ...

नई दिल्लीसीबीआई को भ्रष्टाचार के एक मामले में के रिटायर्ड जज एस एन शुक्ला पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मिल गई है। उन पर अपने आदेशों के जरिए एक निजी मेडिकल कॉलेज को फायदा पहुंचाने का आरोप है। सीबीआई ने भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के तहत इस साल 16 अप्रैल को मुकदमा चलाने के लिए हाई कोर्ट से मंजूरी मांगी थी। सीबीआई अब आरोपी जज के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर सकती है। हाई कोर्ट के दो रिटायर्ड जजों के अलावा ये हैं आरोपी रिटायर्ड जस्टिस शुक्ला के अलावा सीबीआई ने एफआईआर में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आई एम कुद्दुसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव, ट्रस्ट और निजी व्यक्तियों भावना पांडेय और सुधीर गिरि को भी नामजद किया है। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। पक्ष में आदेश के लिए दी गई थी घूस अधिकारियों ने बताया कि ट्रस्ट ने अपने पक्ष में आदेश पाने के लिए एफआईआर में नामजद एक आरोपी को कथित तौर पर घूस दी। हाई कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, सीबीआई को कुद्दुसी पर मुकदमा चलाने की मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कथित अपराध होने के वक्त वह रिटायर्ड जज थे और वह एक निजी व्यक्ति की हैसियत से इसमें कथित तौर पर शामिल हुए। शुक्ला पांच अक्टूबर 2005 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का हिस्सा बने और 17 जुलाई 2020 को रिटायर हुए। ट्रस्ट के पक्ष में आदेश देने का आरोपएफआईआर दर्ज करने के बाद सीबीआई ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में कई स्थानों पर छापे मारे थे। आरोप है कि प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज को केंद्र ने खराब सुविधाओं और आवश्यक मानदंड पूरा न करने के कारण छात्रों को दाखिला देने से रोक दिया था। उसके साथ 46 अन्य मेडिकल कॉलेजों को भी मई 2017 में इसी आधार पर छात्रों को दाखिला देने से रोक दिया गया था। अधिकारियों ने बताया कि ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका के जरिए इस रोक को चुनौती दी थी। इसके बाद एफआईआर में नामजद लोगों ने एक साजिश रची और कोर्ट की अनुमति से याचिका वापस ले ली गई। 24 अगस्त 2017 को हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने एक अन्य रिट याचिका दायर की गई। अधिकारियों ने बताया कि एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि जज शुक्ला समेत एक खंडपीठ ने 25 अगस्त 2017 को याचिका पर सुनवाई की और उसी दिन ट्रस्ट के पक्ष में आदेश दिया गया।
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