पटना। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने...

पटना। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को Repeal करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे। शुक्रवार की सुबह नौ बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह घोषणा की तो पूरा देश स्तब्ध रह गया। वहीं विपक्ष ने इसे बड़ी जीत मानते हुए जश्न मनाने के साथ, पीएम पर हमला शुरू कर दिया। पीएम के बड़प्पन ने उन्हें स्टेट्समैन बनाया - विपक्ष इसे हार-जीत के क्षुद्र नजरिये से न देखे बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब,हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों के एक वर्ग की भावना का सम्मान करते हुए संसद से पारित लेने की घोषणा कर बड़प्पन दिखाया है। यह गुरु पर्व पर सद्भाव का प्रकाश फैलाने वाला ऐसा निर्णय है, जो प्रधानमंत्री मोदी को चुनावी राजनीति से ऊपर उठता हुआ कद्दावर स्टेट्समैन सिद्ध करता है। इस ऐतिहासिक पहल को किसी की जीत-हार के रूप में लेने की क्षुद्रता नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में बिना शर्त धरना समाप्त कर घर लौटे किसान सुशील मोदी ने कहा कि हालांकि तीनों कृषि कानून किसानों के हित में थे, सरकार किसान प्रतिनिधियों से 11 चक्र में बातचीत कर इसमें और सुधार करने पर सहमत थी। सुप्रीम कोर्ट ने इनके कार्यान्वयन को स्थगित भी कर दिया था, फिर भी इन कानूनों को एक झटके में वापस लेना राजनीतिक नफा-नुकसान, दलगत मान-अपमान और तर्क-वितर्क से ऊपर उठकर अन्नदाता का दिल जीतने वाला निष्कपट कदम है। अब आंदोलनकारियों को अपना हठ छोड़कर बिना शर्त धरना समाप्त कर घर लौटना चाहिए। न सरकार न विपक्ष बल्कि कृषि सुधार की हार हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानून को वापस किए जाने का निर्णय सुनाए जाने के बाद विपक्ष द्वारा जहां इसे अपनी जीत मानते हुए, लोकतंत्र की जीत और सरकार की हार बताया जा रहा है। तो किसान नेता यह कह रहे हैं कि यह आंदोलन की जीत है और तानाशाही की हार है। पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रत्नेश का कहना है कि कृषि कानून को वापस लिए जाने का फैसला न किसी की हार है न किसी की जीत। बल्कि यह तो कृषि सुधार की हार है। चुनाव नहीं बल्कि देश हित में पीएम ने लिया फैसला अधिवक्ता प्रशांत कुमार का कहना है कि कृषि कानून के करीब डेढ़ वर्ष हो गए थे। प्रशांत कुमार का मानना है कि अगर चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कृषि कानून को वापस लेना होता तो पश्चिम बंगाल, आसाम समेत कई राज्यों में जब विधानसभा चुनाव हुए थे। उस वक्त चुनावी फायदे के लिए पीएम नरेंद्र मोदी इस कानून को वापस ले सकते थे। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने देशहित में तथाकथित किसानों के चल रहे आंदोलन को खत्म करने के लिए इस कानून को वापस लिया है। क्योंकि पूरे देश को पता था कि आंदोलन की आड़ में विदेशी ताकतें और देश में बैठे देश विरोधी लोग भारत को अस्थिर करने की साजिश रच रहे थे। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र से जुड़ा एक और फैसला लिया है जिसमें जीरो बजट खेती यानी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एमएसपी (MSP) को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक कमेटी का गठन कर रहे हैं। कृषि कानून के वापस लेने के बाद भी आंदोलन समाप्त नहीं छोटे किसानों के हित के लिए लाए गए कृषि कानून के खिलाफ, सड़क जाम कर एक साल से ज्यादा समय तक आंदोलन करने वाले तथाकथित किसान, कानून वापस लिए जाने के बाद भी आंदोलन वापस लेने के मूड में नहीं दिख रहे। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कहा है कि देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया और उन्हें अन्याय के खिलाफ जीत मुबारक हो। वहीं खुद को किसान कहने वाले किसान नेता राकेश टिकैत ने यह घोषणा की है कि आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा। उन्होंने ऐलान किया है कि हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा। इसके अलावा सरकार एमएसपी (MSP) के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी किसान संगठनों के साथ बातचीत करें। राकेश टिकैत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि एमएसपी (MSP) पर गारंटी कानून बनने तक आंदोलन जारी रहेगा। बहाल करने की होगी मांग ? जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि जिस तरह सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लिया है, उसी तरह अनुच्छेद 370 को भी बहाल कर देना चाहिए। तो क्या यह मान लिया जाए कि आने वाले समय में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करने के लिए भी देश को इसी तरह का आंदोलन का सामना करना पड़ेगा। कृषि कानून को वापस लेने के लिए जिस प्रकार तथाकथित किसानों ने 1 साल से अधिक समय तक उग्र आंदोलन किया। क्या इसी तर्ज पर अब देश के मुसलमान जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल करने को लेकर सड़क जाम कर आंदोलन करेंगे ? महबूबा मुफ्ती' फारूक अब्दुल्ला जैसे लोगों को मिली ताकत नेशनल जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राकेश प्रवीर का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानून को वापस लिए जाने के बाद विपक्ष को सरकार पर दबाव बनाने का एक नया हथियार मिल गया है। राकेश प्रवीर ने कहा कि विपक्ष द्वारा अब विरोध स्वरूप हर मुद्दे को लेकर आंदोलन को हवा दी जाएगी। क्योंकि कृषि कानून वापस होने से उन्हें एक पाथ मिल चुका है। वरिष्ठ पत्रकार राकेश प्रवीर का यह भी मानना है कि देश में हाल के दिनों में कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद, राशिद अल्वी और खुद राहुल गांधी ने हिंदू को लेकर जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया है। उससे देश में अस्थिरता का वातावरण बन सकता है। कृषि कानून को वापस लिए जाने के बाद मुमकिन है कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 फिर से बहाल करने की मांग कांग्रेसी नेताओं के साथ-साथ मुस्लिम धर्म गुरुओं द्वारा भी की जाए। राकेश प्रवीण ने यह भी कहा कि सिर्फ धारा 370 ही नहीं बल्कि सीएए(CAA) एनआरसी (NRC) पर शाहीन बाग की तरह फिर से आंदोलन देखने को मिल सकता है।
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