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RLD-एसपी गठबंधन से जाट लैंड में बीजेपी को होगी कितनी मुश्किल? समझिए समीकरण

लखनऊ उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। वेस्ट यूपी में कृषि कानूनों के चलते पहले से कमजोर...

लखनऊ उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। वेस्ट यूपी में कृषि कानूनों के चलते पहले से कमजोर पड़ चुकी बीजेपी को आरएलडी और समाजवादी पार्टी गठबंधन से बड़ा नुकसान हो सकता है। हालांकि इस नुकसान की कुछ भरपाई करने के लिए केंद्र सरकार ने कृषि कानून वापसी का ऐलान किया है। तीन कृषि कानून वापसी के बाद माना जा रहा है कि वेस्ट यूपी की सियासत अब बदलेगी लेकिन जयंत चौधरी और अखिलेश का गठबंधन नुकसान पहंचाएगा। वेस्ट यूपी में 136 विधानसभा सीटे हैं। 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी इन 136 सीटों में से 109 सीटें जीती थी। जबकि 2012 के चुनाव में सिर्फ 38 सीटें जीती थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें बीजेपी जीती जबकि 2014 में 23 सांसद यहां से जिताए थे। आरएलडी का एक भी विधायक नहीं उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अभी समाजवादी पार्टी के 49 विधायक हैं। आरएलडी 2017 के चुनाव में एक सीट जीती थी हालांकि उनके विधायक ने बीजेपी जॉइन कर ली थी, उसके बाद मौजूदा समय में आरएलडी का एक भी विधायक विधानसभा में नहीं है। मुजफ्फरनगर दंगों ने बदला समीकरण आरएलडी का एक वक्त वेस्ट यूपी में बहुत दबदबा माना जाता था लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वेस्ट यूपी का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। जो जाट समाज आरएलडी की ताकत हुआ करता था, वह बीजेपी में शिफ्ट हो गया। कम होता गया आरएलडी का दबदबा नतीजा यह हुआ कि चौधरी अजित सिंह 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी को खुद भी बागपत से हार का सामना करना पड़ा था। 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी को महज एक सीट पर ही जीत मिली। इसके बाद बीजेपी को आरएलडी की कोई जरूरत ही नहीं रह गई थी क्योंकि वेस्ट यूपी में उसका खुद का एकाधिकार हो गया। वेस्ट यूपी की सीटें मेरठ में सात सीट में एक बीजेपी हारी थी और इस पर सपा जीती थी। इसी तरह, बागपत में एक सीट पर बीजेपी हारी और आरएलडी जीती ( हालांकि बाद में जीता विधायक बीजेपी में शामिल हो गया था), सहारनपुर में सात में तीन बीजेपी हारी, एक सपा और दो कांग्रेस जीती थी। मुरादाबाद में छह में से चार बीजेपी हारी, चारों पर सपा जीती थी। अमरोहा में चार में एक बीजेपी हारी, सपा जीती। फिरोजाबाद में चार में से एक बीजेपी हारी, सपा जीती। मैनपुरी में चार में से तीन बीजी हारी, सपा जीती। बदायूं में छह में से पांच बीजेपी जीती और एक हारी, उसपर सपा जीती। संभल में चार में से दो बीजेपी हारी, वहां सपा जीती। बिजनौर में 8 में से दो बीजेपी हारी, सपा जीती। रामपुर में 5 में से 3 बीजेपी हारी, सपा जीती। शामली में 3 में से एक बीजेपी हारी, सपा जीती, हापुड़ में 3 में से एक बीजेपी हारी, बीएसपी विजयी हुई। शाहजहांपुर में 6 में से एक बीजेपी हारी, सपा जीती। मथुरा में 5 में से एक बीजेपी हारी, बीएसपी जीती। हाथरस में तीन में से एक बीजेपी हारी, उस पर बसपा जीती थी। हारी सीटों पर था फोकस, मिली सीटें भी हाथ से निकलती आ रहीं नजर वेस्ट यूपी की कमजोर सीटों पर कमल खिलाने के लिए बीजेपी जुगत कर रही थी। ऐसे में किसान आंदोलन ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया। विशेषज्ञों की मानें तो अब सपा और आरएलडी के गठबंधन ने आग में घी का काम किया। बीजेपी को पता है कि वेस्ट यूपी को साधे बिना सत्ता की चाबी मिलना मुश्किल है। 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में बीजेपी को ध्रुवीकरण का बहुत फायदा मिला था। इस बार किसान अंदोलन के चलते कुछ सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। कृषि कानून खत्म करके डैमेज कंट्रोल किसान आंदोलन छिड़ने और लंबा खींचने के बाद हर सीट पर नाराजगी का 'फीडबैक' बीजेपी हाईकमान को मिल रहा था। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को जरूर किसानों का महायोद्धा के तौर पर पेश किया है। उनमें उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत की छवि किसान देखने लगे हैं। दरअसल, एक वक्त खत्म होते किसान आंदोलन को टिकैत के आंसुओं ने खड़ा कर दिया था और आज कामयाबी भी मिल गई। विपक्ष को बदलना पड़ सकता है समीकरण समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी से गठबंधन कर इस माहौल का फायदा उठाने की रणनीति बनाई थी। जाट, मुस्लिम, यादव समेत कुछ अन्य बिरादरियों के वोट का फायदा मिलने की एसपी और आरएलडी को उम्मीद थी। लेकिन कानून वापसी के बाद अब सियासी समीकरण बदल सकते है। एक बार फिर से पहले की तरह ही आक्रामक रुख अख्तियार कर सकती है। वेस्ट यूपी में वोटर वेस्ट यूपी के करीब एक दर्जन जिलों में जाटों की आबादी 20% तक है। करीब 50 विधानसभा सीटों पर 30% से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। 25 से अधिक सीटों पर मुस्लिम-जाट वोटरों की संख्या 50% से अधिक है। अखिलेश यादव को मुस्लिम वोट मिलना तय है। किसान आंदोलन की अगुआई भी वेस्ट में जाट चेहरों के हाथ में है। जाट वोटर आरएलडी की तरफ खिसकता दिख रहा है। वेस्ट यूपी में सीटें जीतने के लिए हर प्रयास खेती-किसानी के मंच से उपजे नए समीकरण सत्ता के लिए चिंता के सबब थे। दूसरी ओर, गन्ने का मूल्य, बिजली के दाम, महंगाई जैसे मसलों की आंदोलन के बहाने चर्चा सत्ता का सिरदर्द और बढ़ रहा था। यही वजह थी कि हाल में ही योगी सरकार ने न केवल गन्ने के दाम बढ़ाए बल्कि बिजली बिल में भी सरचार्ज माफी जैसे फैसलों से रास्ता तलाशने की कोशिश की गई थी।


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