सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। उससे पहले पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करके बीजेपी इसी चुनाव में भुनाने का प्...

सुलतानपुर उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। उससे पहले पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करके बीजेपी इसी चुनाव में भुनाने का प्रयास कर रही है। पीएम मोदी ने इस एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने ने अयोध्या से सटी कुश की नगरी सुलतानपुर से अपने भाषण के दौरान ब्राह्मण कार्ड खेल दिया। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए इशारे ही इशारे में पीएम मोदी ने तंज कसा। मोदी ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र का नाम लेते हुए कहा उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया। पीएम ने कहा कि सुल्तानपुर के सपूत श्रीपति मिश्रा के साथ भी तो यही हुआ था, परिवारवादी लोगों ने उनका अपमान किया था, जिसे यूपी के लोग कभी नहीं भुला सकते हैं। पीएम ने श्रीपति मिश्र पर कही यह बात यूपी चुनाव से पहले पीएम मोदी ने श्रीपति मिश्र का जिक्र किया और इसे निश्चित तौर यूपी की राजनीति में बाह्मण कार्ड के तौर पर भी देखा जाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक परिवारवादियों का कब्जा था। परिवारवादियों की पार्टनरशिप देश और प्रदेश को बर्बाद करती रहीं। सुल्तानपुर के सपूत श्रीपति मिश्र के साथ क्या हुआ, परिवारवादियों ने उन्हें अपमानित किया। पीएम मोदी इशारों ही इशारों में उस बात को बता गए जब श्रीपति मिश्र को बीच में ही सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। सुल्तानपुर के ही रहने वाले थे श्रीपति मिश्र सुल्तानपुर जिले में कार्यक्रम था और इसी जिले के रहने वाले और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र का भी जिक्र भी पीएम मोदी ने किया। कांग्रेस और सपा पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यूपी में कोई जातिवाद नहीं, कोई क्षेत्रवाद नहीं, सबका साथ सबका विकास के मंत्र के साथ योगी सरकार काम कर रही है। 1989 के बाद यूपी को नहीं मिला ब्राह्मण सीएम उत्तर प्रदेश में लगभग 12 फीसदी ब्राह्मण वोटर है। आजादी के बाद से यूपी की सियासत में ब्राह्मणों को वर्चस्व रहा। इस दौरान यूपी को 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिले। 1989 के बाद उत्तर प्रदेश को कभी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं मिला। पूर्वांचल में ब्राह्मण और राजपूतों की संख्या अच्छी-खासी है। यूपी में इस समय ब्राह्मण बनाम ठाकुर का मुद्दा उठ रहा है। ठाकुर साथ, ब्राह्मणों के लिए कार्ड दरअसल 2017 में बीजेपी की सरकार पूर्ण बहुमत से बनी। बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया। योगी ठाकुर जाति से आते हैं। बीजेपी पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि योगी से सीएम बनने के बाद पार्टी ठाकुरवादी हो गई है। ब्राह्मण बीजेपी से नाराज है। ऐसे में पीएम मोदी ने श्रीपति के बहाने प्रदेश से लेकर पूर्वांचल के ब्राह्मणों को रिझाने का प्रयास किया है। कौन थे श्रीपति मिश्र? श्रीपति मिश्र का जन्म सुल्तानपुर के गांव शेषपुर में हुआ था। उन्होंने बीएचयू से अपनी पढ़ाई पूरी की और उसके बाद छात्र आंदोलन में आ गए। वह बीएचयू में सचिव भी चुने गए। 1952 में सुल्तानपुर में चुनाव भी लड़े लेकिन हार गए। इसी बीच उनका ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के तौर पर चयन हो गया लेकिन उनका मन तो कहीं और था। कुछ ही साल में उन्होंने रिजाइन दे दिया। और फिर धीरे- धीरे राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए। उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और 62 के यूपी चुनाव में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर जीत भी हासिल की। इमरजेंसी के दौर में हुए अलग कुछ समय बाद वह चौधरी चरण सिंह के साथ चले गए और उनकी बनाई पार्टी से 69 में सांसद भी चुने गए। चरण सिंह के कहने पर वो संसद की सदस्यता से त्याग पत्र देकर यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए। चरण सिंह के साथ और उसके बाद त्रिभुवन नारायण सिंह के मंत्रिमंडल में रहे। इमरजेंसी का दौर आया और उस वक्त तक वह चरण सिंह से अलग हो चुके थे। 1980 के यूपी चुनाव में एक बार फिर वो कांग्रेस के टिकट पर जीतते हैं। 82 में वीपी सिंह के रिजाइन करने के बाद वो प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं। श्रीपति मिश्र के परिवार का भी कांग्रेस से हुआ मोहभंग यूपी के पूर्व सीएम श्रीपति मिश्र का यूपी की राजनीति में अच्छा दबदबा था। खासकर सुल्तानपुर और उसके आस- पास के कई जिलों में । हालांकि उनके निधन के बाद से उनका परिवार हाशिए पर चला गया। पार्टी नेतृत्व की अनदेखी के चलते उनके बेटे पूर्व विधान परिषद सदस्य राकेश मिश्रा ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा जॉइन कर ली। बीजेपी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस की राजनीति एक परिवार पर ही केंद्रित रही और वह किसी भी लोकप्रिय और जनता के लिए समर्पित नेता को बर्दाश्त नहीं करते थे। श्रीपति मिश्र को जबरन कुर्सी से बेदखल किया गया, क्योंकि कांग्रेस का दिल्ली परिवार कभी भी लोकप्रिय नेताओं को कुर्सी पर टिकने नहीं देता था। क्या हुआ था श्रीपति मिश्र के साथ? सीएम पद से वीपी सिंह के रिजाइन करने के बाद श्रीपति मिश्र 1982 में यूपी के मुख्यमंत्री बनते हैं। श्रीपति मिश्र लंबे समय तक इस पद पर नहीं रह पाते हैं और कहा जाता है कि इसके पीछे वजह राजीव गांधी के साथ बढ़ती तल्खी थी। राजीव गांधी के साथ तल्खी बढ़ने के साथ जुलाई 1984 में उनको अपना पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद वो सक्रिय राजनीति में बहुत लंबे समय तक नहीं रहे। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मछलीशहर से सांसद चुने गए और उसके बाद राजनीति से संन्यास ले लिया।
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